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वक्फ एक्ट के प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती देने के मामले में केन्द्र को चार हफ्ते का समय

नई दिल्ली, दिल्ली हाई कोर्ट ने वक्फ एक्ट के कुछ प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए चार हफ्ते का समय दे दिया है। चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली बेंच ने 4 नवंबर को सुनवाई करने का आदेश दिया। कोर्ट ने 12 मई को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था।

वक्फ एक्ट को लेकर एक याचिका देवेंद्र नाथ त्रिपाठी ने दायर की है। याचिका में वक्फ एक्ट की धारा 4,5,6,7,8,9,14 और 16(ए) को चुनौती दी गई है। याचिका में इन धाराओं को गैरकानूनी घोषित करने की मांग की गई है। इसके पहले एक दूसरी याचिका भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है। उपाध्याय की याचिका पर हाई कोर्ट नोटिस जारी कर चुका है। उपाध्याय की याचिका में कहा गया है कि वक्फ बोर्ड को ट्रस्टों, मठों, अखाड़ाओं और सोसायटीज से ज्यादा और निर्बाध अधिकार मिले हुए हैं जो उसे एक विशेष दर्जा देते हैं। याचिका में मांग की गई है कि सभी ट्रस्टों, चैरिटेबल संस्थाओं, धार्मिक संस्थाओं के लिए एक समान कानून बनाए जाएं।
याचिका में कहा गया है कि वक्फ और वक्फ संपत्तियों के लिए अलग से कानून नहीं बनाया जा सकता है। याचिका में वक्फ कानून की धारा 4, 5, 6, 7,8 और 9 को मनमाना और गैरकानूनी बताया गया है। याचिका में कहा गया है कि वक्फ कानून के ये प्रावधान संविधान की धारा 14 और 15 का उल्लंघन करते हैं।

याचिका में कहा गया है कि वक्फ एक्ट वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन करने की आड़ में बनाया गया है, लेकिन वक्फ एक्ट के तहत हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिख, बहाई या ईसाई धर्मावलंबियों के लिए कोई कानून नहीं है। ऐसा देश की एकता, अखंडता और धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है। यहां तक कि देश के संविधान में भी वक्फ का कोई जिक्र नहीं है।

याचिका में मांग की गई है कि धार्मिक संपत्तियों के विवादों का निर्धारण केवल देश की सिविल कोर्ट के जरिये करने के लिए दिशा-निर्देश जारी करना चाहिए, न कि वक्फ ट्रिब्युनल के जरिये। याचिका में मांग की गई है कि लॉ कमीशन को सभी ट्रस्टों और चैरिटेबल संस्थाओं के लिए एक समान संहिता बनाने का दिशा-निर्देश जारी करना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि अश्विनी उपाध्याय की ऐसी ही याचिका सुप्रीम कोर्ट पिछले 13 अप्रैल को खारिज कर चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम संसद को कानून बनाने के लिए नहीं कह सकते हैं।
साभार -हिस

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