चूरू (राजस्थान), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने रविवार को कहा कि जैन श्वेताम्बर आचार्यश्री महाश्रमणजी के प्रवचन व्यक्तिगत, सामाजिक और राष्ट्र के लिए ही नहीं, अपितु संपूर्ण विश्व के लिए शाश्वत है। तेरापंथ धर्मसंघ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में अनुशासन की एकरूपता है। उन्होंने यह विचार चूरू जिले के रतनगढ़ स्थित गोलछा विद्या मंदिर में तेरापंथ के आचार्य आचार्यश्री महाश्रमणजी के साथ एक कार्यक्रम में व्यक्त किए।
उन्होंने कहा-‘आचार्यश्री के समक्ष ज्ञान की बातें करने की धृष्टता तो मैं नहीं कर सकता हूं। मैं तो आचार्यश्री की वाणी से ही प्रेरणा लेता हूं और उसके अंश को ही लोगों के बीच बताने का प्रयास करता हूं। मैं आप जैसे देश के अन्य संतों की सन्निधि में रिचार्ज होने के लिए पहुंचता हूं। आपसे हमें सदैव प्रेरणा मिलती रहे।’
इससे पहले आचार्यश्री महाश्रमणजी जिले के छापर कस्बे में चातुर्मासिक प्रवेश के लिए निरंतर गतिमान रहते हुए अपनी श्वेत सेना के साथ रविवार को रतनगढ़ पहुंचे। रतनगढ़ का जन-जन शांतिदूत के स्वागत में उमड़ पड़ा। भव्य स्वागत रैली के साथ आचार्यश्री रतनगढ़ स्थित गोलछा विद्या मंदिर पहुंचे। इसके कुछ समय बाद संघ प्रमुख डॉ. भागवत भी महातपस्वी आचार्यश्री के मंगल सन्निध्य में पहुंचे। डॉ. भागवत ने सबसे पहले आचार्यश्री का पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
इस अवसर पर महाश्रमणजी ने कहा कि इच्छा इतनी बड़ी है कि वह आकाश की तरह अनंत हो सकती है। यदि किसी को सोने का पर्वत भी प्राप्त हो जाए तो उसे संतोष की प्राप्ति नहीं हो सकती। इच्छा, कामना और लोभ की भावना जितनी प्रबल होती है, आदमी उतना ही दुखी बन जाता है। आदमी को अपनी कामनाओं व इच्छाओं को कम करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री के नमस्कार महामंत्र से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। इस दौरान डॉ. रश्मि बैद ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडेगवार पर अपनी शोध पुस्तक संघ प्रमुख और आचार्यश्री को सौंपी। कार्यक्रम के बाद आचार्यश्री और डॉ. भागवत ने चर्चा भी की। आचार्यश्री से आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करने के बाद भागवत अपने गंतव्य को रवाना हुए।
साभार -हिस
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