Home / National / सांप्रदायिकता और नफरत का जवाब प्रेम और सद्भाव से दिया जाना चाहिएः मौलाना महमूद मदनी
IAT NEWS INDO ASIAN TIMES ओडिशा की खबर, भुवनेश्वर की खबर, कटक की खबर, आज की ताजा खबर, भारत की ताजा खबर, ब्रेकिंग न्यूज, इंडिया की ताजा खबर

सांप्रदायिकता और नफरत का जवाब प्रेम और सद्भाव से दिया जाना चाहिएः मौलाना महमूद मदनी

  •  जमीयत उलेमा-ए-हिंद के दो-दिवसीय अधिवेशन में देश और समाज के मुद्दों पर पेश किया गया प्रस्ताव

  •  साम्प्रदायिक सद्भाव बढ़ाने के लिए एक हजार सद्भावना मंच स्थापित करेगी जमीयत

नई दिल्ली, मंदिर-मस्जिद, अजान और हिजाब जैसे विवादों को लेकर देश के मौजूदा हालात के बीच आज देवबंद में जमीअत उलेमा-ए-हिंद की राष्ट्रीय प्रंबंधक कमेटी का दो दिवसीय अधिवेशन आरंभ हुआ। उस्मान नगर स्थित ईदगाह मैदान में आयोजित इस अधिवेशन में देश की समस्याओं पर गहन विचार किया गया। उलेमा ने वक्त की नब्ज टटोलने का प्रयास किया।

अधिवेशन को संबोधित करते हुए अपने अध्यक्षीय भाषण में जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने सामाजिक समरसता के महत्व को उजागर किया। उन्होंने कहा कि देश के हालात मुश्किल जरूर हैं लेकिन मायूस होने की कोई आवश्यकता नहीं है।
उन्होंने कहा कि मुसलमान आज देश का सबसे कमज़ोर वर्ग है। इसका यह मतलब नहीं है कि हम हर बात को सिर झुका कर मानते जाएंगे, हर ज़ुल्म को बर्दाश्त करते जाएंगे। हम ईमान पर कोई समझौता नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि देश में नफरत के खिलाड़ियों की कोई बड़ी तादाद नहीं हैं। सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि बहुसंख्यक खामोश हैं लेकिन उन्हें पता है कि नफरत की दुकान सजाने वाले देश के दुश्मन हैं।
इस मौके पर जमीयत उलेमा के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने भावुक होकर कहा कि हमारे पूर्वजों ने बड़ी कुर्बानियां दी हैं। हम साम्प्रदायिक शक्तियों को देश की अस्मिता से खिलवाड़ नहीं करने देंगे। मुसलमानों को अतिवाद और तीव्र प्रतिक्रिया से बचना चाहिए। आग को आग से नहीं बुझाया जा सकता। इसलिए सांप्रदायिकता और नफरत का जवाब नफरत नहीं हो सकता। इसका जवाब प्रेम और सद्भाव से दिया जाना चाहिए।
मौलाना महमूद मदनी ने परोक्ष रूप से अंग्रेजों से माफी मांगने वालों को भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि घर को बचाने और संवारने के लिए कुर्बानी देने वाले और होते हैं और माफीनामा लिखने वाले और होते हैं। दोनों में फर्क साफ होता है। दुनिया यह फर्क देख सकती है कि किस प्रकार माफीनामा लिखने वाले फासीवादी सत्ता के अहंकार में डूबे हुए हैं और देश को तबाही के रास्ते पर ले कर जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि जमीअत उलमा-ए-हिंद भारत के मुसलमानों की दृढ़ता का प्रतीक है। साथ ही जमीअत सिर्फ मुसलमान तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह देश की पार्टी है। मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि साम्प्रदायिक नफरत को दूर करना मुसलमानों से कहीं अधिक सरकार और मीडिया की जिम्मेदारी है।
इससे पहले जमीअत के पदाधिकारियों ने देश और समाज के मुददों पर प्रस्ताव पेश किए, जिनका अनुमोदन भी किया गया। इन प्रस्तावों के जरिए देश की समस्याओं के समाधान के लिए एक रूपरेखा देने का भरसक प्रयत्न किया गया।
प्रस्तुत प्रस्ताव में देश में नफरत के बढ़ते हुए दुषप्रचार को रोकने के उपायों पर विचार के लिए व्यापक चर्चा की गई। प्रस्ताव के माध्यम से इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त की गई कि देश के मुस्लिम नागरिकों, मध्यकालीन भारत के मुस्लिम शासकों और इस्लामी सभ्यता व संस्कृति के खि़लाफ भद्दे और निराधार आरोपों को ज़ोरों से फैलाया जा रहा है और सत्ता में बैठे लोग उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के बजाय उन्हें आजाद छोड़ कर और उनका पक्ष लेकर उनके हौसले बढ़ा रहे हैं।
जमीअत उलेमा-ए-हिंद ने इस पर चिंता व्यक्त की कि खुलेआम भरी सभाओं में मुसलमानों और इस्लाम के खिलाफ शत्रुता के इस प्रचार से पूरी दुनिया में हमारे प्रिय देश की बदनामी हो रही है। देश की छवि एक पक्षपात वाले, संकीर्ण, धार्मिक कट्टरपंथी राष्ट्र जैसी बन रही है। इससे हमारे देश के विरोधी तत्वों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने का मौका मिल रहा है।
प्रस्ताव में कहा गया कि जमीअत उलेमा-ए-हिंद खास तौर से मुस्लिम नौजवानों और छात्र संगठनों को सचेत करती है कि वे देश के दुश्मन अंदरूनी व बाहरी तत्वों के सीधे निशाने पर हैं। उन्हें निराश करने, भड़काने और गुमराह करने के लिए हर सम्भव तरीका अपनाया जा रहा है। इससे निराश न हों, हौसले और समझदारी से काम लें और जमीअत उलेमा-ए-हिंद और इसके नेतृत्व पर भरोसा रखें।
इस अवसर पर जमीअत उलेमा-ए-हिंद के उपाध्यक्ष मौलाना सलमान मंसूरपुरी ने इस्लाम धर्म के खिलाफ़ जारी नफरत (इस्लामोफोबिया) से संबंधित प्रस्ताव के अनुमोदन पर अभिभाषण में कहा कि मुसलमान अपने रवैये से यह साबित करने की कोशिश करें कि वो सिर्फ अपने धर्म को ही सर्वोपरि नहीं मानते। इस्लाम के विश्वबन्धुत्व के सन्देश को आम किया जाए। अंतरधार्मिक संवाद को बढ़ाने के भी प्रयास किए जाएं। मुसलमान अपने क्रियाकलापों से इस्लाम के सही पैरोकार बनें। सरकार को ऐसे मेनस्ट्रीम और यूट्यूब चैनलों पर रोक लगानी चाहिए, जो इस्लाम धर्म के खिलाफ उन्माद फैलाते हैं।
अधिवेशन में जमीअत द्वारा सामाजिक सौहार्द्र के लिए सद्भावना मंच गठित किए जाने के प्रस्ताव को भी मंज़ूरी दी गयी, जिसके तहत जमीअत ने देश में 1000 (एक हज़ार) सद्भावना मंच स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसका उद्देश्य देश और समाज में आपसी सहिष्णुता और सद्भावना को बढ़ाना है। इस प्रस्ताव पर अपने संबोधन में मौलाना मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी, कुलपति, दारुल उलूम देवबंद ने देश की सांस्कृतिक विविधता की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि मुसलमानों ने हमेशा देश की सद्भावना को सुदृढ़ करने में योगदान दिया है। समाज के दबे-कुचले तबके के उत्थान के लिए भी प्रयास किए जाने चाहिए। सद्भावना मंच के दायरे को बढ़ाया जाना चाहिए।
जमीअत के इस अधिवेशन की एक विशेषता यह भी रही कि इसमें मुस्लिम समाज के सुधार के लिए भी एक रूप रेखा पेश की गई।
साभार-हिस

Share this news

About desk

Check Also

नौसेना को मिले अत्याधुनिक हथियारों और सेंसर से लैस ‘सूरत’ और ‘नीलगिरी’ जहाज

पारंपरिक और अपारंपरिक खतरों का ‘ब्लू वाटर’ में मुकाबला करने में सक्षम हैं दोनों जहाज …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *