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उत्तराखंड : एक सेकेंड के दसवें हिस्से में निकली सूर्य से एक लाख वर्षों में निकलने जितनी ऊर्जा हुई रिकॉर्ड

  • पहली बार स्पेन के साथ एरीज नैनीताल के वैज्ञानिकों ने रिकॉर्ड की यह अनूठी घटना, नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ शोध

नैनीताल, बीते वर्ष 15 अप्रैल 2020 को ब्रह्मांड में पृथ्वी से एक करोड़ तीस लाख प्रकाश वर्ष दूर स्थित स्कल्पटर आकाशगंगाओं के समूह में एक ऐसी घटना हुई, जिसमें हमारे सूर्य द्वारा एक लाख वर्षों में विकीरित की जाने वाली ऊर्जा के बराबर ऊर्जा एक सेकेंड के दसवें हिस्से में उत्सर्जित की गई।
बड़ी बात यह कि इस दुर्लभ पल को स्पेन के अंडालूसिया शोध संस्थान के वैज्ञानिक प्रो. अल्बर्टो जे कास्त्रो-तिराडो के नेतृत्व में जिस वैज्ञानिक समूह ने देखा, उसमें भारत के नैनीताल स्थित आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शशिभूषण पांडे भी शामिल रहे। इस वैज्ञानिक समूह की इस खोज को आज विश्व की सबसे बड़ी विज्ञान शोध पत्रिका नेचर ने प्रकाशित कर मान्यता दे दी है। माना जा रहा है कि वैज्ञानिकों की इस ताजा खोज के बाद इन खगोलीय पिंडों के बारे में अभी भी अल्पज्ञात विशाल चुंबकीय ज्वालाओं को समझना संभव हो जाएगा।

प्रो. अल्बर्टो के हवाले से डॉ. पांडे ने बताया कि जिन तारों का चुंबकीय क्षेत्र बहुत अधिक होता है, उन्हें मेग्नास्टार कहा जाता है। इन मेग्नास्टार तारों के 20 किलोमीटर व्यास का द्रव्यमान पृथ्वी के कुल द्रव्यमान का लगभग पांच गुना अधिक हो सकता है। इससे इन मेग्नास्टार की विशालता का अनुमान लगाया जा सकता है। अभी ब्रह्मांड में ऐसे 20 मेग्नास्टार ही ज्ञात हैं। यह मेग्नास्टार अपने अप्रत्याशित स्वरूप और करीब 3.5 मिली सेकेंड यानी एक सेकेंड के करीब दसवें हिस्से में ही नजर आने के कारण बहुत ही दुर्लभ होते हैं।

यह माना जाता है कि मैग्नेटार में विस्फोट उनके चुंबकीय क्षेत्र में अस्थिरता के कारण या उनकी लगभग एक किलोमीटर मोटी कठोर और लोचदार परत में उत्पन्न एक प्रकार के भूकंप के कारण हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर स्थित असीम नामक उपकरण द्वारा इस विस्फोट का पता लगाया गया था। इस खोज का अध्ययन बेहद कठिन था। इसमें मात्र एक सेकंड के डेटा के विश्लेषण में एक वर्ष से भी अधिक समय लगा। उन्होंने बताया कि आज तक हमारी आकाशगंगा में ज्ञात लगभग तीस मैग्नेटार तारों में से केवल दो में ही इस प्रकार की चुंबकीय ज्वालाओं का पता अब तक लग सका है। यह खोज करने वाले वैज्ञानिक समूह में आईएए स्पेन के जेवियर पास्कुअल, बार्गेन विश्वविद्यालय नॉर्वे के डॉ. ओस्टगार्ड भी शामिल रहे हैं।
साभार-हिस

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