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अनंत है काशी और उसका योगदान: प्रधानमंत्री मोदी

नई दिल्ली,बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को इस ऐतिहासिक नगरी के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और परंपरागत मूल्यों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि काशी शब्दों का विषय नहीं संवेदनाओं की सृष्टि है।

प्रधानमंत्री ने अपने उद्बोधन में कहा, “काशी शब्दों का विषय नहीं है संवेदनाओं की सृष्टि है। काशी वह है जहां जागृति ही जीवन है, काशी वह है जहां मृत्यु भी मंगल है। काशी वह है, जहां सत्य की संस्कार है। काशी वह है, जहां प्रेम ही परंपरा है।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि काशी अनंत है, उसका योगदान भी अनंत है। काशी के विकास में अनंत पुण्य आत्माओं की ऊर्जा है। इसके विकास में भारत की अनंत परंपराओं की विरासत है। इसलिए हर मत-मतांतर के लोग हर भाषा वर्ग के लोग यहां आते हैं। उन्होंने काशी को अविनाशी बताया। उन्होंने कहा कि काशी में बाबा भोलेनाथ की सरकार है। जहां गंगा अपनी धारा बदलकर बहती हो उस काशी को भला कौन रोक सकता है।
मोदी ने कहा कि काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण भारत को एक निर्णायक दिशा देगा। एक उज्जवल भविष्य की ओर ले जाएगा।
काशी के आध्यात्मिक स्वरूप का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यहां के हर पत्थर शंकर है। इसी कारण से काशी को सजीव माना जाता हैं। इसी भाव से हम देश के कण-कण में मातृ भाव का बोध करते हैं। उन्होंने कहा कि सारनाथ में भगवान बुद्ध का बोध संसार के लिए प्रकट हुआ। समाज सुधार के लिए कबीरदास जैसे मनीष यहां प्रगट हुए। समाज को जोड़ने के लिए संत रैदास की भक्ति की शक्ति का केंद्र भी यही बनी।
उन्होंने कहा कि काशी अहिंसा, तप की प्रतिमूर्ति चार जैन तीर्थंकरों की धरती है। राजा हरिश्चंद्र की सत्य निष्ठा से लेकर वल्लभाचार्य, रामानंद जी के ज्ञान तक। चैतन्य महाप्रभु, समर्थ गुरु रामदास से लेकर स्वामी विवेकानंद, मदन मोहन मालवीय तक, ऋषियों, आचार्यों का संबंध इसी काशी की पवित्र धरती से रहा है।
काशी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इस वाराणसी ने इतिहास को बनते-बिगड़ते देखा है। कितने ही कालखंड आए, कितनी ही सल्तनतें उठी और मिट्टी में मिल गई। फिर भी बनारस बना हुआ है बनारस रस बिखेर रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि काशी पर कई बार आक्रमण हुआ। आतातायियों ने इस नगरी पर आक्रमण किया। औरंगजेब के अत्याचार और आतंक का इतिहास साक्षी रहा है। उन्होंने कहा कि यहां औरंगजेब से लड़ने के लिए शिवाजी और सालार मसूद के लिए सोहेलदेव जैसे योद्धा खड़े हो जाते हैं।
साभार-हिस

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