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दीपावली पर पटाखों और कचरे ने निकाला वाराणसी के आबोहवा का दिवाला

  • कोविड से कमजोर हो चुके फेफड़ों पर घातक असर

  • शिवपुर, सोनारपुरा सबसे अधिक प्रदूषित,संस्था क्लाइमेट एजेंडा की रिपोर्ट

वाराणसी, दीपावली पर्व पर तमाम जागरूकता अभियान के बावजूद लोगों ने जमकर आतिशबाजी की। दो दिनों में पटाखों से शौक और कचरा जलाने से पूरे शहर की आबोहवा बिगड़ गई। शहर की वायु गुणवत्ता 8 गुणा प्रदूषित हो गई है। कोविड से कमजोर हो चुके नागरिकों के फेफड़ों पर भी इसका घातक असर दिखने लगा है। दिवाली के एक दिन बाद प्रतिवर्ष की भांति क्लाइमेट एजेंडा ने वायु प्रदूषण पर अपनी रिपोर्ट जारी कर खराब हो रही हवाओं के खतरे से नागरिकों को आगाह किया। संस्था की ओर से दीवाली पर्व पर शहर के 10 जगहों पर हुई निगरानी में शिवपुर, सोनारपुरा जहां सबसे अधिक प्रदूषित रहा। वहीं, रविन्द्रपुरी साफ़ रहा। क्लाइमेट एजेंडा की शनिवार को जारी रिपोर्ट में प्राप्त आंकड़ों के अनुसार पिछली दिवाली की तरह इस बार भी रविन्द्रपुरी क्षेत्र तुलनात्मक रूप से सबसे साफ़ रहा, साथ ही साफ आबोहवा के मामले में लंका क्षेत्र भी रविन्द्रपुरी के बाद दूसरे स्थान पर रहा। निगरानी के दौरान प्राप्त पी एम् 10 और पी एम् 2.5 के आंकड़े यह बताते हैं कि पटाखों से शहर वासियों के प्यार ने बच्चों, वरिष्ठ नागरिकों की सेहत के साथ खिलवाड़ किया, बल्कि कोविड व अन्य सांस रोगों (सी ओ पी डी) के कारण पहले से ही कमजोर लंग्स से जूझ रहे व्यक्तियों को खतरनाक दौर से भी जूझना पड़ रहा है। शहर के दस विभिन्न इलाकों में दिवाली की रात 2 बजे से अगली सुबह 8 बजे तक वायु गुणवत्ता जांच करनी वाली मशीनों के सहारे यह निगरानी की गयी।

संस्था की मुख्य अभियानकर्ता एकता शेखर ने बताया “पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी दीपावली पर पी एम् 10 मुख्य प्रदूषक तत्व रहा। बनारस के शिवपुर क्षेत्र में इस दिवाली पी एम् 10 अधिकतम 798 यूनिट प्रति घनमीटर के आंकड़े तक पहुंचा जो कि भारत सरकार के अनुमन्य स्तर की तुलना में 8 गुना अधिक प्रदूषित है। उन्होंने बताया कि इस इलाके में पी एम् 2.5 का स्तर 401 पाया गया जो अनुमन्य स्तर की तुलना में 6.5 गुना अधिक प्रदूषित है. इसी प्रकार, सोनारपुरा में पी एम् 10 और पी एम् 2.5 क्रमशः 7 एवं 6 गुना अधिक प्रदूषित पाया गया. तीसरे नंबर पर पांडेयपुर क्षेत्र रहा जो कि अनुमन्य स्तर की तुलना में लगभग 7 गुना (पी एम् 10), व् 6 गुना (पी एम् 2.5) अधिक प्रदूषित रहा। एकता शेखर के अनुसार यह आंकड़े पुनः यह साबित करते हैं कि जिला प्रशासन और क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बनारस की हवा में घुलते जहर एवं मानक स्वास्थ्य पर पड़ते दूरगामी और तात्कालिक प्रभावों को को गंभीर समस्या नहीं मानता है। कचरा प्रबंधन में कमी के कारण आम लोग कचरा जलाने को बाध्य हैं, और जागरूकता एवं नियमों के कड़ाई से अनुपालन के अभाव में आम जनता प्रदूषित आबोहवा में सांस लेने को अभिशप्त बनी हुई है। आंकड़े बताते हैं कि शहरी कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में पिछले कई वर्षों से मौजूद संकट और सड़कों की धूल ने पटाखों से पैदा होने वाले प्रदूषण को कई गुना बढ़ा दिया। एकता शेखर ने बताया कि प्रदूषण की रोकथाम और आम आदमी के व्यवहार परिवर्तन के लिए बेहद जरुरी है कि प्रशासन के तरफ से न केवल जागरूकता कार्यक्रम चलाये जाएँ, बल्कि किसी भी क्षेत्र में कचरा जलाए जाने की घटनाओं को कड़ाई से रोकने के साथ —साथ नगर निगम के जिम्मेदार अधिकारियों के ऊपर कार्यवाही की जाए। अन्यथा, पटाखे और अकुशल कचरा प्रबंधन के कारण बनारस हर वर्ष दिवाली से लेकर होली तक गैस चेंबर बने रहने के लिए अभिशप्त बना रहेगा।
साभार-हिस

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