जम्मू. सैनिकों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि नारीशक्ति को नए और समर्थ भारत की शक्ति बनाने का गंभीर प्रयास बीते 7 सालों में हर सेक्टर में किया जा रहा है. देश की रक्षा के क्षेत्र में भी भारत की बेटियों की भागीदारी अब नई बुलंदी की तरफ बढ़ रही है. नेवी और एयरफोर्स में अग्रिम मोर्चों पर तैनाती के बाद अब आर्मी में भी महिलाओं की भूमिका का विस्तार हो रहा है. मिलिट्री पुलिस के द्वार बेटियों के लिए खोलने के बाद अब महिला अफसरों को परमानेंटट कमीशन देना, इसी भागीदारी के विस्तार का ही हिस्सा है. अब बेटियों के लिए नेशनल डिफेंस एकेडमी, राष्ट्रीय मिलिट्री स्कूल और राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री कॉलेज जैसे देश के प्रीमियर मिलिट्री संस्थानों के दरवाज़े खोले जा रहे हैं. इसी वर्ष 15 अगस्त को मैंने लाल किले से ये भी घोषणा की थी कि अब देशभर के सभी सैनिक स्कूलों में बेटियों का भी पढ़ाई का अवसर मिलेगा. इस पर भी तेजी से काम शुरू हो गया है.
मोदी ने कहा कि मुझे आप जैसे देश के रक्षकों की वर्दी में केवल अथाह सामर्थ्य के ही दर्शन नहीं होते, मैं जब आपको देखता हूँ, तो मुझे दर्शन होते हैं अटल सेवाभाव के, अडिग संकल्पशक्ति के और अतुलनीय संवेदनशीलता के. इसीलिए, भारत की सेना दुनिया की किसी भी दूसरी सेना से अलग है, उसकी एक अलग पहचान है. आप विश्व की शीर्ष सेनाओं की तरह एक प्रोफेशनल फोर्स तो हैं ही, लेकिन आपके मानवीय मूल्य, आपके भारतीय संस्कार आपको औरों से अलग, एक असाधारण व्यक्तित्व के धनी बनाते हैं. आपके लिए सेना में आना एक नौकरी नहीं है, पहली तारीख को तनख्वाह आएगा, इसके लिये नहीं आये आप लोग, आपके लिये सेना में आना साधना है! जैसे कभी ऋषि-मुनि साधना करते थे ना, मैं आपके हर एक के भीतर वो साधक का रूप देख रहा हूं. और आप माँ भारती की साधना कर रहे हैं. आप जीवन को उस ऊंचाई पर ले जा रहे हैं कि जिसमें 130 करोड़ देशवासियों की जिन्दगी जैसे आपके भीतर समाहित हो जाती है. ये साधना का मार्ग है और हम तो भगवान राम में अपने सर्वोच्च आदर्श खोजने वाले लोग हैं. लंका विजय करने के बाद भगवान राम जब अयोध्या लौटे थे तो यही उद्घोष करके लौटे थे-
अपि स्वर्ण मयी लंका, न मे लक्ष्मण रोचते. जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥
यानि, सोने और समृद्धि से भरपूर लंका को हमने जीता जरूर है, लेकिन हमारी ये लड़ाई हमारे सिद्धांतों और मानवता की रक्षा के लिए थी. हमारे लिए तो हमारी जन्मभूमि ही हमारी है, हमें वहीं लौटकर उसी के लिए जीना है. और इसीलिए, जब प्रभु राम लौटकर आए तो पूरी अयोध्या ने उनका स्वागत एक माँ के रूप में किया. अयोध्या के हर नर-नारी ने, यहाँ तक कि पूरे भारतवर्ष ने दीवाली का आयोजन कर दिया. यही भाव हमें औरों से अलग बनाता है. हमारी यही उदात्त भावना हमें मानवीय मूल्यों के उस अमर शिखर पर विराजमान करती है जो समय के कोलाहल में, सभ्यताओं की हलचल में भी अडिग रहती है. इतिहास बनते हैं, बिगड़ते हैं. सत्ताएँ आती हैं, जाती हैं. साम्राज्य आसमान छूते हैं, ढहते हैं, लेकिन भारत हजारों साल पहले भी अमर था, भारत आज भी अमर है, और हजारों साल बाद भी अमर रहेगा. हम राष्ट्र को शासन, सत्ता और साम्राज्य के रूप में नहीं देखते. हमारे लिए तो ये साक्षात् जीवंत आत्मा है. इसकी रक्षा हमारे लिए केवल भौगोलिक रेखाओं की रक्षा भर नहीं है. हमारे लिए राष्ट्र-रक्षा का अर्थ है इस राष्ट्रीय जीवंतता की रक्षा, राष्ट्रीय एकता की रक्षा, और राष्ट्रीय अखंडता की रक्षा! इसीलिए, हमारी सेनाओं में आकाश छूता शौर्य है, तो उनके दिलों में मानवता और करुणा का सागर भी है. इसीलिए, हमारे सेनाएँ केवल सीमाओं पर ही पराक्रम नहीं दिखातीं, जब देश को जरूरत पड़ती है तो आप सब आपदा, विपदा, बीमारी, महामारी से देशवासियों की हिफाज़त के लिए मैदान में उतर जाते हैं. जहां कोई नहीं पहुंचे, वहां भारत की सेनाएं पहुंचे, ये आज देश का एक अटूट विश्वास बन गया है. हर हिन्दुस्तानी के मन में से ये भाव अपने आप प्रकट होता है ये आ गए ना अरे चिंता नहीं अब हो गया, ये छोटी चीज नहीं है. आप देश की अखंडता और सार्वभौमिकता के प्रहरी हैं, एक भारत-श्रेष्ठ भारत के संकल्प के प्रहरी हैं. मुझे पूरा भरोसा है कि आपके शौर्य की प्रेरणा से हम अपने भारत को शीर्ष ऊंचाइयों तक लेकर जाएंगे.
उन्होंने इस मौके पर जवानों को दिपावली की शुभकामना दी तथा कहा कि आपके परिवारजनों को शुभकामना है और आप जैसे वीर बेटे-बेटियों को जन्म देने वाली उन माताओं को भी मेरा प्रणाम है. मैं फिर एक बार आप सबको दिपावली की अनेक-अनेक शुभकामनाएँ देता हूं. मेरे साथ पूरी ताकत से बोलिये भारत माता की जय! भारत माता की जय भारत माता की जय!