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उज्जैन ही नहीं कानपुर के महाकालेश्वर मंदिर में भी होती है ‘भस्म आरती’

  •  कौसटी के पत्थर से बनी अमिट चमक रखने वाले विशाल शिवलिंग भक्तों को करता है आकर्षित

  •  मुगल शासक के मंत्री ने उज्जैन की तर्ज पर ब्रह्मा के सृष्टि की रचना करने वाले एतेहासिक बिठूर में बनवाया मंदिर

  •  माता सीता ने लव-कुश के साथ वर्षों रहकर की महादेव की पूजा-अर्चना

कानपुर,  देश और दुनिया में मध्य प्रदेश प्रांत के उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को भस्म आरती के लिए जाना जाता है। लेकिन यह बात बहुत कम ही लोग जानते है कि उप्र के कानपुर में भी एक ऐसा शिव मंदिर है जहां उज्जैन की तर्ज पर भस्म आरती होती है। यह मंदिर जनपद के एतेहासिक, धार्मिक व रमणिक स्थल बिठूर में पतित पावनी गंगा नदी के समीप स्थित महाकालेश्वर शिव मंदिर के नाम से बना है। मंदिर का निर्माण को लेकर खास बात यह है कि मुगल शासन में मंत्री रहने वाले शख्स ने निर्माण 400 साल पूर्व कराया था।

दरअसल, कानपुर के बिठूर स्थित पत्थर घाट पर उज्जैन की तरह ही महाकालेश्वर शिव मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण चार सौ साल पूर्व तत्कालीन मुगलशासक गजीउद्दीन हैदर राज था। उन्होंने कानपुर के रुप में मंत्री टिकायत राय को जिम्मेदारी दे रखी थी। मंत्री टिकायत राय मुगलशासन के बावजूद भगवान शंकर के बहुत बड़े भक्त थे। वह महादेव की पूजा अर्चना के लिए उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर अक्सर जाते थे। उनकी शिव भक्ति को देखते हुए एक साथी ने बिठूर में उज्जैन की तर्ज पर महाकालेश्वर मंदिर निर्माण कराए जाने की बात रखी। यह बात सामने आते ही टिकायत राय ने बिठूर की जनता के बीच इस बात को रखते हुए मंदिर निर्माण की राय मांगी। जिसमें मंदिर निर्माण को लेकर सभी ने सहमति जताई। जनता की भावनाओं व श्रद्धा को लेकर मंत्री ने मुगलशासक गजीउद्दीन हैदर से उज्जैन की तरह बिठूर में भी महाकालेश्वर मंदिर के निर्माण कराने का प्रस्ताव रखा और उन्होंने उसके निर्माण की सहमति दे दी।

सोने को परखने वाले कसौटी पत्थर से तैयार कराया शिवलिंग

मंदिर निर्माण की इजाजत मिलते ही मंत्री टिकायत राय ने जगह की तलाश शुरु की। उन्होंने मंदिर के लिए सबसे उपयुक्त जगह पत्थर घाट के पास चुनी और फिर उसको तैयार कराने के लिए कारीगरों को बुलाया गया। कारीगरों को टिकायत राय ने कारीगरों को बुलाया और बेहतरीन कालाकृति को संजोते हुए भव्य मंदिर का निर्माण शुरु हुआ। छह माह में अद्भुत मंदिर बनकर तैयार हो गया। मंदिर में शिवलिंग के लिए खास सोना परखने वाले कसौटी पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। इस पत्थर की खासियत सोना परखने के साथ ही इसकी अमिट चमक कभी भी कम नहीं होती है। यह भी मंदिर में दर्शन पूजन करने आने वाले भक्तों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र चार सौ साल बाद आज भी बना हुआ है। मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।

पहले सोमवार को पूजा अर्चना के लिए पहुंची भक्तों की भीड़

उज्जैन की तरह बने कानपुर के महाकालेश्वर शिव मंदिर में आम दिनों में तो शहर ही नहीं बल्कि यहां की महिमा के चलते दूर-दराज से भी भक्तगण दर्शन पूजन के लिए आते हैं। श्रावण मास में यहां पर भक्तों का तांता लगा रहता है। आज श्रावण के पहले सोमवार को भक्तों की भीड़ भोर के समय पहुंचने लगे। मंदिर में दर्शन पूजन के लिए प्रबंधन व पुलिस थाना चाक-चौबंद व्यवस्था की गई थी। कोविड प्रोटोकॉल के साथ भक्तों को मंदिर में प्रवेश कराया गया और दर्शन के बाद भक्तों ने मंगल कामना की।
प्रत्येक सोमवार को होती है भस्म आरती, पूरी होती ही मनोकामनाएं

मंदिर के पुजारी पंडित संतोष कुमार शुक्ला ने बताया कि बिठूर में बना महाकालेश्वर शिव मंदिर उज्जैन की तर्ज पर महाराजा व मुगलशासक में मंत्री रहे टिकायत राय ने निर्माण कराया था। वह भगवान महादेव के असीम भक्त थे और इसका प्रत्यक्ष उदाहरण भव्य महाकालेश्वर मंदिर में कलाकृतियों को देखकर साफ झलकता है।
पुजारी के मुताबिक, भगवान शंकर की यहां पर अनुकम्पा ऐसी है कि भक्त पूरी श्रद्धा से यहां स्थापित ज्योर्तिलिंग के रूप में भव्य शिवलिंग की पूजा अर्चना करने से मनवांछित फल प्राप्त करते हैंं। यहां पर प्रत्येक सोमवार की शाम को छह बजे भस्म आरती की जाती है। भस्म आरती के लिए उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के बाद कानपुर के महाकालेश्वर मंदिर में ही यह आरती देखने को मिलती है। इसमें शामिल होने वाले भक्त को पुण्य की प्राप्ति होती है। वहीं श्रावण मास में गंगा स्नान कर जलाभिषेक करने वाले को इच्छित कामना व पुण्य लाभ प्राप्त होता है।
साभार-हिस

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