लाकडाउन,
कहाँ नया है,
स्त्री-जीवन में…,
लक्ष्मणरेखा,
बनी जन्म के साथ,
घर-आँगन में…!!
उम्र के,
किस पड़ाव में,
नहीं थीं बंदिशें…,
बारहमास,
उमड़ती-घुमड़ती,
रहीं थीं बारिशें…!!
रूढ़ियों की,
मूढ़ जंज़ीरें सघन,
टूटी कब भला…,
सदियों से,
सही अकथ यातना,
दौर यही चला…!!
सुनो तुम,
क्या होता है लाकडाउन,
जान गये ना…,
संवेदना-पुष्प,
विकसे अंतस में,
अब कुछ न कहना…!!
✍🏻 पुष्पा सिंघी , कटक