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ओडिशा के मूर्धन्य हिंदी विद्वान प्रोफेसर राधा कांत मिश्र नहीं रहे

शैलेश कुमार वर्मा, कटक/भुवनेश्वर

ओडिशा के जाने-माने हिंदी विद्वान, लेखक, अनुवादक अध्यापक, प्रोफेसर राधाकांत मिश्र का निधन हो गया है. कोरोना से पीड़ित होकर भुवनेश्वर के एक घरेलू अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था कि अचानक उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनकी मृत्यु हुई. वे 81 साल के थे. सत्तर दशक से हिंदी अध्ययन-अध्यापन से जुड़े प्रोफेसर मिश्र अंत तक अपने लेखन कर्म में सक्रिय थे. अपने अध्यापक जीवन में उन्होंने कई महत्वपूर्ण पद पर काम किया. वे लगभग दस साल तक रावेंशा विश्वविद्यालय, कटक के हिंदी विभाग के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रहे. फिर गंगाधर मेहर कॉलेज, संबलपुर से प्राचार्य बनकर सेवानिवृत्त हुए. हिंदी अधिकारी के रूप में उनके काम को आज भी याद किया जाता है. उनकी कोशिशों से ओडिशा जैसे हिंदीतर भाषी प्रांतों में लगभग तीन हजार हिंदी शिक्षकों की नियुक्ति हुई. कुछ समय तक उन्होंने शांतिनिकेतन में भी अध्यापक के रूप में अपनी सेवा दी थी.

साहित्य साधना में भी राधाकांत जी बेजोड़ थे. ‘रामचरितमानस’, ‘कामायनी’, ‘नदी के द्वीप’ आदि के ओड़िआ अनुवाद फकीर मोहन की कालजयी रचना ‘छ माण आठ गुंठ’, ‘गल्पस्वल्प’ आदि के हिंदी अनुवाद के कारण अनुवाद साहित्य में उनकी एक स्वतंत्र परिचिति थी. उनके प्रयास से उत्कल विश्वविद्यालय, भुवनेश्वर में हिंदी का स्नातकोत्तर विभाग खुला, जिसमें इस साल की उम्र में भी वे पढ़ाने जाते थे. उनके मार्गदर्शन में लगभग दस से अधिक शोधार्थियों को पीएचडी की उपाधि मिली. उनकी अप्रतिम में हिंदी सेवा के लिए केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा ने ‘गंगा शरण सिंह पुरस्कार’ और केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली ने उन्हें ‘हिंदीतर भाषी हिंदी लेखक पुरस्कार’ से सम्मानित किया है. वे एक छात्रवत्सल, प्रज्ञावान और मिलनसार अध्यापक थे. उनके दो बेटे, एक बेटी और पत्नी हैं.

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