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आज भी ठगा सा महसूस कर रहा लोकतंत्र का चौथा स्तंभ, सहुलियतों पर सौतेलापन क्यों ?

राजेश बिभार, संबलपुर

देश में पत्रकारों की जिम्मेदारियों और जवाबदेहियों को देखते हुए अन्य प्रमुख विभागों की तरह इन्हें सहुलियतों को दिया जाना चाहिए. कहने को तो मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है, लेकिन जब सहुलियत की बारी आती है, तो पत्रकारों को मुंह देखना पड़ता है. जान जोखिम में डालकर लोकतंत्र की रक्षा करने वाले पत्रकारों कोई भी सरकारी सुविधाएं सीधे नहीं मिलती हैं. सबकुछ रहम करम पर टिकता है.

कोरोना महामारी के दौरान सबकुछ ठप था. लॉकडाउन, शटडाउन से सबकुछ बंद था, लेकिन मीडिया ने पुलिसकर्मियों और चिकित्साकर्मियों के साथ कंधा से कंधा मिलाते हुए पल-पल की जानकारियां जनता तक पहुंचाती रही. सूचनाएं देती रही, विशेषज्ञों की राय जुटाती रही, क्या करें, क्या न करें, आदि-आदि…. जानकारियां प्रदान करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ा. कुछ दिनों के लिए अखबारों का प्रकाशन भी नहीं हुआ, फिर पत्रकार सोशल मीडिया के जरिये जनता को पल-पल की परिस्थियों से अवगत कराते रहे. जनता को जागरुक करते रहे, लेकिन सरकार की उदासीनता और पत्रकारों की सुख-सुविधाओं के प्रति ध्यान नहीं देने से कभी मन को दुःख भी पहुंचता है.

इस सारी परिस्थितियों के बीच लोकतंत्र की रक्षा करने से पत्रकार कभी भी पीछे नहीं हटते हैं. अब तो कोरोना का टीकाकरण भी शुरू हो चुका है, लेकिन सरकार को सिर्फ सरकारी कोरोना योद्धाओं का ध्यान है, पत्रकारों का नहीं. हर विभाग की चिंता करने वालों की कमी नहीं है. सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्ष भी ध्यान देता है, लेकिन जब लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की बात आती है, सन्नाटा ही दिखता है. आज लोकतंत्र की रक्षा में पत्रकार मौत के गलियारे से गुजरने में गुरेज नहीं करते. राज्य में कोरोना की लड़ाई में कुछ कलमकार भी शहीद हुए हैं. कुछ गंभीर भी रहे, लेकिन खुदके लिए लड़ने में संकोच जरूर आती है. शायद यही संकोच की वजह से आज भी लोकतंत्र का यह चौथा स्तंभर ठगा सा महसूस कर रहा है.

ओडिशा पत्रकार संघ (ओयूजे) के प्रदेश अध्यक्ष प्रसन्न मोहंती एक पत्र लिखकर मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का ध्यान इस तरफ आकर्षित कर चुके हैं. उन्होंने आग्रह किया है कि पत्रकारों को हर तरह की सुविधाएं प्रदान की जायें, ताकि वे अपने लक्ष्य पर डटे रहें.

 

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