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प्रभु के समक्ष राजा और रंक सब एक, गजपति महाराज ने रथयात्रा के दौरान रथों पर किया छेरापहंरा

  • महाराजा ने रथों पर झाड़ू लगाकर दिया समानता का संदेश

पुरी. हर साल की तरह इस साल भी गजपति महाराजा दिव्यसिंह देव ने आज पुरी में रथयात्रा के दौरान महाप्रभु श्री जगन्नाथ, भाई बलभद्र और देवी सुभद्रा के रथों पर निर्धारित नीतियों के अनुसार छेरा पहंरा किया. रथों पर छेरापहंरा की नीति राजा द्वारा रथों की सफाई करना है. इसकी अपनी एक अलग महत्व है. निर्धारित समय पर गजपति महाराज सफेद पोशाक पहने हुए महल से एक सुसज्जित पालकी में आते हैं. इसके बाद वह पूजा करने के बाद रथों की सफाई करते हैं. राजा जिस झाड़ू से सफाई करते हैं, उसका हैंडल सोने का होता है. इस दौरान सबसे दिलचस्प नजारा यह होता है कि जैसे ही जैसे ही राजा वहां पहुंचते हैं, वहां पुष्प फेंके जाते हैं. इसके बाद राजा उसे साफ करते हैं और तत्पश्चात रथों को पवित्र करने के लिए उनके ऊपर सुगन्धित चन्दन का जल छिड़का जाता है.

छेरापहंरा का अनुष्ठान यह दर्शाता है कि राजा और रंक के बीच कोई अंतर नहीं है. राजा भी एक सेवक होता है. भगवान के समक्ष सभी एक समान होते हैं. इस नीति को संपन्न करके राजा समानता का संदेश देते हैं. सदियों पहले शुरू हुई रस्म यह संदेश देती रही है कि सर्वशक्तिमान भगवान के सामने जाति, पंथ और किसी भी अन्य बाधा के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए. गजपति महाराजा द्वारा रथों की सफाई करने और उनके महल में जाने के बाद भूरे, काले और सफेद रंग में रंगे हुए लकड़ी के घोड़े को तीनों रथों में लगाया जाता है और रथ खींचना शुरू होता है.

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