Home / National / मंदिरों की छत सपाट क्यों नहीं होती, नुकीली क्यों बनाई जाती है…!!!

मंदिरों की छत सपाट क्यों नहीं होती, नुकीली क्यों बनाई जाती है…!!!


मंदिर तो आपने देखे ही होंगे। मंदिरों की छतों पर एक विशेष प्रकार की आकृति बनाई जाती है। यह आकृति ऊपर की तरफ नुकीली हो जाती है। प्रश्न यह है कि मंदिरों की छतों को इस प्रकार से क्यों बनाया जाता है। क्या इसके पीछे कोई साइंस है। आइए जानते हैं:-
मंदिरों की छत कितने प्रकार की होती है
विशेषज्ञों के अनुसार भारत मे 2 तरह की मंदिर निर्माण शैलियां है उत्तर भारत (नागर शैली) दक्षिण भारत (द्रविड़ शैली)। उत्तर भारत मे छत को मंदिर वास्तु की भाषा में शिखर कहते हैं और दक्षिण भारत मे इसको विमान कहते हैं। दक्षिण भारत में शिखर सिर्फ ऊपर रखे पत्थर को बोलते, जबकि उत्तर भारत मे सबसे ऊपर कलश रखा होता है। इसके अलावा इन से मिलती-जुलती कुछ और मंदिर निर्माण शैलियां भी होती हैं।
मंदिर की छत को पिरामिड जैसा क्यों बनाया जाता है-
धार्मिक दृष्टि से बात करें तो ब्रह्मांड एक बिंदु के रूप में था। अतः मंदिर का शिखर एक बिंदु के रूप में होता है जो ब्रह्मांड से सकारात्मक ऊर्जा को संचित करने का काम करता है। विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करता है कि अंदर से खोखला इस तरह का पिरामिड बनाने से उस खाली स्थान में सकारात्मक ऊर्जा का मंडार एकत्रित हो जाता है। यदि कोई मनुष्य इस ऊर्जा केंद्र के नीचे आता है, तो उसे भी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। स्थापत्य कला के अनुसार, जरूरी नहीं है कि सामने भगवान की प्रतिमा हो, लेकिन यदि आपके इष्टदेव की प्रतिमा है, तो सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव मानसिक रूप से कई गुना बढ़ जाता है।
दूसरा प्रमुख कारण यह है कि इस तरह की आकृति के कारण सूर्य की किरणें उसे प्रभावित नहीं कर पाती और त्रिकोण के अंदर एवं नीचे वाला हिस्सा बाहर अधिक तापमान होने के बावजूद ठंडा रहता है, क्योंकि भारत में मंदिरों का निर्माण यात्रियों के विश्राम के लिए भी किया गया था। अतः यात्रियों की थकान जल्दी से दूर हो सके इसलिए भी इस तरह की स्थापत्य कला का उपयोग किया गया।
मंदिर के शिखर के कारण उसे दूर से पहचाना जा सकता है, क्योंकि नीचे भगवान की प्रतिमा स्थापित है। इस प्रकार की आकृति के कारण कोई भी व्यक्ति प्रतिमा के ऊपर खड़ा नहीं हो सकता। मंदिरों का निर्माण पूर्ण वैज्ञानिक विधि से किया जाता है। मंदिर का वास्तुशिल्प ऐसा होता है, जिससे वहां पवित्रता, शांति और दिव्यता बनी रहती है। मंदिर की छत ध्वनि सिद्धांत को ध्यान में रखकर बनाई जाती है, जिसे गुंबद कहा जाता है।
शिखर के केंद्र बिंदु के ठीक नीचे मूर्ति स्थापित होती है। गुंबद के कारण मंदिर में किए जाने वाले मंत्रों के स्वर और अन्य ध्वनियां गूंजती हैं तथा वहां उपस्थित व्यक्ति को प्रभावित करती है। गुंबद और मूर्ति का केंद्र एक ही होने से मूर्ति में निरंतर ऊर्जा प्रवाहित होती रहती है। जब हम उस मूर्ति को स्पर्श करते हैं, उसके आगे सिर टिकाते हैं तो हमारे अंदर भी वह ऊर्जा प्रवेश करती है। इस ऊर्जा से शक्ति, उत्साह और प्रसन्नता का संचार होता है।

साभार पी श्रीवास्तव

Share this news

About desk

Check Also

MODI

पश्चिम बंगाल को बांग्लादेश बनाना चाहती हैं ममता : नरेंद्र मोदी

उत्तर प्रदेश को भी पश्चिम बंगाल बनाना चाहते हैं अखिलेश यादव पुरानी बुआ ने किया …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *