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आजादी की 75वीं वर्षगांठ​ पर देश को मिलेगा आईएनएस विक्रांत

  • ​​रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ​ने ​​आईएसी के फ्लाइट डेक पर ​जाकर देखा विकास कार्य

  • ​​​​​कोरोना महामारी की दूसरी लहर ​के चलते ​​जहाज के समुद्री ट्रायल में ​हुई ​देरी

नई दिल्ली, ​​रक्षामंत्री राजनाथ सिंह अपने दौरे के दूसरे दिन शुक्रवार सुबह ​​कोच्चि ​में ​​कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (सीएसएल) पहुंचे। उन्होंने देश के पहले स्वदेशी विमान वाहक पोत विक्रांत के निर्माण ​और प्रगति ​की ​जानकारी ली​​​​​​। ​उन्होंने कहा कि ​स्वदेशी विमानवाहक पोत विक्रांत ​को ​आजादी की 75वीं वर्षगांठ के समय​ ​नौसेना में ​शामिल किया जायेगा​​​। ​​इसे एयरक्राफ्ट कैरियर आईएसी-​0​1 के रूप में भी जाना जाता है।​ ​कोरोना महामारी की दूसरी लहर के कारण​ ​विमानवाहक पोत के ​​समुद्री ट्रायल​ में देरी हुई है, इसलिए ​​रक्षामंत्री ​का यह दौरा अहम माना जा रहा है​।​​ ​​​​​​​

​भारतीय नौसेना ​की प्रमुख आधुनिकीकरण और स्वदेशी परियोजनाओं की समीक्षा के लिए ​​​रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ​दो दिवसीय दौरे पर हैं​।​ उन्होंने गुरुवार को ​कर्नाटक के कारवार नेवल बेस ​का दौरा करके ​कारवार में चल रहे बुनियादी ढांचे के विकास और ​नौसेना के महत्वाकांक्षी ‘प्रोजेक्ट सीबर्ड’ के तहत किये जा रहे विकास कार्यों ​की समीक्षा की​।​ इसके ​बाद नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह के साथ​ प्रोजेक्ट का हवाई सर्वेक्षण ​भी ​किया​​।​ ​रक्षा मंत्री विशेष विमान से शाम 7.30 बजे ​​कोच्चि के नौसेना वायु स्टेशन आईएनएस गरुड़ पहुंचे।​ रात्रि विश्राम के बाद रक्षा मंत्री अपने दौरे के दूसरे दिन ​आज सुबह 9.45 बजे कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (सीएसएल) ​गए और निर्माणाधीन ​​आईएनएस विक्रांत ​के बारे में अधिकारियों से जानकारी ली। ​​​देश के पहले स्वदेशी विमान वाहक ​​(आईएसी​) ​आईएनएस विक्रांत का ​​निर्माण इस समय तीसरे चरण में है​​।

​​​स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर (आईएसी) आईएनएस विक्रांत का निर्माण ​​28 फरवरी​,​ 2009 से ​कोच्चि के कोचीन शिपयार्ड में निर्माण शुरू किया गया​ था​। दो साल में निर्माण पूरा होने के बाद विक्रांत को 12 अगस्त, 2013 को लॉन्च ​किया गया था।​ ​पूरी तरह से स्वदेशी इस जहाज ने अगस्त​, 2020 में हार्बर ट्रायल पूरा किया था जिसके बाद सितम्बर में अत्याधुनिक आईएनएस विक्रांत को परीक्षणों के लिए समंदर में उतारा गया था।​​ ​दिसम्बर में सीएसएल की तरफ से किए बेसिन ट्रायल में विमानवाहक पोत पूरी तरह खरा उतरा था। ​​​​पोत को इस साल के पहले छह महीनों में समुद्र में उतारकर उसका परीक्षण किया जाना था, लेकिन ​​​​कोरोना महामारी की दूसरी लहर के कारण इस परीक्षण को टाल दिया गया था। ​​रक्षा मंत्री का यह दौरा ​​विमानवाहक पोत के ​​समुद्री ट्रायल में देरी होने के कारण किया जा रहा है। ​​​​​​​​​​​

​रक्षा मंत्री​ ​ने ​​​​आईएसी के फ्लाइट डेक पर ​जाकर निर्माण कार्य देखा​।​ उन्होंने कहा कि ​​स्वदेशी विमानवाहक पोत विक्रांत का नौसेना में ​शामिल होना भारतीय रक्षा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अवसर होगा क्योंकि ​इसे ​​भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के समय ​देश को समर्पित किया जायेगा। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि भारतीय नौसेना आने वाले वर्षों में दुनिया की शीर्ष तीन नौसेनाओं में से एक बन जाएगी और राष्ट्र की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रहेगी।​ उन्होंने कहा कि ​स्वदेशी विमान वाहक​ ​पर किए जा रहे कार्यों की प्रत्यक्ष रूप से समीक्षा करना सुखद रहा जो ​’आत्म​निर्भर भारत​’​ का एक ​शानदार उदाहरण है। ​विमानवाहक पोत की लड़ाकू क्षमता, पहुंच और बहुमुखी प्रतिभा हमारे देश की रक्षा में जबरदस्त क्षमताओं को जोड़ेगी और समुद्री क्षेत्र में भारत के हितों को सुरक्षित रखने में मदद करेगी।​​​​​​​​​

​…ताकि जिन्दा रहे आईएनएस विक्रांत का नाम
आईएनएस विक्रांत नाम के पोत ने 1971 के भारत-पाक युद्ध में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) की नौसैनिक घेराबंदी करने में भूमिका निभाई थी। इसलिए आईएनएस विक्रांत का नाम जिन्दा रखने के लिए इसी नाम से दूसरा युद्धपोत स्वदेशी तौर पर बनाने का फैसला लिया गया। एयर डिफेंस शिप (एडीएस) का निर्माण 1993 से कोचीन शिपयार्ड में शुरू होना था लेकिन 1991 के आर्थिक संकट के बाद जहाजों के निर्माण की योजनाओं को अनिश्चित काल के लिए रोक दिया गया। 1999 में तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस ने परियोजना को पुनर्जीवित करके 71 एडीएस के निर्माण की मंजूरी दी। इसके बाद नए विक्रांत जहाज की डिजाइन पर काम शुरू हुआ और आखिरकार जनवरी, 2003 में औपचारिक सरकारी स्वीकृति मिल गई। इस बीच अगस्त, 2006 में नौसेना स्टाफ के तत्कालीन प्रमुख एडमिरल अरुण प्रकाश ने पोत का पदनाम एयर डिफेंस शिप (एडीएस) से बदलकर स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर (आईएसी) कर दिया।

​पनडुब्बी रोधी युद्ध क्षमता प्रदान करेगा
इस आधुनिक विमान वाहक पोत के निर्माण के दौरान डिजाइन बदलकर वजन 37 हजार 500 टन से बढ़ाकर 40 हजार टन से अधिक कर दिया गया। इसी तरह जहाज की लंबाई 252 मीटर (827 फीट) से बढ़कर 260 मीटर (850 फीट) हो गई। यह 60 मीटर (200 फीट) चौड़ा है। इसे मिग-29 और अन्य हल्के लड़ाकू विमानों के संचालन के लिए डिजाइन किया गया है। इस पर लगभग तीस विमान एक साथ ले जाए जा सकते हैं, जिसमें लगभग 25 ‘फिक्स्ड-विंग’ लड़ाकू विमान शामिल होंगे। इसमें लगा कामोव का-31 एयरबोर्न अर्ली वार्निंग भूमिका को पूरा करेगा और ​​भारत में ही तैयार यह जहाज नौसेना को पनडुब्बी रोधी युद्ध क्षमता प्रदान करेगा।
साभार – हिस

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