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त्वरित टिप्पणीः मुस्लिम विरोधी रुख़ पर कायम रहेंगे इजराइल के नए पीएम ?

नाफ्ताली बेनेट ने ‘नेसेट’ में उम्मीद के मुताबिक ही कमाल किया है। इजराइल की संसद में बहुमत हासिल कर वे प्रधानमंत्री बन चुके हैं। कमाल इसलिए कि बेनेट की अपनी पार्टी के कुल सात ही सदस्य थे, उनमें भी एक ने नाफ्ताली के नेतृत्व वाले गठबंधन को समर्थन देने से पहले ही इनकार कर दिया था।
कमाल तो पहले ही आठ दलों को मिलाकर गठबंधन बनाने के मामले में भी हुआ है। इनमें दक्षिणपंथी, वाम, मध्यमार्गी के साथ अरब समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली एक पार्टी भी है। ऐसे में सवाल यह है कि नाफ्ताली बेनेट के मुस्लिम देशों के प्रति उनके पुराने रुख का क्या होगा? गठबंधन में शामिल अरब मुस्लिम पार्टी उनके इस रुख़ के साथ कबतक साथ देगी?
मुस्लिम देशों का इजराइल के प्रति रुख अभी 11 दिनों तक फिलिस्तीनी संगठन हमास के साथ चले उसके युद्ध के दौरान उजागर हुआ था। तुर्की और पाकिस्तान जैसे देशों ने तो इजराइल के खिलाफ जहर उगलना ही शुरू कर दिया था। सउदी अरब और कुछ अन्य देश जो थोड़ा संयत रहे, वे भी स्वतंत्र फिलिस्तीन और पूर्वी यरुशलम को उसकी राजधानी के रूप में देखने के हिमायती हैं। दूसरी ओर, बेनेट तो कहते रहे हैं कि पूर्वी यरुशलम, वेस्ट बैंक और गोलान हाइट्स यहूदियों का ही है। इस समय भी इन पर इजराइल का ही कब्जा है। अलग बात है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसे मानने से इनकार करता रहा है।
प्रश्न है कि मध्य पूर्व के प्रति बेनेटे का रुख भी क्या नेतन्याहू की ही तरह कायम रहेगा। वैसे तो घोर दक्षिणपंथी बेनेट को नेतन्याहू से भी ज्यादा कट्टर माना जाता है। यहूदी राष्ट्रवाद के मामले में वे अपने पूर्ववर्ती से भी आगे हैं। फिर क्या इस हाल में वे अपनी कट्टर नीतियों पर आगे बढ़ सकेंगे, जब गठबंधन सरकार में इजराइसी अरब पार्टी भी शामिल है।
फिर गठबंधन की शर्तों के मुताबिक यामिना पार्टी के नफ्ताली बेनेट अभी पहले प्रधानमंत्री बने हैं। उनके बाद लापिद देश के प्रधानमंत्री होंगे। गठबंधन में अलग-अलग विचारधारा के लोग हैं। इसमें लापिद के येश अतीद और नफ्ताली बेनेट के यामिना दल के अलावा कहोल लावन, लेबर, न्यू होप, मेरेट्ज़ और यूनाइटेड अरब लिस्ट जैसे राजनीतिक दल भी हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि इससे देश के मसलों पर आम सहमति बनाने में मदद मिलेगी।
दूसरी ओर इजराइली अरब पार्टी के कारण बेनेट के मुस्लिम, खासकर फिलिस्तीन समर्थक देशों के रुख पर असर पड़ने के भी कयास लगाये जा सकते हैं। खासतौर पर तब, जबकि नए पीएम आतंकवादियों को जेल में डालने की जगह उन्हें सीधे मौत देने के पक्षधर रहे हैं। आखिर फिलिस्तीन में मौजूद हमास को वे भी आतंकी संगठन ही मानते हैं। यदि वे इस कठोर राय पर कायम रहे, तो गठबंधन के बाकी दलों का रुख भी देखना होगा।
सच यह है कि अगस्त, 2019 के बाद देश में चार चुनाव हो चुके हैं। गठबंधन ही सही, फिलहाल सरकार बन जाने से इजराइल पांचवें चुनाव से बच गया है। यह स्थिति कबतक कायम रहेगी, यह भी देखना होगा।
साभार – हिस

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