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अहिंसा के लिए हिंसा को जानना जरूरी – आचार्य महाश्रमण

नागपुर. संतरों की नगरी नागपुर में संत शिरोमणि शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण अहिंसा शांति का संदेश देते हुए सानंद प्रवासरत हैं। अणुव्रत भवन में तीन दिवसीय संपन्न कर पूज्य गुरुदेव का आज का आरएसएस संगठन से जुड़े ।।।।।। स्मृति स्थल में पावन पदार्पण हुआ। मध्यान्ह में लगभग 4.3 किलोमीटर विहार कर पूज्य प्रवर यहां पधारे। इस अवसर पर आरएसएस से जुड़े विभिन्न पदाधिकारियों ने अहिंसा यात्रा प्रणिता का स्वागत किया। रात्रि में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी भी पूज्य प्रवर के दर्शनार्थ पहुंचे। आरएसएस से जुड़े परिसर में आचार्य प्रवर का का स्वागत करते हुए श्री मोहन भागवत जी ने कहा कि आपके पदार्पण से आज वर्षों की मनोकामना पूर्ण हमारी पूर्ण हुई है। इस दौरान लगभग आधे घंटे तक शांतिदूत एवं श्री मोहन भागवत जी के मध्य अहिंसा यात्रा, आरएसएस संबंधी विविध चर्चा हुई। संभावित कार्यक्रमानुसार कल आरएसएस के मुख्यालय में पूज्य प्रवर का पदार्पण निर्धारित है।प्रातः धर्म सभा में मंगल प्रवचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा- हमारे जीवन में कार्य, प्रवृतियाँ चलती रहती हैं वे प्रवृतियाँ ज्ञान से पूर्ण रहे। कोई भी कार्य करने से पहले ज्ञान हो, ट्रेनिंग मिले, फिर आचरण की परिपालना हो। जीवन के हर क्षेत्र में चाहे वो डॉक्टर हो या ड्राइवर, ज्ञान व शिक्षण दोनों का बड़ा महत्व होता है।

अध्यात्म के क्षेत्र में अहिंसा धर्म है, पर अहिंसा क्या है, जीव – अजीव क्या है इसे जानना बहुत जरूरी है। अज्ञानी कैसे अहिंसा धर्म का आचरण करेगा। जो यथार्थ ज्ञान होता है वही फलदायी बन सकता है।पुज्यप्रवर ने आगे प्रेरणा देते हुए कहा कि ज्ञान एक शक्ति है और उसका सार है – आचार। स्वयं के ज्ञान से दूसरों को भी लाभान्वित कर उनका कल्याण करना चाहिए। विद्या के साथ विनम्रता का भी विकास हो। ज्ञानशाला हमारे बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण उपक्रम है। ज्ञानशाला का उपक्रम नई पीढ़ी को सही सिंचन प्रदान करता है। बच्चों में भौतिक ज्ञान के साथ धार्मिक संस्कार आने से उनका जीवन अच्छा बन सकता है। ज्ञान आने से आधा काम और उसके साथ संस्कार आने से काम पूरा हो जाता है। ज्ञानशाला बाल पीढ़ी की सेवा का कार्य है। जीवन में सम्यक ज्ञान के साथ सम्यक आचार रहे यह जरूरी है।

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