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श्रीराम मंदिर की भूमि पूजन के पावन दिन एक संकल्प यह भी लेना होगा

जनता की निःस्वार्थ भागीदारी के बिना एक बेहतर समाज की कल्पना अधूरी ही रहेगी. आज अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर के भूमि पूजन के पावन दिन हमें इसके लिए भी एक संकल्प लेना होगा.

 

विनय श्रीवास्तव (स्वतंत्र पत्रकार)

स्वास्थ्य समाज का अधूरा ख्वाब।कोई समाज, पड़ोस, मित्रता, रिश्ते-नाते को मजबूत करने की जिम्मेदारी किसी एक या दो व्यक्ति की नहीं होती है। एक या दो व्यक्ति इस महत्वपूर्ण धर्म को अकेले पूर्णतः निभा भी नहीं सकते हैं। हाँ, यह जरूर है कि घर परिवार और समाज में एक या दो व्यक्ति ऐसे अवश्य होते हैं, जो रिश्तों की हर कड़ी को मजबूत करने के लिए निःस्वार्थ भाव से बिना हारे थके सदैव तत्पर रहते हैं। एक बेहतर और सुंदर समाज की कल्पना हम सभी लोगों की रहती है। हम सब लोग यही चाहते हैं कि हम जिस समाज में रहते हैं, वहां का वातावरण और वहां का माहौल सौहार्दपूर्ण हो। वहां साफ-सफाई रहे। आस-पड़ोस मिलनसार हो। कोई किसी से ईर्ष्या नहीं करे। सब लोग एकजुट होकर प्रेम और उल्लास से रहें। एक-दूसरे के सुख-दुःख में शरीक हों। कोई आवश्यकता पड़ने पर लोग एक दूसरे की मदद करने के लिए तत्पर रहें।

ये कल्पनाएं कितनी सुंदर है न ? क्या ऐसे सुंदर समाज के लिए हमलोग निःस्वार्थ भाव से कभी कोशिश करते हैं ? कभी कभी शांत मन से यह प्रश्न हमें स्वयं से पूछना चाहिए। और यदि दिल यह कहे कि कुछ कमियां तो है अपने अंदर भी। तो फिर बिना किसी विलम्ब और संकोच के पहला कदम तो उठाना ही चाहिए। इस बढ़ते कदम के बीच अपने अंदर का वह अहम या अभिमान नहीं आना चाहिए जो किसी प्रकार के नेक कार्य या सुलह को करने से रोके। हमारे अंदर यह अभिमान भी नहीं होना चाहिए कि मन की ईर्ष्या या डूबते रिश्ते को बनाने के लिए पहला कदम ‘मैं ही’ क्यों बढाऊँ। ये अपने अंदर का अहम ही होता है जब एक खुशहाल समाज या रिश्ते की नींव को डालने से पहले ही खींच लेता है। हम यह सोंचने लगते हैं कि जब मेरा पड़ोसी, रिश्तेदार या फिर घर का कोई रूठा सदस्य जब मेरे से खुद बात नहीं करता है तो मैं क्यों करूँ ? और यही अभिमान समाज और रिश्तों के उस नेक कार्य को भी बाधित कर देता जहाँ किसी कार्य का होना बेहद आवश्यक होता है।

दौलत से परिपूर्ण कुछ ऐसे लोग भी समाज के हिस्सा होते हैं जो समाज के लिए कलंक मात्र होते हैं। कहने के लिए तो वे खुद को सामाजिक आदमी कहते हैं लेकिन जब समाज में उनके कर्तव्य निर्वहन की बारी आती है तो अदृश्य हो जाते हैं।

एक बेहतर समाज और रिश्तों की मजबूत गढ़ हम तभी स्थापित कर सकते हैं जब हम निःस्वार्थ होकर बेहतरी के लिए कार्य करें। ऐसा नहीं होना चाहिए कि जब हमें खुद के लिए किसी चीज की आवश्यकता हो तब हम आगे बढ़ चढ़कर अपनी भागीदारी निभाएं, उसकी जरूरत महसूस करवाएं और जब अपनी आवश्यकता नहीं हो तो  उसकी अनदेखी कर दें। क्योंकि आजके समाज की वास्तविकता यही है कि जहां पर लोगों का स्वार्थ सिद्ध हो रहा होता है वहां तो वे बढ़चढ़ कर भागीदार बनते हैं। लेकिन उसी समाज के लिए जब सामुहिक भागीदारी की आवश्यकता होती है तब वही लोग पीछे हो जाते हैं। इस प्रकार के स्वार्थी सोंच रखने वाले लोग ना तो सुदृढ समाज का भला कर पाते हैं और नाहीं अपने निजी रिश्ते नातों का निर्वहन कर पाते हैं। जिस दिन इस सत्य को स्वीकार कर लिया गया कि धन दौलत बस परिवार को सुचारू रूप से चलाने और जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने मात्र का एक छोटा जरिया है, उसी दिन समाज के प्रति सुखद अनुभूति का अल्लख जाग उठेगा। क्योंकि किसी भी समाज में इंसान की पहचान, सम्मान और प्रतिष्ठा उसके नित्य कुशल व्यवहार और निस्वार्थ सामाजिक भागीदारी के कारण होती है ना कि उसके धन दौलत के कारण।

दौलत से परिपूर्ण कुछ ऐसे लोग भी समाज के हिस्सा होते हैं जो समाज के लिए कलंक मात्र होते हैं। कहने के लिए तो वे खुद को सामाजिक आदमी कहते हैं लेकिन जब समाज में उनके कर्तव्य निर्वहन की बारी आती है तो अदृश्य हो जाते हैं। वास्तव में इस तरह के तथाकथित सामाजिक लोग हड़पने वाले प्रविर्ती के होते हैं जो गरीबों की खून पसीने की कमाई को लूटने के फिराक में रहते हैं। ऐसे लोगों से संभलने की आवश्यकता है। आइये हमसब मिलकर अपनी आपसी मनमुटाव, ईर्ष्या और अहम का त्याग कर एक बेहतर समाज और रिश्तों को मजबूत करने के लिए आगे बढ़े और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करें। बिना फल की अपेक्षा किये यह हम अपनी कोशिशों को विराम ना दें। यही सोंच हमारे समाज के अधूरे ख्वाब को पूरा करने में सहायक सिद्ध होगा। आज अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर के भूमि पूजन के पावन दिन हमें इसके लिए भी एक संकल्प लेना होगा.

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