Home / National / आजादी का अमृत महोत्सव : स्वतंत्रता के 41 साल पहले कोलकाता के बोस परिवार ने लहराया था पहला तिरंगा

आजादी का अमृत महोत्सव : स्वतंत्रता के 41 साल पहले कोलकाता के बोस परिवार ने लहराया था पहला तिरंगा

कोलकाता, लाखों लोगों की शहादत और दशकों के संघर्ष के बाद मिली आजादी की 75वीं वर्षगांठ पूरा देश आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है। प्यारे वतन की आन-बान और शान तिरंगे के लिए आज भी तिरंगे को देखते ही मन में राष्ट्रवाद की लहरें हिलोरे मारने लगती हैं। आजादी का दिवस 15 अगस्त आते ही इससे संबंधित कई दास्तान स्मरण होने लगती हैं। कोलकाता देश का एकमात्र ऐसा शहर है, जहां सबसे पहले तिरंगा न केवल बनाया गया बल्कि लहराया भी गया है।

कोलकाता के मशहूर पारसी बागान में स्थित बोस परिवार का घर राष्ट्रवाद का ऐसा मंदिर है, जहां आजादी से 41 साल पहले ही तिरंगे को लहरा दिया गया था। दशकों के आंदोलन के बाद आखिरकार हमारे देश को 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से आजादी मिली थी लेकिन बहुत कम लोग यह जानते होंगे कि आजादी से 41 साल पहले 7 अगस्त 1906 को क्रांतिकारियों ने कोलकाता के मानिकतला 14 नंबर पार्सी बागान स्क्वायर (जो वर्तमान में पार्सी बागान लेन के नाम से जाना जाता है) स्थित मकान में ही तिरंगे झंडे को फहराया था। आजादी के इन दीवानों में बोस परिवार के बुजुर्ग से लेकर बच्चे तक ने अपनी भूमिका बखूबी निभाई थी। इस मकान में रहने वाला बोस परिवार संभवत: देश का एकमात्र ऐसा परिवार है, जिसके हर सदस्य ने आजादी के लिए अपनी अपनी भूमिका निभाई और कुर्बानी दी। यहां तक कि अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए देशभर के क्रांतिकारियों ने मिलकर जिस “अनुशीलन समिति” की स्थापना की थी उसकी गतिविधियों का केंद्र बिंदु बोस परिवार का घर ही था।
आज के तिरंगे से अलग था उस तिरंगे का स्वरूप

यहां आजादी के दीवानों ने अखंड भारत का सपना लेकर 1906 में 7 अगस्त को जो तिरंगा फहराया था, वह आज के तिरंगे के जैसा नहीं था बल्कि इस तिरंगे झंडे को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था और उस पर “वंदे मातरम” लिखा था। बसु परिवार के सदस्य और राजशेखर बोस के परपोते सौम्या शंकर बोस ने “हिन्दुस्थान समाचार” से विशेष बातचीत में बताया कि उस दिन की याद में आज भी 7 अगस्त को यहां राष्ट्र को समर्पित कार्यक्रमों का आयोजन होता है और ध्वज फहराया जाता है। प्रभावशाली बंगाली चंद्रशेखर बसु के चार बेटे थे। शशिशेखर बसु, राजशेखर बसु, कृष्णशेखर बसु और गिरिंद्रशेखर बसु। प्रेसीडेंसी कॉलेज कलकत्ता में पढ़ने के बाद गिरिंद्र शेखर बसु ने मेडिकल कॉलेज में चिकित्सा का अध्ययन किया। दादा कृष्ण शेखर बोस नादिया नगरपालिका के अध्यक्ष थे, राजशेखर बोस लेखक थे और रसायन शास्त्र के महारथी भी थे।
क्रांतिकारियों के लिए फंडिंग का भी केंद्र बिंदु था बोस परिवार का घर

इसी घर से अनुशीलन समिति की सारी गतिविधियां संचालित की जाती थीं, जहां से क्रांतिकारियों के सभी खर्चों का भुगतान किया जाता था। खुद राजशेखर बसु ने बम बनाने की विधि स्वतंत्रता सेनानियों को सिखाई थी। अरविंद घोष, बारिन घोष, जगदीश चंद्र बोस, प्रफुल्ल चंद्र रॉय, जतिंद्रनाथ सेन, सत्येंद्रनाथ बोस, शरत चंद्र चट्टोपाध्याय, बिधान चंद्र रॉय, नज़रूल इस्लाम और यहां तक कि रवींद्रनाथ टैगोर यहां नियमित रूप से आते थे। आजादी के दीवानों के लिए यह जगह किसी तीर्थ से कम नहीं थी। हालांकि आज आजादी के बाद यह उपेक्षित है और इसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।
क्रांतिकारियों को दी जाती थी, अंग्रेजों से लड़ने की ट्रेनिंग
सौम्या शंकर ने बताया कि बोस परिवार का उनका यह घर भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय बंगाल में बनी अंग्रेज-विरोधी, गुप्त, क्रान्तिकारी, सशस्त्र संस्था अनुशीलन समिति के लिए प्रशिक्षण केंद्र भी था। इसका उद्देश्य वन्दे मातरम् के प्रणेता व प्रख्यात बांग्ला उपन्यासकार बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय के बताये गये मार्ग का ‘अनुशीलन’ करना था। इसका आरम्भ 1902 में अखाड़ों से हुआ जिसका मुख्य मकसद युवाओं को अंग्रेजों से ट्रेनिंग देना था। मानिकतला के इसी मकान के पास मौजूद अखाड़े में युवाओं को बम बनाने से लेकर शस्त्र चलाने तक और लड़ने से लेकर बौद्धिक प्रचार प्रसार तक, सब कुछ सिखाया जाता था।
यहीं से शुरू हुए आंदोलन की वजह से अंग्रेजों को वापस लेना पड़ा बंग-भंग का फैसला

यहां से शुरू हुए आजादी के आंदोलन की शुरूआत और इसकी गतिविधियों का प्रचार प्रसार ग्रामीण क्षेत्रों सहित पूरे बंगाल में हो गया। इसके प्रभाव के कारण ही ब्रिटिश भारत की सरकार को 1905 के जुलाई में बंग-भंग का निर्णय वापस लेना पड़ा था। इसी वजह से क्रांतिकारियों ने 7 अगस्त 1906 को वंदे मातरम लिखा तिरंगा लहराकर आजादी का उद्घोष किया था। भले ही पूरे देश ने इसी उद्घोष को 41 साल बाद दोहराया लेकिन इसकी नींव बोस परिवार के इसी मकान में पड़ी थी।
शाखा लगाकर स्वयंसेवकों को दी जाती थी ट्रेनिंग

इसकी प्रमुख गतिविधियों में स्थान पर शाखाओं के माध्यम से नवयुवकों को एकत्र करना, उन्हें मानसिक व शारीरिक रूप से शक्तिशाली बनाना ताकि वे अंग्रेजों का डटकर मुकाबला कर सकें। सौम्या शंकर ने बताया कि इसकी याद में हर साल यहां ध्वज फहराया जाता है और लोग राष्ट्रभक्ति की शपथ लेते हैं।
साभार -हिस

Share this news

About desk

Check Also

MODI

पश्चिम बंगाल को बांग्लादेश बनाना चाहती हैं ममता : नरेंद्र मोदी

उत्तर प्रदेश को भी पश्चिम बंगाल बनाना चाहते हैं अखिलेश यादव पुरानी बुआ ने किया …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *