Home / National / मर न सके हम देश की खातिर, लेकिन जी तो सकते हैं…!!!

मर न सके हम देश की खातिर, लेकिन जी तो सकते हैं…!!!

स्वतंत्रता दिवस की सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाइयां। हम सब जानते हैं कि यह आजादी हमें लाखों लोगों की बलिदानी और वर्षों की तपस्या के बाद मिली है। ना जाने कितनी माताओं ने अपने कलेजे के टुकड़ों को खोया है। ना जाने कितनी बहनों की मांग उजड़ गई और ना जाने कितनी बहनों की भाई की कलाई सुनी हो गई। आज भी हमारी सेना बॉर्डर पर देश की सुरक्षा के लिए शहीद हो जाते हैं। देश सेवा के लिए जरूरी नहीं है कि हम बॉर्डर पर सैनिक बनकर ही देश की सेवा करें । अपने व्यवहार, सदाचार और छोटी-छोटी कार्यों से भी हम अपने देश का मान और सम्मान बढ़ा सकते हैं तथा अपने देश की तिरंगा पूरे विश्व में शान से लहरा सकते हैं। आज अपनी कर्तव्यों को कविता के रूप में पहली बार पेश कर रहा हूँ। आशा है आप सभी को पसंद भी आएगी।

पहनकर मास्क-रखकर दूरी, कोरोना को हम हराएंगे,
जो ना माने कोरोना नियम, उसको हम समझाएंगे,
योग और ध्यान से, इम्युनिटी अपना बढ़ाएंगे,
तीसरी लहर न आने पाए, ऐसा कदम उठाएंगे।

नेता जी भी करें नियमों का पालन, ऐसी आशा तो कर सकते हैं।
मर न सके हम देश की खातिर, लेकिन जी तो सकते हैं,
झंडा ऊंचा रहे हमारा, ऐसा कुछ तो कर सकते हैं।

बून्द-बून्द पानी की खातिर, तड़प रहा ईश्वर की संतान है,
लोटे भर की है जहां जरूरत, बाल्टी भर बहा रहा इंसान है,
हाथ से ना गाड़ी धोए, पाइप लगा कर बैठ जाता है,
नल खोलकर शेविंग करे, भविष्य की न चिंता करता है,
ना हो बर्बाद एक बूंद भी पानी, ऐसी कोशिश तो हम कर सकते हैं।

मर न सके हम देश की खातिर, लेकिन जी तो सकते हैं,
झंडा ऊंचा रहे हमारा, ऐसा कुछ तो कर सकते हैं।

सर पर हेलमेट, पहन कर बेल्ट, हम वाहन धीरे चलाएंगें,
ट्रैफिक नियमों का पालन कर, जीवन हम बचाएंगें।

शराब पीकर गाड़ी चलाना, क्यों मौत को दावत देते हैं,
कभी ना करूँ लापरवाही, खुद से वादा तो कर सकते हैं,
मर न सके हम देश की खातिर, लेकिन जी तो सकते हैं,
झंडा ऊंचा रहे हमारा, ऐसा कुछ तो कर सकते हैं।

लावट और भ्रष्टाचार से, लहूलुहान इंसान है,
चंद रुपयों की खातिर, इंसानियत से बड़ा बन गया व्यापार है,
महामारी में भी लूट मचाते, वो इंसान नहीं शैतान हैं,
साँसों की भी सौदा करते, लाशों की भी कीमत लगाते हैं,
ना तोड़ू विश्वास किसी का, यह कसम तो खा सकते हैं,

मर न सके हम देश की खातिर, लेकिन जी तो सकते हैं
झंडा ऊंचा रहे हमारा, ऐसा कुछ तो कर सकते हैं।

मम्मी-पापा के झगड़ों में, उजड़ रहा मेरा संसार है,
सिसकता हूँ डर के मारे, उन्हें नहीं कोई परवाह है,
हम बच्चों की खुशहाली से ज्यादा, उन्हें अपनी बातों की दरकार है,
कोई एक दूजे से पीछे न हो, बस इसका ही टकराव है,
घर में रहे खुशहाली, वो ऐसा कोशिश तो कर सकते हैं।

मर न सके हम देश की खातिर, लेकिन जी तो सकते हैं,
झंडा ऊंचा रहे हमारा, ऐसा कुछ तो कर सकते हैं।।

बेटियों की आबरू पर, पल पल हो रहा प्रहार है,
हर रोज निर्भया मरती है, हो रही इंसानियत शर्मसार है,
राक्षसों से भी नीच है वो, जो नन्हीं बच्चीयों को भी नहीं छोड़ते हैं,
जीते हैं वर्षों तक जेल में वो, यह कैसा न्याय है ?
करो संहार इन दुष्टों का, जो धरती पर अभिशाप है,
दंड नहीं दे सकते हम, लेकिन समाज से तिरस्कार तो कर सकते हैं।

मर न सके हम देश की खातिर, लेकिन जी तो सकते हैं,
झंडा ऊंचा रहे हमारा, ऐसा कुछ तो कर सकते हैं।

नहीं जा सकते बॉर्डर पर तो क्या, हम सजग तो रह सकते हैं,
नज़र रखकर आसपास, देश को चौकन्ना तो कर सकते हैं,
बनकर पुलिस की आंख कान, सच्चा नागरिक तो बन सकते हैं,
देश की रक्षा की खातिर, यह कर्तव्य तो निभा सकते हैं।

मर न सके हम देश की खातिर, लेकिन जी तो सकते हैं,
झंडा ऊंचा रहे हमारा, ऐसा कुछ तो कर सकते हैं।

पग-पग पर जाल बिछाए, दुश्मन छलनी करने को आतुर है,
साम दाम दंड भेद से वो, विभाजित करने को व्याकुल है,
रोजी रोजगार के साथ साथ, दुश्मनों पर भी निगाह जरूरी है,
एकमत और एकजुट होकर, इनको हम रौंद तो सकते हैं,।

मर न सके हम देश की खातिर, लेकिन जी तो सकते हैं,
झंडा ऊंचा रहे हमारा, ऐसा कुछ तो कर सकते हैं।

अभिव्यक्ति के नाम पर, वो देश को छलनी करते हैं,
जब चाहे वो देश को, पूरे विश्व में फजीहत करते हैं,
क्या मजबूरी है सरकारों की, जो इनकी कमर नहीं तोड़ पाती है ?
कब तक करें प्रेम इन गद्दारों से,
जो अपनी भारत माता की इज्जत भी नहीं कर सकते हैं,
मर न सके हम देश की खातिर, लेकिन जी तो सकते हैं,
झंडा ऊंचा रहे हमारा, ऐसा कुछ तो कर सकते हैं।

राजनीति की ये कैसी सियासत, ना मर्यादा ना सम्मान है,
कुर्सी पाने की खातिर, ना बचा कोई ईमान है।

सत्ता पाने के लिए तुम, घुसपैठियों को भी पालते हो,
जनता की पैसों से तुम, उन्हें मौज कराते हो।

सेना के पराक्रम पर, शंका तुम क्यों करते हो
यदि कर नहीं सकते देश को एकजुट, खंडित क्यों तुम करते हो,
मर न सके हम देश की खातिर, लेकिन जी तो सकते हैं,
झंडा ऊंचा रहे हमारा, ऐसा कुछ तो कर सकते हैं।।

नेताओ के रंग न्यारे, जो वोट के लिए बिक जाते हैं,
संरक्षण देते हैं गद्दारों को, जो देश के टुकड़े करते हैं,
अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं,
वो देशद्रोही नारे लगाते हैं, न्यायालय को ललकारते हैं,
नेता जो दे इन्हें संरक्षण, उसका बहिष्कार तो कर सकते हैं।

मर न सके हम देश की खातिर, लेकिन जी तो सकते हैं,
झंडा ऊंचा रहे हमारा, ऐसा कुछ तो कर सकते हैं।

आंदोलन के नाम पर, देश बंधक बन जाता है,
भोले भाले कुछ लोगों को, मोहरा बनाया जाता है,
ठप हो जाता है सब काम काज, वो अपनी तिजोरी भरते हैं,
अपने स्वार्थ की खातिर, वो रेल व सड़क बंद कर देते हैं।

हम भी अपनी हक की खातिर, रेल सड़क खुलवा सकते हैं।
मर न सके हम देश की खातिर, लेकिन जी तो सकते हैं,
झंडा ऊंचा रहे हमारा, ऐसा कुछ तो कर सकते हैं।।

विनय श्रीवास्तव (स्वतंत्र पत्रकार)

Share this news

About desk

Check Also

MODI

पश्चिम बंगाल को बांग्लादेश बनाना चाहती हैं ममता : नरेंद्र मोदी

उत्तर प्रदेश को भी पश्चिम बंगाल बनाना चाहते हैं अखिलेश यादव पुरानी बुआ ने किया …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *