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सावन पर विशेष: आस्था का केंद्र पुरामहादेव मंदिर

नई दिल्ली, शास्त्रों के अनुसार ऋतुओं का लोक मानस और प्रकृति पर गहरा प्रभाव होता है। इसमें भी महत्वपूर्ण यह है कि प्रत्येक मास का किसी न किसी देवी या देवता से संबंध अवश्य होता है। जैसा कि सावन मास देवों के देव महादेव कैलाशपति का महीना कहलाता है। बारिश की बूंदों से नहाए सावन में जब सूरज की किरणें पड़ती हैं तो ऐसा लगता है जैसे प्रकृति की सुंदरता को चार-चांद लग गए हों।

सावन मास में देशभर में महादेव की आराधना के लिए वैसे तो सभी मंदिरों में जलाभिषेक-पूजन को भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। लेकिन इस महीने में कांवड़ में गंगा जल लाकर महादेव का जलाभिषेक करने का बहुत ही महत्व माना जाता है। सावन मास में हरिद्वार से लेकर तमाम राज्यों के राज्य मार्ग कांवड़ियों की भीड़ से पटे नजर आते हैं। ये शिवभक्त तरह-तरह की कांवड़ और झांकियों व अपने नृत्य और गानों से लोगों का ध्यान बरबस ही अपनी ओर खींच लेते हैं। इस दौरान जगह-जगह लगने वाले कांवड़ियों के लिए भंडारे और कांवड़िया सेवा शिविर भाईचारे और सांस्कृतिक विरासत की अनोखी मिसाल पेश करते हैं।

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बहरहाल, देश के अन्य राज्यों की ही तरह पश्चिमी यूपी का इलाका भी सावन के महीने में केसरिया रंग से रंगा हुआ नजर आता है। इस कांवड़ यात्रा के चलते अन्य सभी गतिविधियां तकरीबन महीने भर तक थमी हुईं नजर आती हैं। पश्चिमी यूपी के जिलों में वैसे तो सभी जगहों पर शिवरात्रि को महादेव का जलाभिषेक होता है, लेकिन बागपत में अवस्थित महर्षि परशुराम की तपोस्थली परशुरामेश्वर महादेव यानी पुरामहादेव मंदिर में कांवड़ चढ़ाने वाले भक्तों-कांवड़ियों की जबरदस्त भीड़ उमड़ती है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसकी व्यवस्था में जिला प्रशासन और पुलिस के पसीने छूट जाते हैं। इससे लोगों की आस्था के आलोक में इस मंदिर की महत्ता को बखूबी समझा जा सकता है।
हरनंदी नदी के तट पर था जमदग्नि का आश्रम
उल्लेखनीय है कि बागपत में हरनंदी नदी (हिंडन) के तट के किनारे परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि का आश्रम था। यहां पर वे तप किया करते थे। बाद में यह खेड़ा के नाम विख्यात हुआ। प्राचीन ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। महर्षि परशुराम ने भी यहीं पर तप किया और गुरुकुल खोला था। इस गुरुकुल में भीष्म पितामह और दानवीर कर्ण आदि के शिक्षा ग्रहण करने की बातें सामने आती हैं।

महर्षि परशुराम ने कठोर तप कर महादेव से मांगा था वरदान
यहां से कुछ ही दूरी पर हिंडन नदी तट पर ही महर्षि परशुराम ने कठोर तप किया और महादेव को प्रसन्न कर साक्षात दर्शन किए। फिर उन्होंने महादेव से लोक कल्याण के लिए यहां पर पिंडी के रूप में प्रकट होने का वरदान मांगा था। इस पर कैलाशपति महादेव मुस्कराए और तथास्तु कहकर पिंडी के रूप में प्रकट होकर वहां पर हमेशा-हमेशा के लिए विराजमान हो गए। इसके बाद से यह स्थान परशुरामेश्वर महादेव यानी पुरामहादेव के नाम से विख्यात हुआ। यह परशुरामेश्वर यानी पुरामहादेव परशुराम मंदिर खेड़ा से तकरीबन ढाई सौ मीटर दूर है।

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पुरावशेष आज भी मंदिर में विद्यमान हैं-

परशुराम मंदिर खेड़ा में उनकी माता रेणुका द्वारा बनाये गए घड़े के अवशेष भी पाए गए हैं। कुछ शुभ चिन्ह भी मिले हैं जिनको बेसमेंट में रखा गया है। यहां पर भगवान परशुराम जी के माता-पिता और बहन की मूर्तियां भी स्थापित हैं। यहां पर 24 जनवरी 2013 से अखंड ज्योति जागृत है। इसी दिन से ही इस प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण शुरू हुआ था। इस ज्योति के दर्शन करने मात्र से ही एक सुखद अनुभूति होती है। इस मंदिर का इतिहास इतना विस्तृत है कि उसकी पूर्ण चर्चा संभव नहीं है। ऐसी मान्यता है कि इसी तपोभूमि पर महाऋषि जी भगवान इंद्र से कामधेनु गाय लाये थे। इसी कामधेनु माता के द्वारा आश्रम में आने वाले ऋषि- मुनियों की सेवा होती थी। उनकी कृपा आज भी उसी तरह से भक्तों पर बरस रही है।
पुरातात्विक तथ्य भी प्रमाणित करते हैं मंदिर की प्राचीनता-
महर्षि जमदग्नि और परशुराम के बारे में यहां मिलने वाले प्रमाणों की इतिहासविद भी पुष्टि करते हैं। मुल्तानी मल मोदी कॉलेज, मोदीनगर, गाजियाबाद के एसोसिएट प्रोफेसर कृष्णकांत शर्मा बताते हैं कि उन्होंने इस क्षेत्र का पुरातात्विक सर्वे किया था, जिसमें चित्रित धूसर मृद्भांड मिले हैं जो इस बात को प्रमाणित करते हैं यह क्षेत्र अति प्राचीन स्थल है। उन्होंने कहा कि लोक कथाओं के वर्णन और पुरातात्विक सर्वे के आधार पर महर्षि परश़ुराम के आश्रम के बारे में जो बातें कही जाती हैं, वे सही हैं।

यह मंदिर क्षेत्र लगभग 28 बीघा में फैला है-
यदि हम इसके क्षेत्रफल और स्थान की बात करें तो यह क्षेत्र लगभग 28 बीघा में फैला हुआ है। यह बागपत से 20 किलोमीटर और मेरठ से 25 किलोमीटर बालैनी तथा बालैनी से 3 किलोमीटर हिंडन नदी के तट पर स्थित है जबकि खेड़ा धाम से करीब 250 मीटर की दूरी पर भगवान परशुराम जी द्वारा स्थापित पुरामहादेव मंदिर है। इस पावन तपोभूमि पर पिछले 12 साल से सूरज मुनि महाराज जी और देवमुनि महाराज जी के सानिध्य में हजारों भक्तों के प्रयास से भारतवर्ष के सबसे विशाल भगवान परशुराम मंदिर का नवीन निर्माण किया जा रहा है। इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। एक ओर हिंडन नदी का छोर और खेड़ा तो दूसरी ओर नयी बसावट है। इस मंदिर की ऊंचाई 111 फुट और चौड़ाई 101 फुट है। यह मंदिर अद्भुत रूप से भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में से है। मुनि जी बताते हैं कि मंदिर निर्माण के लिए सर्वप्रथम आसपास के 80 से 85 गांव से सर्व समाज से 2 ईंट 30 रुपये लिए गए। खेड़ा के प्रमुख लोगों से चंदा इकट्ठा करने में मदद ली गई।
सभी भक्तों ने खुलेमन से इस मंदिर के लिए दान दिया। अब तो दिल्ली, हरियाणा आदि राज्यों के सहयोग से मंदिर का निर्माण कार्य शीघ्रता से चल रहा है। मुनि जी ने बताया कि मंदिर के सौंदर्यीकरण के लिए केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार से भी आर्थिक मदद प्राप्त हो रही है। ईश्वर की कृपा, सभी भक्तों के सहयोग और श्रद्धा से जल्दी ही मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण होगा और आने वाले युग युगांतर तक भक्त इस मंदिर में प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त कर सकेंगे।
साभार – हिस

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