जयपुर। राजनीति के लिहाज से राजस्थान जाट प्रभाव वाला प्रदेश माना जाता है। राजस्थान में राजनीति की बात करें और जाटों का जिक्र ना हो ऐसा मुमकिन नहीं है। परसराम मदेरणा और शीशराम ओला जैसे प्रथम श्रेणी के नेताओं से लेकर आज तक अनगिनत जाट नेताओं ने अपनी काबिलियत और सूझबूझ से राजस्थान की राजनीति में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है। अगर राजनीतिक पार्टियों की बात करें तो कांग्रेस बीजेपी में जाटों का समान रूप से वर्चस्व रहा है, लेकिन विशेष रूप से कांग्रेस से जाटों का जुड़ाव रहा है, लेकिन अब जाटों का कांग्रेस से मोहभंग होता दिखाई दे रहा है, खुलकर सामने आई नाराजगी इसकी वजह बताई जा रही है। हालांकि कांग्रेस ने जाटों की नाराजगी को डैमेज कंट्रोल करने के लिए बड़े पैमाने में जाट समाज को टिकट दिए हैं, लेकिन फिर भी कांग्रेस पर से जाटों का आशीर्वाद नहीं मिलता दिखाई दे रहा है। कुल मिलाकर देखना यह है की कांग्रेस जाट नेताओं की नाराजगी को दूर करके कैसे चुनाव में उन्हें अपने खेमे में ला सकती है। वर्तमान हालात देखकर तो यही लगता है कि जाट इस बार प्रदेश की चुनावी हवा बदलने के मूड में हैं।
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जाट नेताओं का वर्चस्व खत्म करने का आरोप
राजनीतिक गलियारों में कहीं न कहीं इस बात की चर्चा रहती है कि कांग्रेस ने एक रणनीति के तहत जात नेताओं का वर्चस्व खत्म करने की कोशिश की है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार ठहराया जाता है। परसराम मदेरणा, महिपाल मदेरणा, शीशराम ओला जैसे शीर्ष उदाहरण दिए जाते हैं। वहीं हाल ही में महिपाल मदेरणा की बेटी और विधायक दिव्या मदेरणा की नाराजगी ने भी जाटों पर गहरा असर डाला है जिससे आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मुश्किल हो सकती है, हालांकि कांग्रेस के ही बड़े जाट नेता गोविंद सिंह डोटासरा कांग्रेस और अशोक गहलोत की पहली पसंद हैं लेकिन फिर भी जाटों पर वो अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब बार नहीं आते।
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राजस्थान में 14 फीसदी आबादी वाला सबसे बड़ा वोटर
सभी राजनीतिक पार्टियां राजाथन में सत्ता के लिए जाटों पर निशाना साधा है क्योंकि जनसंख्या के लिहाज जाट करीब 14 फीसदी है। कांग्रेस और बीजेपी सबसे बड़ा वोट बैंक माना जाता है। कांग्रेस और बीजेपी ने दोनों ही दलों ने सबसे ज्यादा जाटों को ही उम्मीदवार बनाया है। 2018 में जाटों के 33 उम्मीदवार चुनाव जीते।
कांग्रेस ने दोनों बार नहीं बनाया जाट मुख्यमंत्री
वहीं जाट मुखमंत्री बनाने की मांग को हवा देकर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल और जाट महासभा के अध्यक्ष राजाराम मील इस मुद्दे को हवा देने में जुटे हैं। बेनीवाल और मील का कहना है कि कांग्रेस सरकार में दो बार जाट सीएम बनने का मौका मिला लेकिन अशोक गहलोत सीएम बन गए।
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बेनीवाल की रणनीति से कांग्रेस हलकान
हनुमान बेनीवाल के एक रणनीति के तहत जाटों को कांग्रेस से दूर करने के लिए नागौर, जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, सीकर, चूरू, हनुमानगढ़, झुंझुंनू व श्रीगंगानगर जिलों में खुद को जाटों का शुभचिंतक बताते हुए पंचायतों में जाट सीएम और जाट का वोट जाट को देने की अपील करते हुए अभियान चला रखा है जो कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी कर रहा है।