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पुलित्जर पुरस्कार के पीछे का भारत विरोधी षडयंत्र

 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों की सभी कहानी एक तरह की हैं। यह आज से नहीं बल्कि कई दशकों से चल रहा है। पुरस्कार देने के पीछे गहरी साजिश व राजनीति रहती है। इनके माध्यम से भारत, भारतीय संस्कृति, भारतीयता विरोधी लोगों को प्रोजेक्ट किया जाता है और उसके बाद उन्हीं के माध्यम से भारत को नीचा दिखाने का काम किया जाता है।

डा समन्वय नंद

जम्मू-कश्मीर के तीन फोटो पत्रकारों को फीचर फोटोग्राफी के लिए 2020 का पुलित्जर पुरस्कार दिया गया है। जिन तीनों फोटो पत्रकारों को यह पुरस्कार दिया गया है, उसमें से दो कश्मीर के श्रीनगर के हैं, जबकि एक फोटो पत्रकार जम्मू के हैं। डार यासीन, मुख्तार खान श्रीनगर में रहते हैं तथा चन्नी आनंद जम्मू के रहने वाले हैं। इन फोटो पत्रकारों को पुरस्कृत किये जाने के बाद से ही एक बार विदेशी संस्थाओं द्वारा दिये जा रहे पुरस्कार के उनकी मंशा व उसके पीछे साजिश को लेकर में सवाल उठना लाजमी है।

इस पुरस्कार देते समय इस बात का उल्लेख किया गया है कि जम्मू-कश्मीर के तीन फोटो पत्रकारों को पिछले साल अगस्त में धारा 370 के अधिकतर प्रावधान हटाए जाने के बाद क्षेत्र में जारी बंद के दौरान सराहनीय काम करने के लिए 2020 पुलित्जर पुरस्कार में ‘फीचर फोटोग्राफी’ की श्रेणी में सम्मानित किया गया है।

जिन फोटो के माध्यम से इन पुरस्कारों के लिए  इन फोटो पत्रकारों का चयन किया गया है, उस पर नजर डालना अत्यंत जरुरी है। अन्यथा इस पुरस्कार की हकीकत के बारे में पता नहीं लग सकता। ये सारे पत्रकार एक विदेशी समाचार एजेंसी से जुड़े हुए हैं। संस्था द्वारा जिन फोटो के कारण इन फोटो पत्रकारों का पुरस्कार के लिए चयन किया गया है, उन सारे फोटो के जो कैप्शन हैं, उन सभी में कश्मीर को भारत प्रशासित कश्मीर बताया गया है। इन फोटो में कुछ के कैप्सन भी गलत हैं। जैसे इसमें एक फोटो है, जिसमें नीचे कैप्शन लिखा गया है कि 11 साल के बच्चे को भारतीय सेना ने मार दिया है, लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत है। आतंकवादियों ने बच्चे को बंधक बनाने के बाद हत्या कर दी थी। इसलिए इन फोटो का जो कैप्शन है उसमें भी सच्चाई नहीं है। इसके अतिरिक्त इसमें  लगभग समस्त फोटो ऐसे हैं, जिनमें  ये बताने की कोशिश की गई है कि भारतीय सेना इस इलाके में ज्यादती कर रही है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि भारतीय सेना कश्मीर के लोगों का दमन कर रही है, इस बात को इन फोटो के जरिये प्रमाणित करने का प्रयास किया गया है।

पुरस्कार तो केवल एक बहाना है। इसके पीछे के गहरी साजिश को समझने की आवश्यकता है। देश-विदेश में एक तरह की नैरेटिव को साबित करने का प्रयास लगातार किया जाता रहा है कि कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है तथा  कश्मीर में भारतीय सेना अत्याचार करती है। जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कह्नेया कुमार जब कहते हैं कि भारतीय सेना बलात्कार करती है, तो वह उसी नैरेटिव को आगे बढ़ाने के लिए ही इस तरह की बातें करते हैं। कम्युनिष्टों की साहित्य, उनके द्वारा तैयार रिपोर्टों को यदि अध्ययन किया जाए तो उसमें भी इसी नैरेटिव को आगे बढ़ाने के लिए वह लगातार काम करते रहे हैं। केवल इतना ही नहीं, विदेशी पैसों से चलने वाले एनजीओ भी इसी नैरेटिव को आगे बढ़ाने के लिए लगातार अपना काम करते हैं। उसमें एमनेस्टी जैसी तथाकथित मानवाधिकार संगठन हो या फिर अन्य एनजीओ उनका काम करने की एक विशेष दृष्टि रहती है और ये  दृष्टि भारत के खिलाफ उस नैरेटिव को और मजबूत करने की रही है। वास्तव में यह नैरेटिव वह है जो पाकिस्तान की सूट करता है।

अब इस 2020 पुलित्जर पुरस्कार को ही देख लें। इसके तहत भी उसी नैरेटिव को मजबूत करने के लिए इन फोटोग्राफरों को चय़न किया गया है तथा उसके नीचे लिखे कैप्शन भी उसी नैरेटिव को  आगे बढ़ाता है।

कश्मीर में ही आतंकवादियों द्वारा नीरिह निरपराध लोगों की हत्या की जाती है। उसके बाद उन परिवारों के लोग व बच्चों के रोते बिलखते फोटो भी खिंचा जाता है। क्या कभी इस तरह के फोटो के लिए भी किसी फोटो पत्रकार को कोई विदेशी संस्था द्वारा पुरस्कार मिला है ?  इसका उत्तर हमें मिलेगा नहीं मिला है। केवल वैसे ही फोटो को पुरस्कार मिलता है, जिसमें भारत व भारतीय सेना के छवि को धुमिल किया जाता है। इसी तरह देश के अनेक जिले नक्सलवाद प्रभावित हैं और नक्सलवाद प्रभावित इलाकों में नक्सलवादियों के अत्याचार व नीरिह लोगों को गला रेतकर हत्या करने की घटनाएं लगातार आती रहती हैं, लेकिन क्या कभी नक्सलवादियों के दमन व अत्याचारों के फोटो को किसी अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान संस्था द्वारा पुरस्कार दिया गया है ?  इसका उत्तर है ‘नहीं’।

यदि यह पुरस्कार निष्पक्ष रुप से दिया जाता तथा उसके पीछे पुरस्कार प्रदान करने वालों को किसी प्रकार की मंशा नहीं होती तो आतंकवादियों के काले कारनामों तथा नक्सलवादियों की अमानवीयता को उजागर करने वाले फोटो व फोटो पत्रकारों को भी निश्चित रुप से सम्मान प्रदान करती, लेकिन यहां पर अंतर्राष्ट्रीय संस्था निष्पक्ष नहीं है, बल्कि उसका एक निहित मंशा है जो कि भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करना। पाकिस्तान समर्थक व भारत विरोधी नैरेटिव को  आगे बढ़ाना ही इसका एक मात्र उद्देश्य है।

यहां पर एक बात का उल्लेख करना आवश्यक है कि जम्मू के फोटो पत्रकार चन्नी आनंद को भी इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उनका एक फोटो भी इसमें शामिल है। इस फोटो में एक बीएसएफ जवान सीमा की ओर देख रहा है और नीचे कैप्शन में भी जम्मू का भारत प्रशासित न बताकर भारत का बताया गया है। अब सवाल यह है कि चन्नी आनंद का ये फोटो उनके नैरेटिव को आगे नहीं बढ़ा रहा है। ऐसे में उन्हें क्यों यह पुरस्कार देने की घोषणा की गई। कोई इस पुरस्कार को भारत विरोधी प्रोपागंडा न कह दे, इसे बचने के लिए पुरस्कार प्रदान करने वाली संस्था ने आनंद को भी इसमें जोड़ दिया है, ताकि वह निष्पक्ष लग सके।

अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों की सभी कहानी एक तरह की हैं। यह आज से नहीं बल्कि कई दशकों से चल रहा है। पुरस्कार देने के पीछे गहरी साजिश व राजनीति रहती है। इसका उदाहरण रमण मागसेसे सम्मान से लेकर अन्य तथाकथित अंतर्राष्ट्रीय सम्मान हैं। इनके माध्यम से भारत, भारतीय संस्कृति, भारतीयता विरोधी लोगों को प्रोजेक्ट किया जाता है और उसके बाद उन्हीं के माध्यम से भारत को नीचा दिखाने का काम किया जाता है। यह बड़ी गहरी व लंबी रणनीति का हिस्सा है। भारत के लोगों को इसके पीछे गहरी साजिश को समझने की आवश्यकता है।

प्रतिक्रिया – samanwaya.nanda@gmail.com

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