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भगवान अलारनाथ मंदिर, ब्रह्मगिरि में दर्शन हेतु अनुमति नहीं, धारा-144 लागू
भुवनेश्वर. कोरोना वैश्विक महामारी की दूसरी लहर के बीच 24 जून को श्रीमंदिर सेवायतों के द्वारा भगवान जगन्नाथ की देवस्नानपूर्णिमा पूरे आध्यात्मिक परिवेश में संपन्न हो गई. अपनी मानवीय लीला के तहत महास्नान करने के उपरांत भगवान श्री जगन्नाथ तथा श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर अनादिकाल से विराजमान चतुर्धा देवविग्रह अगले 15 दिनों के लिए इलाज के लिए बीमारकक्ष में एकांतवास में चले गये, जहां पर उनका आर्युर्वेद सम्मत इलाज होगा. श्रीमंदिर का कपाट आगामी 15 दिनों के लिए भक्तों के लिए बन्द कर दिया गया है. इस के बाद पुरी से लगभग 23 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित भगवान अलारनाथ मंदिर, ब्रह्मगिरि में श्री जगन्नाथ के दर्शन भगवान अलारनाथ के रुप में करने की परंपरा रही है, लेकिन इस साल यहां कोरोना महामारी के कारण भक्तों के दर्शन पर पावंदी लगा दी गयी है, लेकिन संबंधित नीतियां जारी हैं. आसपास में धारा-144 लागू कर दी गयी है.
मान्यता है कि सत्युग में स्वयं ब्रह्माजी आकर वहां पर प्रतिदिन तपस्या किया करते थे. भगवान अलारनाथ मंदिर का निर्माण नौवीं सदी में राजा चतुर्थभानुदेव ने किया था, जो स्वयं दक्षिण भारत के वैष्वभक्त थे. दक्षिण भारत में आज भी विष्णुभक्त चतुर्भुज नारायण के रुप में उनकी पूजा करते हैं. ब्रह्मगिरि के भगवान अलारनाथ मंदिर की देवमूर्ति काले पत्थर की बनी है, जो साढ़े पांच फीट की है. 1510 ई. में महाप्रभु चैतन्यजी स्वयं वहां आकर भगवान अलारनाथ के दर्शन किये थे. आज सैलानियों का स्वर्ग भी है ब्रह्मगिरि. मंदिर में भगवान अलारनाथ को खीर का भोग प्रतिदिन लगता है, जो काफी स्वादिष्ट होता है. ऐसी मान्यता है कि जिस प्रकार श्रीमंदिर पुरी के महाप्रसाद की जैसी मान्यता है, ठीक उसी प्रकार भगवान अलारनाथ के खीर भोग की भी मान्यता है. पिछले कई वर्षों से भगवान अलारनाथ मंदिर, ब्रह्मगिरि की साफ-सफाई आदि का जिम्मा स्वयं ओडिशा सरकार ने ले रखा है. यह भी प्रतिवर्ष देखने को मिलता है कि ओडिशा के बड़े-बुजुर्ग जगन्नाथभक्त उन 15 दिनों में कम से कम एकबार ब्रह्मगिरि जाकर भगवान अलारनाथ के दर्शन अवश्य करते हैं, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के कुप्रभाव को देखकर इस वर्ष ओडिशा सरकार ने दर्शन पर पूरी तरह से रोक लगा दी है. ऐसे में 15 मई, 2021 को अक्षय तृतीया, 21 दिवसीय चंदनयात्रा तथा 24 जून को देवस्नान पूर्णिमा पुरी में बिना भक्तों के सिर्फ सेवायतों के द्वारा संपन्न हुई. दूरदर्शन तथा सभी टेलीविजन चैनलों के सीधे प्रसारण के माध्यम से करोड़ों भक्तों ने अपने-अपने घर पर ही उनका अलौकिक आनन्द उठाये. ठीक इसी प्रकार से आगामी 12 जुलाई, 2021 को भगवान जगन्नाथ की विश्वप्रसिद्ध रथयात्रा का भी अलौकिक आनन्द उठाएंगे. रथारुढ़ महाबाहु के दर्शन मात्र से अपने मानव-जीवन को सार्थक बनाएंगे.
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