इण्डो एशियन टाइम्स, ब्यूरो, नई दिल्ली
आर्थिक समीक्षा में यह बात रेखांकित की गई है कि वर्ष 2020 के दौरान जहां एक ओर कोविद -19 महामारी ने व्यापक कहर ढाया, वहीं दूसरी ओर वैश्विक स्तर पर आर्थिक सुस्ती गहरा जाने की आशंका है जो वैश्विक वित्तीय संकट के बाद सर्वाधिक गंभीर स्थिति को दर्शाती है। लॉकडाउन और सामाजिक दूरी से जुड़े विभिन्न मानकों के कारण पहले से ही धीमी पड़ रही वैश्विक अर्थव्यवस्था और भी अधिक सुस्त हो गई। वर्ष 2020 में वैश्विक स्तर पर आर्थिक उत्पादन में 3.5 प्रतिशत (आईएफएम ने जनवरी 2021 में यह अनुमान लगाया है) की गिरावट आने का अनुमान है, जो पूरी शताब्दी में सर्वाधिक गिरावट को दर्शाती है। इसे ध्यान में रखते हुए दुनिया भर की सरकारों और केन्द्रीय बैंकों ने अपनी-अपनी अर्थव्यवस्था को आवश्यक सहारा देने के लिए अनेक नीतिगत उपाय किए जैसे कि महत्वपूर्ण नीतिगत दरों में कमी की गई, मात्रात्मक उदारीकरण उपाय किए गए, कर्जों पर गारंटी दी गई, नकद राशि हस्तांतरित की गई और राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज घोषित किए गए। भारत सरकार ने महामारी से उत्पन्न विभिन्न व्यवधानों को पहचाना और इसके साथ ही कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों द्वारा भारत के लिए निराशाजनक विकास अनुमानों को व्यक्त किए जाने के बीच देश की विशाल आबादी, उच्च जनसंख्या घनत्व और अपेक्षा से कम स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचागत सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए अपने देश के लिए विशिष्ट विकास मार्ग पर चलना सुनिश्चित किया।
आर्थिक समीक्षा में इस ओर ध्यान दिलाया गया है कि देश में महामारी का प्रकोप शुरू होने के समय (जब भारत में कोविद के केवल 100 पुष्ट मामले ही थे) ही जिस तरह से काफी सख्त लॉकडाउन लागू किया गया वह यह दर्शाता है कि इससे निपटने के लिए भारत द्वारा उठाए गए कदम कितने मायनों में अनूठे थे। पहला, महामारी विज्ञान और आर्थिक अनुसंधान दोनों से ही प्राप्त निष्कर्षों को ध्यान में रखकर नीतिगत उपाय किए गए। विशेषकर महामारी के फैलने को लेकर व्याप्त अनिश्चितता को ध्यान में रखते हुए सरकारी नीति के तहत हैनसन और सार्जेंट के नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाले अनुसंधान (2001) को लागू किया गया जिसके तहत ऐसी नीति अपनाने की सिफारिश की गई है जिसमें बेहद विषम परिदृश्य में भी कम-से-कम लोगों की मृत्यु हो। अप्रत्याशित महामारी को ध्यान में रखते हुए इस बेहद विषम परिदृश्य में अनेकों जिंदगियां बचाने पर विशेष जोर दिया गया। इसके अलावा, महामारी विज्ञान संबंधी अनुसंधान में विशेषकर ऐसे देश में शुरू में ही अत्यंत सख्त लॉकडाउन लागू किए जाने के महत्व पर प्रकाश डाला गया है जहां अत्यधिक जनसंख्या घनत्व के कारण सामाजिक दूरी के मानकों का पालन करना काफी कठिन होता है। अत: लोगों की जिंदगियां बचाने पर फोकस करने वाली भारत के नीतिगत मानवीय उपाय के तहत यह बात रेखांकित की गई कि शुरू में ही सख्त लॉकडाउन लागू किए जाने से भले ही लोगों को थोड़े समय तक कष्ट हों, लेकिन इससे लोगों को मौत के मुंह से बचाने और आर्थिक विकास की गति तेज करने के रूप में दीर्घकालिक लाभ प्राप्त होंगे। दीर्घकालिक लाभ हेतु अल्पकालिक कष्ट उठाने के लिए हमेशा तैयार रहने वाले भारत द्वारा किए गए विभिन्न साहसिक उपायों से ही देश में अनेकों जिंदगियों को बचाना और ‘V’ आकार में आर्थिक विकास संभव हो पाया है।
दूसरा, भारत ने इस बात को भी अच्छी तरह से काफी पहले ही समझ लिया कि महामारी से देश की अर्थव्यवस्था में वस्तुओं की आपूर्ति और मांग दोनों ही प्रभावित हो रही हैं। इसे ध्यान में रखते हुए अनेक सुधार लागू किए गए, ताकि लॉकडाउन के कारण वस्तुओं की आपूर्ति में लंबे समय तक कोई खास व्यवधान न आए। इस दृष्टि से भी भारत का यह कदम सभी प्रमुख देशों की तुलना में अनूठा साबित हुआ है। वस्तुओं की मांग बढ़ाने वाली नीति के तहत इस बात को ध्यान में रखा गया कि विभिन्न वस्तुओं, विशेषकर गैर-आवश्यक वस्तुओं की कुल मांग के बजाय बचत पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए जो व्यापक अनिश्चितता की स्थिति में काफी बढ़ जाती है। अत: महामारी के आरंभिक महीनों, जिस दौरान अनिश्चितता बेहद ज्यादा थी और लॉकडाउन के तहत आर्थिक पाबंदियां लगाई गई थीं, में भारत ने अनावश्यक वस्तुओं के उपभोग पर बहुमूल्य राजकोषीय संसाधन बर्बाद नहीं किया। इसके बजाय नीति में सभी आवश्यक वस्तुओं को सुनिश्चित करने पर फोकस किया गया। इसके तहत समाज के कमजोर तबकों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरित करने और 80.96 करोड़ लाभार्थियों को लक्षित करने वाले विश्व के सबसे बड़े खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम पर ध्यान केन्द्रित किया गया। भारत सरकार ने संकटग्रस्त सेक्टरों को आवश्यक राहत प्रदान करने के लिए आपातकालीन ऋण गारंटी योजना भी शुरू की जिससे कि विभिन्न कंपनियों को अपने यहां रोजगारों को बनाए रखने और अपनी देनदारियों की अदायगी में मदद मिल सके। ‘अनलॉक’ चरण, जिस दौरान अनिश्चितता के साथ-साथ बचत करने की जरूरत कम हो गई और आर्थिक आवाजाही बढ़ गई, में भारत सरकार ने अपने राजकोषीय खर्च में काफी वृद्धि कर दी है। अनुकूल मौद्रिक नीति ने पर्याप्त तरलता या नकदी सुनिश्चित की और मौद्रिक नीति का लाभ लोगों को देने के लिए अस्थायी मोहलत के जरिए कर्जदारों को तत्काल राहत दी गई। अत: भारत की मांग बढ़ाने संबंधी नीति के तहत यह बात रेखांकित की गई है कि केवल बर्बादी को रोकने पर ही ब्रेक लगाया जाए और विभिन्न गतिविधियों में तेजी लाने का काम निरंतर जारी रखा जाए।
वर्ष 2020 ने नोवल कोविद -19 वायरस का व्यापक कहर पूरी दुनिया पर ढाया जिससे लोगों की आवाजाही, सुरक्षा और सामान्य जीवन यापन सभी खतरे में पड़ गया। इस वजह से भारत सहित समूची दुनिया पूरी शताब्दी की सबसे कठिन आर्थिक चुनौती का सामना करने पर विवश हो गई। इस महामारी का कोई इलाज या टीका न होने के मद्देनजर इस व्यापक संकट से निपटने की रणनीति सरकारों की सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति पर ही केन्द्रित हो गई। जहां एक ओर महामारी के बढ़ते प्रकोप को नियंत्रण में रखने की अनिवार्यता महसूस की जा रही थी, वहीं दूसरी ओर इसे काबू में रखने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन के तहत विभिन्न आर्थिक गतिविधियों पर लगाई गई पाबंदियों से उत्पन्न आर्थिक सुस्ती से लोगों की आजीविका भी संकट में पड़ गई। आपस में जुड़ी इन समस्याओं के कारण ही ‘जान भी है, जहान भी है’ की नीतिगत दुविधा उत्पन्न हो गई।