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कीटनाशक प्रबंधन विधेयक-2020 भारतीय किसानों एवं कृषि के लिए होगा नुकसानदायक

  • अनुमोदन से पहले इसकी समीक्षा ज़रूरी

  • पीएमबी की खामियां भारतीय खाद्य सुरक्षा, कृषि उत्पाकदता एवं किसानों की आय पर उत्पन्न कर सकती हैं दुष्प्रभाव

नई दिल्ली. 23 मार्च 2020 को राज्य सभा में कीटनाशक अधिनियम 1968 के स्थान पर कीटनाशक प्रबन्धन विधेयक 2020  प्रस्तुत किया गया, जो वर्तमान में भारत में कीटनाशकों के पंजीकरण, निर्माण, निर्यात, बिक्री और उपयोग को विनियमित करता है। हालांकि भारतीय कृषि को लाभान्वित करने के इरादे से यह विधेयक प्रस्तुत किया गया है, किंतु इसमें मौजूद कई खामियां भारतीय कृषि और किसानों के हितों को नुकसान पहुंचा सकती हैं।

संसद के आगामी मानसून सत्र के दौरान इस विधेयक पर चर्चा की जाएगी, जिसकी शुरूआत 14 सितम्बर 2020 से होनी है।

अपने मौजूदा स्वरूप में पीएमबी में ऐसी कई खामियां हैं जो 2022तक किसानों की आय को दोगुना करने के केन्द्र सरकार के लक्ष्य को सीधे प्रभावित कर सकती हैं। किसानों की आय दोगुना करने पर आयोजक समिति ने कहा है ‘‘भारत में खरपतवार, कीटों, रोगों और रेाडेन्ट्स के कारण किसान की 15 से 25 फीसदी फसल नष्ट हो जाती है। हालांकि कीटनाशक, फसल उत्पादकता को सुरक्षित रखने के लिए बेहद अनिवार्य हैं। भारत में प्रति हेक्टेयर कीटनाशकों के उपयोग की दर अन्य देशों की तुलना में बेहद कम है। भारत में 0.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर कीटनाशक का उपयोग किया जाता है, जबकि यूएसए में यह आंकड़ा 7.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, जापान में 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और कोरिया में 6.6 किलोग्रम प्रति हेक्टेयर है।

पीएमबी 2020 घरेलू फसल सुरक्षा उद्योग की प्रभाविता को सीमित करता है, जो किसानों को किफ़ायती एवं प्रभावी उत्पाद उपलब्ध कराता है- इनमें से ज़्यादातर छोटे किसान है। पीएमबी 2020 किसानों की आजीविका को खतरे में डालकर खाद्यसुरक्षा के लिए चिंता का कारण बन सकता है।

किसान समुदाय, समाज एवं उद्योग के हितों को सुनिश्चित करने के लिए संसद में विधेयक पर परामर्श की आवश्यकता है। विधेयक को समीक्षा हेतु संसद सदस्यों की विशिष्ट समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए तथा भारतीय कृषि, किसानों एवं कीटनाशक उद्योग की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए ज़रूरी बदलाव किए जाने चाहिए। अगर भारत कीटनाशकों के निर्माता एवं आपूर्तिकर्ता के रूप में आत्मनिर्भर बनना चाहता है तो हमें खाद्य सुरक्षा के लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए लोगों के लिए रोज़गार के अवसर भी उत्पन्न करने होंगे।

फसलों की सुरक्षा में कीटनाशकों के महत्व पर चर्चा करते हुए डॉ अजीत कुमार, चेयरमैन (टेकनिकल कमेटी)- क्रॉप केयर फेडरेशन ऑफ इण्डिया ने कहा, ‘‘भारतीय किसानों का कल्याण और देश के खाद्य सुरक्षा लक्ष्य, फसल सुरक्षा उत्पादों के उचित इस्तेमाल से जुड़े हैं। कीटनाशकों ने हमेशा से किसानों की फसलों को कीटों के हमले से सुरक्षित रखने में मदद की है। कुछ कीटों के हमलेे बड़े पैमाने पर होते हैं- जैसे हाल ही में देश के कई हिस्सों में टिड्डों ने फसलों पर हमला किया। अगर किसानों ने समय रहते कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं किया होता, तो उनकी फसलें नष्ट हो जातीं और उनकी आय पर बहुत बुरा असर पड़ता। पीएमबी 2020 में इन सभी मुद्दों पर विचार किया जाना चाहिए तथा कुछ विशेष प्रावधानों की समीक्षा की जानी चाहिए जो कीटनाशकों की उपलब्धता और सुलभता को प्रभावित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए पंजीकरण समिति के पास कीटनाशकों के पंजीकरण की समीक्षा करने का अधिकार है, जिसके बाद समिति बिना किसी वैज्ञानिक मूल्यांकन केे कीटनाशकों के उपयोग को निलम्बित, निरस्त अथवा यहां तक कि प्रतिबंधित भी कर सकती है। ऐसी स्थिति में भारतीय किसानों की उत्पादकता और आय पर बुरा असर पड़ेगा। तदनुसार, किसानों, फसल सुरक्षा उद्योग तथा भारत के फसल सुरक्षा लक्ष्यों के हितों को सुरक्षित रखने के लिए पंजीकरण समिति के फैसलों की समीक्षा हेतु स्वतन्त्र विनियामक की आवश्यकता है।

डॉ कृष्ण बीर सिंह चौधरी, अध्यक्ष, भारत कृषक समाज ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी बार-बार किसानों की आय दोगुना करने पर ज़ोर देते रहें हैं, वे किसानों का खर्च कम करने की बात करते हैं, किंतु पीएमबी 2020 में इन प्रयासों की पुष्टि नहीं होती। भारतीय किसान कड़ी मेहनत करता है, अपना खून पसीना बहाकर सुनिश्चित करता है कि देश के नागरिकों को अच्छा भोजन मिले, इसके बावजूद निष्पक्ष कृषि प्रथाओं के लिए किसानों की मांगों को पूरा नहीं किया जाता। 2018 में गठित डॉ अशोक डालवाई कमेटी के समक्ष प्रस्तुत मांगों में घरेलु एवं स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देने, भारत से कृषि निर्यात बढ़ाने की मांग की गई, ये सभी पहलु पीएमबी 2020 से नदारद हैं। वास्तव में कमेटी के समक्ष आयात एवं आयातित सामग्री पर निर्भरता कम करने का सुझाव दिया गया था, किंतु मौजूदा पीएमबी से आयात पर निर्भरता बढ़ेगी तथा कृषि रसायनों के निर्यात को भी नुकसान पहुंचेगा। हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि पंजीकरण प्रक्रिया में तेज़ी लाएं और भारतीय निर्माताओं को कीटनाशक विकसित एवं निर्यात करने की अनुमति दें, ताकि देश में रोज़गार के अवसर उत्पन्न हों, विदेशी मुद्रा विनिमय को बढ़ावा मिले। खासतौर पर ऐसे समय में यह और भी ज़रूरी हो जाता है जब भारतीय कीटनाशकों की मांग दुनिया भर में बढ़ रही है। ऐसे में हम आत्मनिर्भर बनने के सपने को साकार कर सकते हैं। प्रेस्क्रिप्शन क्लॉज़ को भी हटाया जाना चाहिए और बिल को चुनिंदा समिति के समक्ष भेजा जाना चाहिए। उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा कि कीमतों में अंतर की बात करें तो कपास की खेती में उपयोग की जाने वाली एमामेक्टिन बेंज़ोएट शुरूआत में एक एमएनसी द्वारा रु10,000 प्रति किलो की लागत पर बेची और आयात की जाती थी। तीन साल बाद इसी उत्पाद का निर्माण एक घरेलू कंपनी करने लगी, जिसके बाद इसकी कीमत रु 3500 प्रति किलोग्राम हो गई। तो अगर आयातित सामग्री को बढ़ावा दिया जाता है तो किसान का अस्तित्व कैसे बना रह सकता है। अगर पीएमबी को मौजूदा स्वरूप में राज्य सभा में पारित कर दिया जाता है, तो न केवल भारतीय कृषि पर बल्कि किसानों की आजीविका पर भी दूरगामी प्रभाव पड़ेंगे।

उदाहरण के लिए धारा 23 उन कीटनाशकों के पुनःपंजीकरण का प्रावधान देती है, जो पहले से 1968 अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं। पीएमबी के अनुसार इस तरह का पंजीकरण विधेयक लागू होने के बाद सिर्फ 2 सालों तक वैध होगा। इस अवधि में निर्माता को पंजीकरण समिति से आवेदन कर नया पंजीकरण प्राप्त करना होगा, इसके बाद ही वे दो साल के बाद उत्पाद का निर्माण और बिक्री जारी रख सकते हैं। इस प्रावधान में कीटनाशक उद्येग की अस्थिरता दिखाई देती है, यह भारतीय कृषि को बुरे तरीके से प्रभावित करेगा क्योंकि हो सकता है कि किसानों के पास कई उत्पाद उपलब्ध न रहें, अगर पंजीकरण समिति समय पर पंजीकरण न कर सके। विधेयक में इस तथ्य को शामिल किया जाना चाहिए कि 1968 अधिनियम के तहत दिया गया हर पंजीकरण दो साल की सीमित अवधि के बिना ही पीएमबी के तहत भी अनुमोदित माना जाए।

पीएमबी 2020 के अन्य प्रावधानों का भी किसानों की आजीविका पर असर पड़ सकता है, जैसेः

  • सरकारी अधिकारियों के लिए प्रस्तावित अनपेक्षित शक्तियां, जिससे  किसानों के लिए ज़रूरी फसल सुरक्षा उत्पादों की नियमित उपलब्धता बाधित होगी।
  • पंजीकृत कीटनाशकों की सतत समीक्षा का प्रावधान, जिनके उत्पादन को बंद करने से ज़रूरी फसल सुरक्षा उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला गंभीरता से बाधित होगी।
  • पीएमबी में किसी भी कीट के आपातकालीन हमले के दौरान कीटनाशकों के आपातकालीन उपयोग के लिए अनुमोदन का प्रावधान नहीं है। इससे फसलें टिड्डें के हमले से संवेदनशील हो जाएंगी, जिसके चलते हाल ही में भारत के कई हिस्सों में विनाश देखा गया। इसके अलावा अन्य कीटों जैसे आर्मीवर्म और बॉलवर्म आदि के प्रति भी फसलों की संवेदनशीलता बढ़ेगी।

फसल सुरक्षा किसानों की आय को दोगुना करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, पीएमबी इसमें मुश्किलें पैदा करेंगा क्योंकि कीटों और बीमारियों के हमले के कारण किसानों की आय दोगुना करना दूर का सपना बनकर रह जाएगा। इन सभी परिप्रेक्ष्यों को देखते हुए विधेयक फसल सुरक्षा उद्योग से जुड़े कई मु्द्दों पर, किसानों एवं समाज के लिए चिंता का विषय बन गया है, ऐसे ही कुछ मुद्दे हैंः

  1. आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इण्डिया मिशन में रूकावट

पीएमबी कीटनाशक निर्माताओं को उन कीटनाशकों को भारत में निर्माण और निर्यात करने की अनुमति नहीं देता, जिन्हें यूएस, यूरोप, जापान एवं अन्य देशों में अनुमोदित किया गया है। ऐसे में पीएमबी में संशोधन की आवश्यकता है, ताकि भारतीय संस्थाएं भी इन कीटनाशकों का निर्माण एवं निर्यात कर सकें तथा देश में रोज़गार के अवसर बढ़ाकर, विदेशी मुद्रा के विनिमय को प्रोत्साहित किया जा सके। इसके बाद ही भारतीय निर्यातक किसानों को किफ़ायती विकल्प उपलब्ध करा सकते हैं और पीएमबी को मेक इन इण्डिया मिशन के अनुरूप बनाया जा सकता है।

देश में ऐसे किसी भी फॉर्मूले के पंजीकरण से पहले तकनीकी श्रेणी के कीटनाशक के पंजीकरण की अनिवार्यता नहीं है। परिणामस्वरूप आयातित फॉर्मूला को गैर-निष्पक्ष फायदा मिलता है, जिनमें गैर-अनुमोदित, निम्न श्रेणी के, अविनियमित या एक्सपायर्ड कीटनाशक हो सकते हैं। किंतु भारतीय फॉर्मूला निर्माताओं को सिर्फ अनुमोदित स्रोतों से टेकनिकल श्रेणी के कीटनाशक ही प्राप्त करने होते हैं, जिससे किसानों के लिए किफायती स्थानीय विकल्पों की उपलब्धता सीमित हो जाती है।

  1. भारत में कारोबार की सुगमता (ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस) में रूकावट

जब विभिन्न कृषि जलवायु परिस्थितियों वाले देशों में कीटनाशक को प्रतिबंधित किया गया है, ऐसे में पंजीकरण की समीक्षा अथवा कथित बेहतर विकल्पों का दावा फसल सुरक्षा उत्पादों को मनमाने तरीके से हटाने की पुष्टि करता है।

धारा 22 पंजीकरण समिति को कीटनाशक की समीक्षा के लिए सशक्त बनाती है, जिसके बाद समिति किना किसी वैज्ञानिक मूल्यांकन या प्रकाशन के- किसी विशिष्ट कीटनाशक के उपयोग को निलम्बित, निरस्त या पूरी तरह से प्रतिबंधित कर सकती है। धारा 35 राज्य एवं केन्द्र सरकार को अनुमति देती है कि वे बिना किसी वैज्ञानिक आधार या स्पष्टीकरण के 18 महीनों तक के लिए किसी भी कीटनाशक को प्रतिबंधित कर सकते हैं। ऐसे में निर्माता को 18 महीनों तक के लिए अपनी फैक्टरियों को बंद करना पड़ सकता है। अगर यह प्रतिबंध बाद में वापस ले भी लिया जाए तो निवेश बेकार हो जाएगा और निर्माता फिर से और निवेश कर काम शुरू करनी करेगा। धारा 30 (2) कीटनाशक के निर्माण, संग्रहण एवं बिक्री के लिए दिएगए लाइसेंस को रद्द कर सकती है अगर लाइसेंस धारक लाइसेंस के नियमों का उल्लंघन करे। आमतौर पर एक लाइसेंस में कई कीटनाशक शामिल होते हैं। ऐसे में यह उल्लंघन एक ही कीटनाशक तक सीमित किया जाना चाहिए। किंतु कथित प्रक्रिया में लाइसेंस में शामिल सभी कीटनाशक शामिल होते हैं। इसलिए उल्लंघन के मामलों में लाइसेंस का निरस्तीकरण एक ही प्रासंगिक कीटनाशक तक सीमित किया जाए।

  1. वैद्यीकरण का कमज़ोर पड़ना

पीएमबी, हाल ही में कंपनी अधिनियम 2013 के अनुसार सरकार द्वारा कारोबार संचालन में  अवैद्यता को दूर करने के लक्ष्य के विपरीत है। पीएमबी में बड़े पैमाने पर देयताएं कीटनाशक निर्माता पर थोपी गई हैं, जबकि इस तथ्य को संज्ञान में नहीं लिया गया कि देयताएं कई अन्य कारकों पर भी निर्भर करती हैं, जो नियन्त्रण के दायरे से बाहर होते हैं। चूंकि हर निर्माता को पंजीकरण का प्रमाणपत्र दिया जाता है, ऐसे में उसकी ज़िम्मेदारी सिर्फ तभी होनी चाहिए अगर एक कीटनाशक के निर्माण में नियमों का उल्लंघन किया जाए। विषैले कीटनाशकों का उपयोग सावधानीपूर्वक कियाजाना चाहिए। पीएमबी में उपयोगकर्ता द्वारा कीटनाशक के ज़िम्मेदाराना उपयोग को भी शामिल किया जाना चाहिए। अगर एक कीटनाशक पंजीकरण प्रमाणपत्र के अनुरूप बनाया जाए और इसके उपयोग पर उचित निर्देश दिए गए हों किंतु उपयोगकर्ता इनका अनुपालन नहीं कर रहा है तो इसके लिए निर्माता ज़िम्मेदार नहीं हो सकता।

इस तरह के मामलों  में एक उचित प्रणाली का निर्माण किया जाए जहां नियमों का उल्लंघन करने वाले के लिए मौद्रिक जु़र्माने का विकल्प हो। इससे लम्बे समय तक चलने वाली मुकदमेबाजी से बचा जा सकता है। पीएमबी के लिए खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 (धारा 69) और ड्रग एवं कॉस्मेटिक अधिनियम,1940 (धारा 32बी) के प्रावधानों पर भी विचार किया जा सकता है।

  1. विनियामक की आवश्यकता

वर्तमान में कई अन्य पहलुओं के बीच पंजीकरण समिति को कीटनाशकों के पंजीकरण के लिए अनुमोदन देने तथा पंजीकरण की समीक्षा की अनुमति दी गई है। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्त के खिलाफ़ है। इसके अलावा, पंजीकरण समिति के फैसले केे खिलाफ कोई भी अपील जो भारत सरकार के संयुक्त संचिव-स्तरीय अधिकारी के समक्ष की जाए- यह प्रारूपिक तौर पर सुशासन का नमूना नहीं होगा। उपभोक्ताओं के हितों को सुरक्षित रखने, सुशासन हेतु निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को बढ़वा देने के लिए स्वतन्त्र विनियामक की आवश्यकता है जो पंजीकरण समिति के फैसलों का मूल्यांकन एवं समीक्षा कर सके।

उपरोक्त के अलावा, उत्पाद देयता एक अन्य चुनौती है, चूंकि आपूर्ति श्रृंखला के सभी अवयवों- निर्माता, पैकर और थोक विक्रेता आदि के लिए सीमित देयताओं हेतु विनियामक ढांचा नहीं बनाया गया है। इसलिए, ज़्यादातर देयताएं निर्माता पर ही थोप दी गई हैं। पीएमबी को निर्माता की देयता को सीमित करना चाहिए। खाद्यसुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 की धारा 27 के तहत उत्पाद देयता सुनिश्चित की जानी चाहिए जिसके अनुसार ‘‘आपूर्ति श्रंृखला से जुड़े हर अवयव जैसे निर्माता, पैकर, थोकविक्रेता, वितरक और विक्रेता’ सभी की ज़िम्मेदारी होती है।

अगर इन संशोधनों को लागू किया जाए तो यह प्रस्ताव भारतीय किसानों और कृषि क्षेत्र के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है। संशेाधित मसौदी को सार्वजनिक डोमेन में प्रकाशित किया जाना चाहिए ताकि किसान सहित, सभी हितधारक इस पर अपनी प्रतिक्रिया दे सकें, इससे पहले कि इस विषय पर संसद में चर्चा शुरू हो। भारतीय खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने एवं किसानों की आय दोगुना करने के लिए ये उपाय बेहद अनिवार्य हैं।

सीसीएफआई के बारे मेंः सीसीएफआई 50 से अधिक भारतीय निर्माताओं की एकीकृत संस्था है जो कृषि एवं संग्रहण प्रथाओं में फसल उत्पादन और किसान सुरक्षाके आधुनिक सिद्धान्तों के साथ भारतीय कृषि रसायन उद्योग में सकारात्मक बदलाव लाने केे लि तत्पर है। फसलों को होने वाले नुकसान को कम करना इसका एकमात्र उद्देश्यहै ताकि किसानों की आय बढ़ाकर उनके जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाया जा सके। यह संगठन किसानों, शोधकर्ताओं एवं वैज्ञानिकों सहित हर स्तर पर सरकार और उद्योग के बीच एक ज़िम्मेदार कड़ी की भूमिका निभाता है। यह सभी हितधारकों जैसे कॉर्पोरेट्स, कारोबार एवं चैनल साझेदारों और किसानों के फायदे के लिए सरकारी नीतियों के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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