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स्कूलों के पाठ्यक्रम में परिवार नियोजन को प्राथमिकता से शामिल किया जाए
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जन्मदर नियंत्रित रखने के लिए राज्य सरकारों से लेकर पंचायत स्तर तक प्रोत्साहन दिया जाए
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पल्स पोलियो अभियान की तर्ज पर घर-घर पहुंचाया जाए “छोटा परिवार-सुखी परिवार” का संदेश
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धर्मगुरुओं और सामुदायिक नेताओं को भी भागीदार बनाया जाए
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शिक्षित महिला नेताओं को अग्रणी जिम्मेदारी दी जाए, लोगों को टैक्स छूट जैसे प्रोत्साहन भी दिये जाएं
रायपुर. जेएसपीएल के चेयरमैन नवीन जिन्दल ने आह्वान किया है कि भारत को विकसित और देशवासियों को खुशहाल बनाने के लिए जनसंख्या नियंत्रण जागरूकता अभियान को और तेज किया जाए. उन्होंने स्वास्थ्य सुविधाओं में अपेक्षाकृत अधिक निवेश और बेटियों की शिक्षा पर जोर देते हुए कहा कि पल्स पोलियो अभियान की तर्ज पर जनसंख्या नियंत्रण जागरूकता अभियान चलाया जाए तो हमारे देश को कोविड-19 व अन्य घातक बीमारियों से मुक्ति मिलेगी ही, भुखमरी व कुपोषण से भी देशवासियों को छुटकारा मिलेगा. इसके लिए उन्होंने सामुदायिक नेतृत्व और टैक्स छूट जैसे प्रोत्साहन पैकेज देने का सुझाव भी दिया है.
विश्व जनसंख्या दिवस पर आज अपने ब्लॉग के माध्यम से जिन्दल ने सरकार को सुझाव दिया कि राष्ट्रीय स्तर पर स्कूली पाठ्यक्रमों में परिवार नियोजन संबंधी तथ्यों को प्राथमिकता दी जाए. उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों से लेकर पंचायत स्तर तक ऐसा अभियान चलाया जाए, जिससे प्रत्येक घर तक दो बच्चे- सबसे अच्छे का संदेश पहुंच जाए. केंद्र सरकार इस कार्य में अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों को प्रोत्साहित करने की नीति भी बनाए और उन्हें धन आवंटन में पर्याप्त सहयोग दे.
उन्होंने याद दिलाया कि जिस तरह पल्स पोलियो नियंत्रण में धर्मगुरुओं और सामुदायिक नेताओं ने भागीदारी कर देश को पोलियोमुक्त कराया, उसी तर्ज पर जनसंख्या नियंत्रण के लिए भी अभियान चलाया जाए ताकि देश के प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग कर देशवासियों को खुशहाल बनाने का मार्ग प्रशस्त हो.
ब्लॉग के मुताबिक 2018 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स के मुताबिक भारत 119 देशों में 103 वें स्थान पर था. 137 करोड़ की आबादी वाला हमारा देश 2027 तक दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा, जो एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि बढ़ती आबादी से सामाजिक असमानता बढ़ेगी. अमीर-गरीब की खाई और चौड़ी हो जाएगी इसलिए जनसंख्या नियंत्रण राष्ट्रहित में आवश्यक है जिसके लिए लोगों को समझाना-बुझाना आवश्यक है. इसकी जिम्मेदारी शिक्षित महिलाओं को प्राथमिक रूप से दी जाए और परिवार नियोजन के उपायों को सर्वसुलभ कराया जाए.
जिन्दल ने अपने ब्लॉग में जिक्र किया है कि जिन-जिन राज्यों ने बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित किया, वहां-वहां जन्मदर में प्रत्यक्ष रूप से कमी दिखाई पड़ी है. 1991-2001 के दशक में बालिका शिक्षा के विस्तार के कारण जन्मदर 21.5 फीसदी से घटकर 17.7 फीसदी हो गई. केरल, तमिलनाडु, पंजाब, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश में बेहतर बालिका शिक्षा व्यवस्था के कारण जन्मदर घटी है जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार में लक्ष्य प्राप्त नहीं हो पा रहा है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-4 के अनुसार जन्मदर 1.8 फीसदी रहे तो हालात काबू में आ सकते हैं. हालांकि कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि 2.1 फीसदी की दर से भी जनसंख्या स्थिरता हासिल की जा सकती है. अभी देश में जन्मदर 2.2 फीसदी होने का अनुमान है.
उन्होंने लिखा है कि उनके संसदीय काल में जनसंख्या नियंत्रण उपायों पर अनेक बार चर्चा हुई जिनमें उन्होंने सक्रिय भागीदारी की और सभी कानून निर्माता दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इस समस्या के समाधान पर गंभीर थे. 10 राज्यों में कुछ कदम उठाए भी गए और दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्तियों को पंचायत चुनाव के लिए अयोग्य करार दे दिया गया. हालांकि जिन्दल देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था का हवाला देते हुए लिखते हैं कि टैक्स छूट व अन्य प्रोत्साहन देकर आम जनता को इस मुहिम से जोड़ा जा सकता है.