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नदियों में पवित्र स्थान और दान का होता है अपना एक महत्व
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विभिन्न राज्यों में विभिन्न तरीकों से मनता है यह त्योहार
मकर संक्रांति हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है. प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को ही मकर सक्रांति का त्योहार पूरे देशभर में मनाया जाता है. खासकर यह त्योहार बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दिन लोग दही, चूड़ा, लाई, तिलकुट, गुड़ आदि का सेवन करते हैं. इस दिन प्रायः घरों में खिचड़ी बनायी जाती है और दान भी की जाती है. बिहार के मिथिलांचल समेत आप-पास के सभी प्रदेशों में इस दिन दही-चूड़ा खाने का रिवाज है और इस दिन बिहार में कई राजनीतिक पार्टियों द्वारा दही-चूड़ा का प्रीतिभोज का भी आयोजन किया जाता है. बिहारी समुदाय द्वारा भुवनेश्वर, कटक सहित आसपास के कई क्षेत्रों में भी प्रीतिभोज का आयोजन किया जाता है. इस साल दान-पुण्य का यह महापर्व मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाया जाएगा. इस संदर्भ में पंडित कौशल कुमार झा ने मकर संक्रांति को लेकर कुछ इस प्रकार अपनी बातें रखीं-
मकर संक्रांति के महत्व एवं राशियों के हिसाब से दान सामग्री –
सूर्य देव को मकर संक्रांति के दौरान विशेष रूप से पूजा जाता है. मकर संक्रांति का दिन हिंदू सौर कैलेंडर के अनुसार तय किया जाता है. मकर संक्रांति तब देखी जाती है, जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में परिवर्तित होते हैं और यह अधिकांश हिंदू कैलेंडर में दसवें सौर मास के पहले दिन पड़ता है. वर्तमान में संक्रांति का दिन या तो 14 जनवरी या 15 जनवरी को ग्रेगोरियन कैलेंडर पर पड़ता है. यदि संक्रांति का समय सूर्यास्त से पहले होता है तो इसे उसी दिन मनाया जाता है अन्यथा अगले दिन मनाया जाता है.
मकर संक्रांति के दिन को सूर्यदेव की पूजा करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. हिंदू कैलेंडर में बारह संक्रांति हैं लेकिन मकर संक्रांति अपने धार्मिक महत्व के कारण सभी संक्रांतिओं में सबसे महत्वपूर्ण है.
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, मकर संक्रांति एक महत्वपूर्ण दिन है, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तब सूर्यदेव की पूजा करने, पवित्र जल में धार्मिक स्नान करने और दान करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. बहुत से लोग मकर संक्रांति को उत्तरायण के दिन के रूप में मानते हैं. मकर संक्रांति और उत्तरायण दो अलग-अलग खगोलीय और धार्मिक आयोजन हैं. हालाँकि हजारों साल पहले (लाहिड़ी अयनांश के अनुसार 285 ईस्वी सन् में) मकर संक्रांति का दिन उत्तरायण के दिन से मेल खाता था।
मकर संक्रांति मकर राशि में सूर्य के पारगमन के कारण महत्वपूर्ण है और उत्तरायण सूर्य की उत्तरी यात्रा शुरू करने के कारण महत्वपूर्ण है (यानी उत्तरी गोलार्ध में चलना शुरू) । भीष्म पितामह ने अपने शरीर को छोड़ने के लिए उत्तरायण को चुना था।
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कभी 23 जनवरी तो कभी 23 मार्च को मनेगी मकर संक्रांति
यह जरूरी नहीं है कि मकर संक्रांति 14 जनवरी को ही मनाया जाता है, मकर संक्रांति का दिन लगातार सर्दियों के संक्रांति से दूर चला जाता है. वर्ष 1600 में, मकर संक्रांति 9 जनवरी को गिर गया, और 2600 में मकर संक्रांति 23 जनवरी को मनेगी. 2015 के 5000 वर्षों के बाद, अर्थात वर्ष 7015 में मकर संक्रांति 23 मार्च को मनाई जाएगी.
मकर संक्रांति से जुड़े पौराणिक तथ्य
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था. इसके अलावा मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे−पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं. साथ ही महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए इस दिन तर्पण किया था. यही वजह है कि मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में हर साल मेला लगता है.
मकर संक्रांति पर करें किस चीज का दान
मकर संक्रांति के दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान देना बेहद पुण्यकारी माना जाता है. इस दिन खिचड़ी का दान देना विशेष फलदायी माना गया है. इस दिन से सभी शुभ कार्यों पर लगा प्रतिबंध भी समाप्त हो जाता है. बता दें, उत्तर प्रदेश में इस पर्व पर खिचड़ी सेवन और खिचड़ी दान का अत्यधिक महत्व बताया जाता है.