अशोक पाण्डेय, भुवनेश्वर
कोरोना के बढ़ते संक्रमण पर लगाम लगाने के लिए जारी सप्ताहांत शटडाउन के दूसरे दिन रविवार को भी राजधानी क्षेत्र में सड़कों पर सन्नाटा पसरा रहा. आवश्यक सेवाओं को छोड़कर आम आदमी का आवागमन शून्य रहा. कोरोना महामारी की दूसरी लहर से बचने के लिए अनावश्यक रूप से लोग अपने -अपने घरों से बाहर नहीं निकले, जबकि सरकार द्वारा सुबह 5:00 बजे से 6:00 बजे तक मॉर्निंग वॉकर और साइकिलिंग करने वालों के लिए एक घंटे की छूट थी, फिर भी भुवनेश्वर कलिंग स्टेडियम में लोग बिल्कुल ही नजर नहीं आए. भुनेश्वर की सड़कों पर बहुत कम साइकिलें नजर आईं. लोग अपने-अपने घरों, अपनी-अपनी डेली लगने वाली दुकानों और अपने-अपने रोजगार के ठेलों के साथ बैठे नजर आए. कुछ ऐसे भी डेली वेजेज वाले श्रमिक नजर आए जो अपने कंधे पर कुदाल लिए हुए पैदल चले जा रहे थे. उका कहना था कि शटडाउन बाबू गरीबों के लिए नहीं होता. यह पापी पेट का सवाल है. मैं इंतजार कर रहा हूं कि कोई दाता मुझे काम पर बुलाये. मैं उसका काम करूं और बदले में अपने पेट भरने के लिए दाता से मुझे कुछ मिले. वहीं शराब की दुकानों पर जहां सुबह 10:00 बजे से लेकर के रात्रि 9:00 बजे तक पूरी चहल-पहल देखी जाती थी, शटडाउन के दोनों दिन उन दुकानों पर केवल ताला ही लटका नजर आया. भुवनेश्वर की सभी सड़कों, चौराहों और पार्कों की स्थिति कमोबेश एक जैसी ही नजर आई. चारों तरफ खामोशी थी.
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