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“स्वतंत्रता समर को गांधी का धोखा”

श्याम सुन्दर पोद्दार (लेखक वरिष्ठ स्तंभकार और आलोचक हैं)

ब्रिटिश निष्ट गोखले के कहने पर अंग्रेज दक्षिण अफ्रीका से तिलक की राजनीति “स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है” वाली राजनीति का विरोध करने के लिए गांधी को लाए थे. गांधी को जनता में पूजवाने के लिए चंपारन में उन्हें जबरदस्ती ब्रिटिश सरकार को झुकाने वाले की छवि वाइसराय की दखल से बनाई गई. अहमदाबाद में श्रमिक आंदोलन में वहां का कलेक्टर कहता है कि “गांधी को मानोगे तो तुम्हारी सब मांगे सरकार से मनवा देंगे. इस प्रकार मदद करके गांधी को श्रमिकों का नेता बनाया गया. इस प्रकार गांधी को भविष्य में आंदोलन खड़ा करने के लिए जेल में बंद मोहम्मद अली, शौकत अली को गांधी के कहने से जेल से मुक्ति मिल जाती है. सुरक्षा सम्बन्धी कमेटी में तिलक को हटा कर दो दिन पहले भारत में आए गांधी को जगह दे देती है. तिलक की असामयिक मृत्यु से कांग्रेस पर गांधी का कब्जा हो जाता है. कांग्रेस के सम्मेलन में “ऐसी लडाई लडूंगा कि एक वर्ष में स्वराज लादूंगा.” यह कहकर सब कांग्रेसियों का मन जीत लिया. स्वराज लाने के विषय को फेंक कर गांधी ने टर्की की लड़ाई लड़ी, जिसका भारत वर्ष से दूर-दूर का सम्बन्ध नहीं था यानी खिलाफत आंदोलन किया. इसका मतलब यह हुआ कि गांधी ने अपने पहले आंदोलन में अंग्रेजों से देश को स्वाधीन कराने की लड़ाई नहीं लड़ी. लोगों को संदेह होने लगा और गांधी पर 1922 फरवरी में उनके विरुद्ध कांग्रेस में असफल अविश्वास प्रस्ताव आया. गांधी की छवि सुधारने के लिए अंग्रेजों ने मोहम्मद अली सौकत अली को जेल से छुड़ाने के लिए सम्पादकीय लिखने पर मार्च 1922 में 6 वर्ष के लिए तिलक की तरह बर्मा की मांडला जेल नहीं, पूणा की शहंशाही जेल में भेज दिया. फिर 6 वर्ष की जगह से दो वर्ष में ही छोड़ दिया. सन् 1929 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में सुभाष बाबू ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव रखा. सुभाष बाबू का प्रस्ताव पास नहीं हो सका, परंतु उसको बहुत अधिक वोट मिले थे. चतुर गांधी ने समझ लिया कि अब पुनः लाहौर अधिवेशन में सुभाष पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव रखेगा. वह इस बार पास हो जाएगा. गांधी ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव स्वयं रखा और वह सवर्सम्मति से पास हो गया. पर यहां भी गांधी ने पूर्णस्वराज के प्रस्ताव के साथ बेइमानी की. पूर्ण स्वराज की लड़ाई ना लड़कर नमक आंदोलन किया, जिसका पूर्ण स्वराज की लड़ाई के साथ दूर-दूर तक कोई सम्बंध नहीं था. देश पूर्ण स्वराज की लड़ाई के लिए तैयार था. यदि एक अराजनैतिक नमक आंदोलन के लिए लोग इस तरह का समर्थन करते हैं, तो पूर्ण स्वराज की लड़ाई लड़ी जाती,तो अंग्रेजों के लिए इसको क़ाबू करना दुर्भर हो जाता. महात्मा गांधी के कांग्रेस के लम्बे नेतृत्व से कांग्रेसी लोग ऊबते गए थे. सुभाष बाबू को 3000 कांग्रेस के प्रतिनिधियों में 1580 प्रतिनिधियों का वोट मिला व 205 वोटों के अंतर से उन्होंने गांधी के उम्मीदवार पट्टाभी सीतारमयिया को 1375 वोट पाने पर 205 मतों के लम्बे ब्यवधान से हराया. गांधी ने षड्यंत्र कर सुभाष बाबू को पहले तो कांग्रेस की कार्यकारिणी समिति नहीं बनाने दी. पुरानी कार्यकारिणी की सभा बुलाते, तो कोरम के अभाव में वह सम्पन्न नहीं हो सकती. इस तरह शैतानी चाल चलकर सुभाष बाबू को मजबूर कर दिया कि वे कांग्रेस का अध्यक्ष पद छोड़े. सुभाष बाबू के कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ते ही गांधी ने खुद कांग्रेस कार्यकारिणी समिति में अपना लिखा एक प्रस्ताव रखा, जिसे कांग्रेस कारिणी ने 9 अगस्त को स्वीकृत किया, जिससे सुभाष बाबू को 3 वर्षों के लिए कांग्रेस के अंतर्गत किसी भी महत्वपूर्ण पद के चुनाव से रोक दिया गया. इसके बाद कांग्रेस से भी बहिष्कृत कर दिया. गांधी ने कांग्रेस के एक निर्वाचित अध्यक्ष की यह दुर्गति की एवं कांग्रेस के 3000 प्रतिनिधियों के 54 प्रतिशत प्रतिनिधियों ने गांधी के नेतृत्व व कांग्रेस की मशीन पर उनकी पकड़ से कांग्रेस को मुक्त किया था. गांधी ने वह होने नहीं दिया.

गांधी ने अपने जीवन में चरखा चलाया व लोगों से खूब चलवाया. आज के भारत में इसका बहुत प्रचार होता है. गांधी का चरखा आंदोलन एकदम शत-प्रतिशत असफल आंदोलन रहा. भारत में 7 लाख गांव है. सन् 1920 लेकर 1934 तक चरखा मात्र 5000 गांव तक ही पहुंच पाया. यानि एक प्रतिशत से भी कम. सन् 1940 में चरखा 15000 गांव तक पहुंचा, यानी 2.1 प्रतिशत. पूर्णतः असफल गांधी का चरखा आंदोलन रहा. गांधी ने विदेशी वस्त्रों की होली जलाई. वीर सावरकर ने बंगभंग आंदोलन के समय लोकमान्य तिलक की उपस्तिथि में भारत के पूणा में सर्वप्रथम 1907 में विदेशी कपड़ों की होली जलाई. गांधी ने सिर्फ सावरकर की नकल की. गांधी ने श्वेताम्बर जैन संन्यासी का रूप बनाया और अहिंसा की बात करने लगा. गांधी व महावीर की अहिंसा में जमीन आसमान का अंतर है. महावीर की अहिंसा मनुष्य ही नहीं, बल्कि कीड़े-मकोड़े की हिंसा पर भी लागू होती थी. गांधी की अहिंसा सिर्फ़ क्रांतिकारियों के हाथों अंग्रेज़ी को बचाने तक सीमित थी. यदि अब्दुल रशीद स्वामी श्रधानंद की हत्या करता है, तो यह प्रकरण हिंसा का प्रकरण नहीं है. हत्या का मामला नहीं है. अब्दुल रशीद मेरा भाई है. सन् 1942 की जनवरी में सिंगापुर का पतन हो गया. 7 मार्च को जापान ने रंगून पर क़ब्ज़ा कर लिया. सावरकर जी के अन्य क्रांतिकारी सहयोगी रास बिहारी बोस ने जापान में संस्थापित “भारतीय स्वतंत्र संघ” की परिषद की बैठक 15 जून 1942 के दिन बैंकाक में सम्पन्न की. जिसमें यह निर्णय लिया गया कि जापान की सहायता से भारत की स्वतंत्रता प्राप्त करने का निश्चय किया गया. जो गांधी कल तक कहते थे ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध विश्वयुद्ध के समय कोई आंदोलन नहीं किया जाएगा. उनको मुश्किल में नहीं फेंका जाएगा. वह गांधी ही अचानक ब्रिटिश के बिरुद्ध 9 अगस्त को “अंग्रेजों भारत छोड़ो पर अपनी सेना यहां रखो” आंदोलन छेड़ देता है. अंग्रेजों को तो वह आस्वस्त कर चुका था कि अपनी सेना रखो. यानी यहां रहो. गांधी का यह आंदोलन उन 54 प्रतिशत कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के लिए था, जो सुभाष के समर्थक थे, इस आंदोलन के बहाने वह तो आगाखाँ महल में पत्नी के साथ नजरबंद हो गया. उसके साथी प्रथम श्रेणी की जेल में चले गए, पर सुभाष के समर्थक कठिन जेल में बंद कर दिए गए, ताकि सुभाष जब भारत में प्रवेश करें, तो उसके समर्थक उनकी मदद नहीं कर सकें.

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