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आजादी को लेकर ब्रिटेन की संसद में हुए डिबेट और इन्डिपेन्डन्स आफ इंडिया एक्ट को इतिहास में जगह नहीं देने पर बरसे श्याम सुंदर पोद्दार
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कहा- सावरकर नहीं होते तो सुभाष चंद्र बोस सुभाष चंद्र बोस नहीं होते
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पुण्यतिथि पर याद किये गये देश के महान क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर
हेमन्त कुमार तिवारी, कटक
देश के महान क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर की पुण्यतिथि पर आज यहां एक सेमिनार का आयोजन किया गया. इस दौरान लोगों ने अपने विचारों की अव्यक्ति के माध्यम से इनको श्रद्धांजलि अर्पित की. इस दौरान वक्ताओं ने वीर सावरकर की इतिहास में उपेक्षा को लेकर केंद्र सरकार और कांग्रेस पार्टी पर जमकर निशाना साधा. इस दौरान हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्याम सुंदर पोद्दार ने कहा कि मैं कांग्रेस और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछना चाहता हूं कि आजादी को लेकर ब्रिटेन में कोई डिबेट तो हुआ होगा, उसे इतिहास में क्यों नहीं पढ़ाया जाता है, इन्डिपेन्डन्स आफ इंडिया एक्ट क्यों नहीं पढ़ाया जाता है.
उन्होंने कहा कि आजाद हिंद सेना के सेनापतियों को दंडित करने पर हमारी नौ सेना ने 18 फरवरी 1946 को अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह छेड़ दिया था. यह विद्रोह हमारे वायु सेना में भी फैल गयी, जिससे जवान कामबंदी पर उतर आये. जब तक यह विद्रोह हमारी थलसेना में पहुंचती कि इसके पहले अंग्रेजों ने घोषणा कर दी कि हम भारत को आजादी देंगे. विद्रोही सैनिक अपने-अपने बैरक में चले जायें तथा आजाद हिंद सेना के सेनापतियों को कोई भी दंड नहीं दिया जायेगा.
केंद्र सरकार और कांग्रेस पर वीर सावरकर की उपेक्षा करने का आरोप लगाते हुए पेशे से इंजीनियर, हिन्दूवादी नेता, आलोचक तथा स्तंभकार श्याम सुंदर पोद्दार ने कहा कि देश यदि आजाद है, तो सिर्फ वीर सावरकर की वजह से हुआ है. यदि देश में सावरकर नहीं होते तो नेता जी सुभाष चंद्र बोस भी सुभाष चंद्र बोस नहीं होते. यदि सावरकर नहीं होते तो देश भी आजाद नहीं होता. उस समय अंग्रेजों ने इन्हें दुनिया का सबसे अधिक खतरनाक व्यक्ति करार दिया था. अंडमान की जेल में सावरकर के गले में डी लगा दिया गया था, वह डी डेंजरस को इंकित करता था. जितना दिन सावरकर को जेल में रखा गया था, उतना दिन नेल्सन मंडेला को भी नहीं रखा गया था. जब सावरकर को जेल से रिहा किया गया, तब भी उनको घर में नजरबंद रखा गया. नेल्सन मंडेला को राजनीति करने की छूट दी गयी थी, लेकिन सावरकर को नहीं. उन्हें इसी शर्त पर जेल से छोड़ा जाता था कि आप राजनीति नहीं करेंगे. वर्ष 1937 में जब महाराष्ट्र में चुनाव हुआ तो उस समय मुख्यमंत्री जीवराज मेहता ने कहा कि यदि सावरकर पर से प्रतिबंध नहीं हटेगा, तबतक मैं मुख्यमंत्री नहीं बनूंगा. तब जाकर सावरकर पर से प्रतिबंध हटा और मात्र पांच सालों में उन्होंने देश की आजादी की मजबूत नींव रखी.
पोद्दार ने कहा कि अक्टूबर, 1945 के आम चुनाव में महात्मा गांधी को बहुमत मिला था कि वह देश को एकजुट रखेंगे, न कि देश का बंटवारा करेंगे. बंटवारा करने के पहले महात्मा गांधी को जनता के पास फिर से जाना चाहिए था, लेकिन महात्मा गांधी ने अपने मतदाताओं के साथ गद्दारी की और देश को दो टुकड़ों में कर दिया. उन्होंने कहा कि जिन्ना चाहते थे कि देश में हिन्दू-मुसलमानों की जनसंख्या का अदला-बदली हो जाये. इसके लिए एक व्यवस्था बनायी जाये. क्योंकि इस्लामिक पाकिस्तान में हिन्दूओं के लिए कोई जगह नहीं रहेगी. हिन्दू वहां रहते हैं, तो इस्लामिक पाकिस्तान बनाने का उद्देश्य ही पूरा नहीं होगा. यदि आप ने यह व्यवस्था नहीं बनायी तो हम खून-खराबा करके हिन्दूओं को वहां से निकालेंगे. गांधी ने जिन्ना की इस बात को ठुकरा दिया और 20 लाख से अधिक हिंदुओं को मरने दिया और जिन लोगों ने इस्लामिक देश पाकिस्तान बनाया था, उनको यहां रहने दिया, ताकि वह वोटबैंक बने रहें और कांग्रेस पार्टी जीतती रहे. उजड़े हुए लोग पाकिस्तान से आकर उनको वोट नहीं देते, इसलिए उनको गांधी ने मरने दिया.
इस समारोह की अध्यक्षता वीर सावरकर फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रह्लाद खंडेलवाल ने की. हिन्दू महासभा की प्रांतीय अध्यक्ष गीता चयनी, विशिष्ट समाजिक कार्यकर्ता ज्ञानजी नाहर ने भी अपने-अपने विचारों को रखा.