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असहाय बहनों की फरियाद पर हिन्दु एवं मुस्लिम भाईयों ने सहायता का हाथ आगे बढ़ाया
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बुर्ला कब्रस्तान में विधिवत शव दफन
राजेश बिभार, संबलपुर
इस अंधविश्वासी समाज में मानवता आज भी जिंदा है। धर्म-जाति के नाम पर हायतौबा मचानेवाले लोगों को यह समझ लेना चाहिए कि समाज में आज भी कुछ निष्ठावान लोग हैं, जिनकी वजह से समाज का चक्र सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। बुर्ला में आज घटित एक घटना ने धर्म एवं जाति के नामपर अपने स्वार्थ साधनेवाले लोगों को करारा सबक दिया है। पिछले दिनों झारसुगुड़ा जिले के बेलपहाड़ इलाके से कोरोना ग्रस्त एक वृद्ध महिला को वीर सुरेन्द्र साय इंष्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च के कोविड सेंटर में दाखिल कराया गया था।
सों चिकित्साधीन अवस्था में उस वृद्ध महिला की मौत हो गई। जिसके बाद जिला प्रशासन ने अपनी कवायद आरंभ किया। चूंकी महिला ईसाई समुदाय से थी, इसलिए परंपरा के तहत उनके शव को ससम्मान कब्र के दफनाए जाने का फैसला लिया गया। प्रशासनिक अधिकारियों ने बेलपहाड़ कब्रस्तान प्रबंधन से बातचीत आरंभ की, किन्तु उन्होंने वहां पर कोरोना मरीज के शव को दफनाने से साफ इनकार कर दिया। इसके पश्चात प्रशासनिक अधिकारियों ने झारसुगुड़ा एवं हीराकुद स्थित कब्रस्तान के लोगों से इस सिलसिले मे बातचीत आरंभ की, किन्तु वहां पर भी उस मृत महिला को दो गज जमीन नहीं मिली। अस्पताल में मौजूद महिला की दो बेटी अपनी मां के साथ हो रहे इस बर्ताव से मर्माहत हो गई और शहर के लोगों से सहायता की गुहार लगाना आरंभ किया।
अंतत: बुर्ला के सचेतन युवा चेतन गोयल एवं मोहम्मद शोयब ने उनकी ओर सहायत का हाथ आगे बढ़ाया। जाति एवं धर्म को बेखातिर करते हुए दोनों युवाओं ने प्रशासनिक अधिकारियों के सहयोग पर बुर्ला कब्रस्तान प्रबंधन से बातचीत आरंभ की। प्रयास आरंभ होते ही बुर्ला के अन्य कई लोग भी उनके साथ शामिल हो गए। बुर्ला कब्रस्तान प्रबंधन ने मृत महिला के शव को स्थान देने की अनुमति दे दी। इसके बाद उन युवाओं ने जिला प्रशासन की मदद से महिला की शव को कब्रस्तान ले गए और वहांपर ईसाई परंपरा के तहत महिला के शव को दफना दिया गया। मौके पर उपस्थित मृत महिला की बड़ी बेटी सुनिता डुंगडुंग ने इसके लिए बुर्ला वासियों को धन्यवाद कहा। दूसरी ओर बुर्ला के लोगों ने इस महती कार्य को अंजाम तक पहुंचाकर मानवता की मिसाल पेश किया है।