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प्रेमियों के लिए ताजमहल है शशिसेना मंदिर, जहां प्रेमी प्रेम में बन गया था भेड़

  • वेलेंटाइन-डे पर सैकड़ों जोड़ों ने मंदिर में मत्था टेका

  • शशिसेना एवं अभिमाणिक्य के प्रेम की गाथा छुपी है इसमें

राजेश बिभार, संबलपुर

मंदिरों के शहर सोनपुर को देश का द्वितीय बनारस कहा जाता है। 108 पुरातन मंदिरों से घिरे इस शहर की ऐतिहासिक पहचान भी खास है। इन मंदिरों में से एक मंदिर है, शशिसेना मंदिर। यह मंदिर ताजमहल की तरह प्रेम का जीता-जागता मिसाल है। इन हालातों में वेलेंटाइन-डे के खास मौके पर इस मंदिर की पुरानी गाथा को दोहराना खास हो जाता है।  वेलेंटाइन-डे के खास मौके पर सैकड़ों प्रेमी जोड़े एवं श्रद्धालुओं ने इस मंदिर का दीदार किया और अपने सपने को सकार करने की दुआ मांगी। राजकुमारी शशिसेना एवं अभिमाणिक्य के सच्चे प्रेम की याद में तत्कालीन सोनपुर महाराज बिरमित्रा सिंहदेव ने वर्ष 1921 में इस मंदिर का निर्माण कराया था। तबसे यह मंदिर प्रेमियों के दिलों में एक खास मुकाम रखने लगा है।

जानकारों के अनुसार, अमरावती महाराज विक्रम केशरी के पुत्री राजकुमारी शशिसेना अपने ही प्रांत की अभिमाणिक्य नामक एक युवक को अपना दिल दे बैठीं। दूसरी ओर ज्ञानदेई मालूनी भी अभिमाणिक्य से प्रेम करती थी और किसी भी हालत में उसे हासिल करने की चाह रखती थी। ज्ञानदेई और अभिमाणिक्य को अपने नियंत्रण में रखने हेतु हर तरह की उपाय करतीं। कहा जाता है कि राजकुमारी शशिसेना से अभिमाणिक्य को दूख रखने हेतु ज्ञानदेई काला जादू से दिन में उसे भेड़ बना देती और फिर रात को उसके असली रूप में वापस कर देती। ज्ञानदेई की हरकत से शशिसेना परेशान हो उठीं और मां भगवती की पूजा-अर्चना आरंभ कर दिया। अंतत: मां भगवती ने उन पर दया दिखाई और अभिमाणिक्य पुन: अपने वास्तविक रूप में स्थापित हो गया। इसके बाद राजकुमारी शशिसेना एवं अभिमाणिक्य का प्यार परवान चढ़ा।

उनके प्रेम की गाथा उस जमाने में पुरी दुनिया में एक मिसाल बन गया था। मसलन इस सच्चे प्रेम की याद में वर्ष 1921 में शशिसेना मंदिर का निर्माण कराया गया। शशिसेना मंदिर में कोई दरवाजा नहीं है। इस मंदिर को निमूही मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। अंचल के जानेमाने इतिहासकार शिव प्रसाद नंद का कहना है कि प्रेम की यह मिसाल सोमवंश के शासन काल में स्थापित हुई थी। सोनपुर के बड़ाबाजार इलाके में स्थित यह मंदिर ने काफी प्रसिद्धि बटोरी है। प्रेम में किस तरह किसी को भेड़ बना दिया जाता है और दूसरी ओर भगवान की पूजा-अर्चना कर किस तरह अपने प्यार को पाने की जी-जान कोशिश होती है, इसका सुखद संदेश दुनिया को जाता है। श्री नंद का दावा है कि यह मंदिर सोमवंश शासकों द्वारा ही बनवाया गया था। जबकि कुछ अन्य जानकार इसपर अपनी राय कुछ अलग ही रखते हैं। फिलहाल यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आदर्श का केन्द्र बना हुआ है।

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