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केंद्रापड़ा में कंगारू कोर्ट के फैसले की भेंट चढ़ा जश्न-ए-गणतंत्र दिवस, सामाजिक बहिष्कार की जिंदगी काट रहे आठ परिवार

केंद्रापड़ा. देश और प्रदेश में जहां गणतंत्र दिवस समारोह को उल्लास रहा, वहीं केंद्रापड़ा जिले के एक गांव में यह उल्लास कंगारू कोर्ट के फैसले की भेंट चढ़ गया है. आज भी लोकतंत्र में यहां आठ परिवारों को सामाजिक बहिस्कार की सजा भुगतनी पड़ रही है.

कंगारू कोर्ट के सामाजिक बहिस्कार के फैसले से न तो कोई ग्रामीण इन आठ परिवार के सदस्यों के साथ बात कर सकता है और ना ही मिल सकता है. किसी भी ग्रामीण को इनको मिलने की अनुमति नहीं है. बात करने पर इन पर अर्थदंड के रूप में 151 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है.

उल्लेखनीय है कि यह घटना जिले के राजनगर ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले सिलपोखरी गाँव की है, जहां आठ परिवार पिछले कुछ महीनों से गाँव कंगारू कोर्ट द्वारा दिये गये इस अलोकतांत्रिक फैसले का पालन कर रहे हैं.

गांव के एक खगेश्वर दास द्वारा लगाए गए आरोपों के अनुसार, कई लोगों ने उनके घर के सामने एक सामुदायिक केंद्र के निर्माण का प्रस्ताव दिया था. उन्होंने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि यह उनके घर से आने-जाने के रास्ते को बंद कर देगा. दास ने सामुदायिक केंद्र के निर्माण का प्रस्ताव के इस कदम का पूरी तरह से विरोध नहीं किया. इसके बजाय उन्हें एक अलग स्थान पर केंद्र बनाने के लिए कहा. हालांकि, ग्रामीण कथित तौर पर अपनी योजना पर अड़े थे.

बाद में जब दास ने कानून की मदद लेने का फैसला किया और मदद मांगने के लिए पुलिस के पास गए, तो कंगारू कोर्ट ने एक यह फैसला जारी किया कि सामुदायिक केंद्र के प्रस्ताव को खारिज करने वालों से ग्रामीण  दूर रहें. इसके परिणामस्वरूप दास का सामाजिक बहिष्कार हुआ और सात अन्य परिवार भी इस फैसले से प्रभावित हुआ है.

पीड़ित खगेश्वर दास में मीडिया को बताया कि मेरे सभी भाई बाहर रह रहे हैं. जब मैं कोविद महामारी के प्रकोप के बाद घर वापस आया तो मैंने देखा कि ग्रामीणों ने पहले ही निर्माण कार्य शुरू कर दिया है. मेरे घर की सड़क को लगभग सील कर दिया गया था. मैंने उनसे कहा कि निर्माण को आगे न बढ़ाएं, क्योंकि यह घर के लिए मेरा रास्ता रोक रहा है. उन्होंने जवाब दिया कि आप जो चाहे करें, हम यहां निर्माण करेंगे. जब मैं मदद मांगने थाने गया, तो पुलिस ने मेरी शिकायत नहीं सुनी. मेरे घर की सड़क अब पूरी तरह से अवरुद्ध है. अगर मैंने किसी के साथ बातचीत शुरू की या इसके विपरीत 151 रुपये का जुर्माना लगाया जा रहा है.

इधर, एक मानवाधिकार कार्यकर्ता विश्वप्रिया कानूनगो ने कहा कि लोगों का अपमान करना अन्यायपूर्ण है. कुछ भी आदेश देने से पहले कंगारू अदालत को उन समस्याओं पर चर्चा करनी चाहिए थी, जो निर्माण के परिणामस्वरूप परिवारों को हो रही थीं. उन्हें बिगड़ने के बजाय ऐसे मुद्दों को सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए. यह प्रभावित परिवारों के प्रति गैरकानूनी और अन्याय है.

इधर, राजनगर पुलिस स्टेशन के आईआईसी तपन कुमार नायक ने कहा कि इस संबंध में कोई शिकायत दर्ज नहीं की गई है. शिकायत दर्ज होने के बाद हम आवश्यक कार्रवाई करेंगे.

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