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ओडिशा हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल
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दोहरी भूमिका पर उठाए कानूनी व नैतिक सवाल
भुवनेश्वर। भुवनेश्वर क्लब के अध्यक्ष पद पर ओडिशा इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन (ओईआरसी) के चेयरमैन प्रदीप कुमार जेना के निर्वाचन को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। ओडिशा हाईकोर्ट में उनके खिलाफ एक जनहित याचिका (पीआईएल) दाखिल की गई है, जिसमें यह आरोप लगाया गया है कि जेना का क्लब के अध्यक्ष पद को स्वीकार करना उनके वर्तमान वैधानिक दायित्वों के साथ टकराव पैदा करता है।
याचिकाकर्ता ने अदालत से आग्रह किया है कि यह तय किया जाए कि एक वैधानिक पद पर रहते हुए किसी प्रतिष्ठित सामाजिक संस्था का शीर्ष पद संभालना कानूनन और नैतिक रूप से उचित है या नहीं। याचिका में कहा गया है कि ओडिशा इलेक्ट्रिसिटी रिफॉर्म एक्ट और भारतीय विद्युत अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, जेना का यह कदम इन कानूनों का उल्लंघन हो सकता है, क्योंकि इससे एक नियामक संस्था के प्रमुख की निष्पक्षता और तटस्थता पर प्रश्न उठता है।
शासन और नैतिक प्रशासन की पारदर्शिता पर सवाल
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में यह भी कहा है कि किसी नियामक आयोग के अध्यक्ष का किसी निजी या सामाजिक संस्था के नेतृत्व की जिम्मेदारी लेना “संघर्ष हितों” की स्थिति उत्पन्न करता है, जिससे शासन और नैतिक प्रशासन की पारदर्शिता प्रभावित हो सकती है। उन्होंने मांग की है कि अदालत इस मामले में हस्तक्षेप कर यह स्पष्ट करे कि क्या जेना का यह पद धारण करना विधि-सम्मत है। यदि यह कानून के विरुद्ध पाया जाए, तो उन्हें क्लब अध्यक्ष पद से हटाया जाए।
पूर्व मुख्य सचिव को हराकर अध्यक्ष बने हैं प्रदीप कुमार जेना
इस मामले पर अब तक प्रदीप कुमार जेना की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई थी। गौरतलब है कि 21 सितम्बर को हुए भुवनेश्वर क्लब के चुनाव में प्रदीप जेना ने पूर्व मुख्य सचिव असीत त्रिपाठी को एक कड़े मुकाबले में हराकर अध्यक्ष पद हासिल किया था। क्लब के इतिहास में यह सबसे रोमांचक और प्रतिष्ठित चुनाव माना गया, जिसमें दोनों ही उम्मीदवार ओडिशा के पूर्व मुख्य सचिव रह चुके हैं।
जेना ने लगभग 18 से 20 मतों के अंतर से जीत दर्ज की
बताया जाता है कि यह चुनाव बेहद करीबी रहा और जेना ने लगभग 18 से 20 मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी। जीत के बाद उन्होंने कहा था कि मैं क्लब के सभी सदस्यों का आभारी हूं। मैंने कोई बड़ा प्रचार नहीं किया। मैंने लगभग 1600 सदस्यों से सीधे फोन पर बात की और निर्णय उन्हीं पर छोड़ दिया। मैं सदस्यों के फैसले का सम्मान करता हूं। अब हाईकोर्ट में दाखिल यह याचिका भुवनेश्वर क्लब के चुनाव और शासन-नीति से जुड़ी नैतिकता पर एक नई बहस को जन्म दे रही है। अदालत इस मामले में आगे क्या रुख अपनाएगी, इस पर सबकी निगाहें टिकी हैं।
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