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कहा-साक्षरता, संख्यात्मक दक्षता, मौलिक कौशल और विश्लेषणात्मक सोच का समुचित समावेश होना चाहिए शिक्षा में
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केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, पुरी में चर्चा सत्र आयोजित
पुरी। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, पुरी में आयोजित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर चर्चा सत्र में मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने भाग लिया और कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 देश की विकासोन्मुख आवश्यकताओं को पूरा करने वाली इक्कीसवीं सदी की पहली शिक्षा नीति है।
कार्यक्रम में अपने भाषण में मुख्यमंत्री ने बताया कि भारत की शिक्षा प्रणाली हमारी परंपरा और मूल्यों पर आधारित है और एसडीजी 4 के साथ समन्वय स्थापित करते हुए इक्कीसवीं सदी की शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए शिक्षा संरचना के सभी पहलुओं में सुधार और नवाचार की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 विशेष रूप से प्रत्येक व्यक्ति की रचनात्मक क्षमता के विकास पर जोर देती है। नीति का मूल सिद्धांत है कि शिक्षा केवल ज्ञान की क्षमता का विकास नहीं है, बल्कि साक्षरता, संख्यात्मक दक्षता, मौलिक कौशल और विश्लेषणात्मक सोच का समुचित समावेश होना चाहिए।
उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करना उद्देश्य
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारतीय लोकाचार और परंपरा पर आधारित एक ऐसी शिक्षा प्रणाली पर केंद्रित है जो भारत को रूपांतरित करने में प्रत्यक्ष योगदान देगी। इसका उद्देश्य एक समानता और उत्साही ज्ञान-आधारित समाज में सभी को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करना है, जिससे भारत विश्व में ज्ञान शक्ति के रूप में स्थापित हो।
उत्कृष्ट व्यक्ति का निर्माण करना शिक्षा का मुख्य उद्देश्य
माझी ने युवाओं को भारतीय ज्ञान परंपरा, संस्कृति और गौरवशाली इतिहास से परिचित कराने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत एक ऐसा देश है जिसने विदेशी आक्रमणों के बावजूद अपनी प्राचीन ज्ञान और संस्कृति को अक्षुण्ण रखा है। इस परंपरा को संरक्षित और सक्रिय रखना हम सभी का दायित्व है। उन्होंने कहा कि प्राचीन ज्ञान और संस्कृति का संरक्षण किसी भी दृष्टिकोण से राष्ट्र का कर्तव्य है। भारत में कला, संगीत, साहित्य, न्याय, दर्शन, स्थापत्य, योग, विज्ञान, ज्योतिष, गणित, चिकित्सा, रसायनशास्त्र और कृषि जैसे सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान उपलब्ध है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य उत्कृष्ट व्यक्ति का निर्माण करना है, जो तर्कपूर्ण सोच, करुणा और समानुभूति, साहस और स्थिरता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, रचनात्मक कल्पना और नैतिक मूल्यों का विकास कर सके। उन्होंने कहा कि एक उत्कृष्ट शिक्षा संस्थान वह है, जहाँ छात्र स्वयं को अपने दूसरे घर के रूप में अनुभव करें, जहां सुरक्षित, प्रेरणादायक और समानतापूर्ण वातावरण उपलब्ध हो।
भारतीय ज्ञान परंपरा का मूल मंत्र बताया
उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा नीति विद्यार्थियों में संवैधानिक मूल्यों और देशभक्ति की भावना विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। शिक्षा केवल व्यक्तिगत हित के लिए नहीं, बल्कि सभी के कल्याण और समाज की भलाई के लिए है। यही भारतीय ज्ञान परंपरा का मूल मंत्र है। उन्होंने कहा कि जैसे हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने शिक्षा को सर्वहितकारी बनाया, उसी का अनुकरण आज की शिक्षा प्रणाली में आवश्यक है।
लोक कल्याण ही शासक का सच्चा आनंद
मुख्यमंत्री ने बताया कि भारतीय चिंतन और अनुसंधान ने कला, साहित्य, विज्ञान, न्याय, दर्शन, योग, ज्योतिष, गणित, चिकित्सा और कृषि सहित सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन उपलब्धियों को युवा पीढ़ी के सामने लाना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कौटिल्य के अर्थशास्त्र का उद्धरण देते हुए कहा कि लोक कल्याण ही शासक का सच्चा आनंद है और बताया कि भारतीय लोकतांत्रिक सोच का आधार कर्तव्य और प्रजाधर्म है, जिसमें शासक और प्रजा के संबंध पिता-पुत्र समान हैं।
शिक्षा केवल जीविका का साधन नहीं, जीवन रचना का आधार है
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रूप में केंद्रीय शिक्षा सचिव, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली के डॉ. अतुल कोठारी ने कहा कि शिक्षा केवल जीविका का साधन नहीं है, बल्कि जीवन रचना का आधार है। वर्तमान समय में हमारी शिक्षा प्रणाली में भारतीय मूल्य, आदर्श और सांस्कृतिक चेतना को शामिल करना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि यदि हम शिक्षा को राष्ट्र निर्माण का साधन मानेंगे, तो आने वाली पीढ़ी ज्ञानवान, कर्तव्यनिष्ठ और देशभक्त नागरिक के रूप में तैयार होगी।
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारतीय चिंतन और आधुनिक ज्ञान का समन्वय स्थापित करती है। इसके माध्यम से हम अपनी सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत करते हुए वैश्विक दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ सकते हैं।
उक्त सभा में भारतीय विश्वविद्यालय संघ के सलाहकार डॉ पंकज मित्तल और केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, पुरी के निदेशक प्रो प्रभात कुमार महापात्र प्रमुख रूप से उपस्थित थे।
नई शिक्षा नीति के लक्ष्यों पर गहन मंथन
सूचनार्थ, इस कार्यक्रम में भारतीय ज्ञान परंपरा, शिक्षा सुधार और नई शिक्षा नीति के लक्ष्यों पर गहन चर्चा और विचार-विमर्श हुआ। संगोष्ठी का उद्देश्य भारतीय शिक्षा चिंतन और पारंपरिक ज्ञान संपदा को आधुनिक शिक्षा के साथ समन्वयित करना है। तीन दिवसीय इस संगोष्ठी में “शिक्षा और भारतीय मूल्यों, “भारतीय ज्ञान परंपरा और आधुनिक शिक्षा समन्वय, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति की आधारभूमि और दिशा-निर्देश जैसे विषयों पर विशेष अधिवेशन आयोजित किए जाएंगे।