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67 वर्षीय हीराकुद बांध की समग्र मरम्मत की जरूरत

  •  जलाशय के ऊपरी हिस्से में कुछ सतही दरारें और कैविटी पाई गई

  •  अतिरिक्त स्पिलवे की योजना, संरचना सुरक्षित, लेकिन सुधार जरूरी

बलपुर। दुनिया का सबसे लंबा माटी का बांध माने जाने वाला हीराकुद बांध अब 67 साल का हो चुका है और इसमें समग्र मरम्मत की आवश्यकता बताई जा रही है। हीराकुद डैम सर्कल के अतिरिक्त मुख्य अभियंता सुधीर कुमार साहू ने बताया कि बांध की समग्र मजबूती अच्छी है, लेकिन जलाशय के ऊपरी हिस्से में कुछ सतही दरारें और कैविटी पाई गई हैं।

साहू ने कहा कि केंद्रीय मृदा एवं सामग्री अनुसंधान स्टेशन और केंद्रीय जल एवं विद्युत अनुसंधान स्टेशन की रिपोर्ट में भी बांध की मजबूती को अच्छा बताया गया है। हालांकि, सतही दरारों और कैविटी के लिए नियमित उपचार जारी है। इसके तहत पानी के भीतर मरम्मत का पैकेज डीआरआईपी-3 योजना में शामिल है।

अतिरिक्त स्पिलवे की सिफारिश

केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) ने बांध की जल निकासी क्षमता बढ़ाने के लिए एक अतिरिक्त स्पिलवे बनाने की सिफारिश की है। वर्तमान में मौजूदा स्पिलवे 15 लाख क्यूसेक पानी छोड़ सकता है, जबकि नया स्पिलवे 24.6 लाख क्यूसेक तक की बाढ़ से निपटने में मदद करेगा। इसके लिए जल्द ही सीडब्ल्यूसी के साथ समझौता ज्ञापन साइन किया जाएगा।

केंद्र-राज्य मिलकर कर रहे काम

साहू ने बताया कि नियमित रखरखाव का खर्च राज्य सरकार वहन करती है, जबकि बड़े कार्य जैसे स्पिलवे निर्माण, अंडरवाटर ट्रीटमेंट और गेट ऑटोमेशन का खर्च केंद्र सरकार वहन करती है। वर्तमान में तीन प्रमुख पैकेजों पर काम चल रहा है। डीआरआईपी-3 के तहत अंडरवाटर ट्रीटमेंट, अतिरिक्त स्पिलवे का निर्माण और गेटों का ऑटोमेशन शामिल हैं।

अब तक नहीं आया बाढ़ का खतरा

इस साल अच्छी मानसून बारिश और नदियों में बढ़े प्रवाह के बावजूद बांध से पानी छोड़ने के बाद भी निचले इलाकों में बाढ़ की स्थिति नहीं बनी। साहू ने बताया कि हमने पहले चरण में 20 गेट खोले और बाद में बंद कर दिए। इस सीजन में 12 गेट खोले गए और वर्तमान में दो गेट खुले हैं। इसके बावजूद डाउनस्ट्रीम इलाके में कोई बाढ़ नहीं है।

ऐतिहासिक महत्व वाला बांध

महानदी पर बना 25.4 किमी लंबा यह बांध एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील (743 वर्ग किमी) का निर्माण करता है। निर्माण कार्य 1948 में शुरू हुआ था और 1957 में इसे देश के पहले बहुउद्देश्यीय प्रोजेक्ट के रूप में उद्घाटित किया गया। यह बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, बिजली उत्पादन और जलापूर्ति जैसे अनेक कार्यों में सहायक है।

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