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ओडिशा साहित्य अकादमी का 68वां स्थापना दिवस मना

  •  ओडिशा की समृद्ध साहित्यिक धरोहर को नई पीढ़ी तक पहुंचाने में ओडिशा साहित्य अकादमी एक भूमिका महत्वपूर्ण:  सूर्यवंशी सूरज

भुवनेश्वर। ओडिशा साहित्य अकादमी का 68वाँ स्थापना दिवस भुवनेश्वर के रवींद्र मंडप में भव्य रूप से मनाया गया। राज्य की भाषा, साहित्य एवं संस्कृति विभाग के मंत्री सूर्यवंशी सूरज ने इस आयोजन का औपचारिक उद्घाटन किया।

मंत्री सूरज ने अपने अभिभाषण में बताया कि ओडिशा साहित्य अकादमी, ओड़िया साहित्य एवं संस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुँचाने में एक महत्वपूर्ण केंद्रीय भूमिका निभा रही है। पिछले एक वर्ष के भीतर अकादमी द्वारा अनेक वरिष्ठ साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं। इसमें केंदुुझर में महान क्रांतिकारी धरणीधर की जयंती, मयूरभंज‑रायरंगपुर में पंडित रघुनाथ मुर्मू की जयंती, केंदुविल्व में महाकवि जयदेव जयंती, पूर्वांचल लेखक सम्मेलनों, युवा लेखक सम्मेलनों के आयोजन, अनेक पुस्तक प्रकाशन और चर्चा‑चक्र। वर्षभर में अकादमी द्वारा 40 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की गईं।

मंत्री ने बताया कि अकादमी ने कोने‑कोने तक पहुंचकर ओड़िया भाषा के प्रति एक सशक्त साहित्य‑प्रेमी पीढ़ी का निर्माण किया है। साथ ही डिजिटल एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्लेटफार्मों पर ओड़िया भाषा को शामिल कर इसे वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित बनाने का प्रयास निरंतर जारी रहेगा।

आज के कार्यक्रम में केंद्रीय साहित्य अकादमी एवं ओडिशा साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त साहित्यकार  शान्तनु कुमार आचार्य मुख्य अतिथि थे, एवं प्रोफेसर नीलाद्रि भूषण हरीचंदन विशेष अतिथि थे। दोनों ने ओड़िया साहित्य जगत को नवीन योगदान देने में अकादमी की भूमिका पर प्रकाश डाला।

राज्य‑स्तरीय निबंध, वक्तृत्व, कविता‑पाठ और सामान्य ज्ञान प्रतियोगिताओं में प्रतिभाएँ भी पुरस्कृत की गईं।

उच्च शिक्षा संस्थानों के स्नातक (ओडिया) पाठ्यक्रम में सर्वश्रेष्ठ अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को 10,000 रुपये तथा स्नातकोत्तर (ओड़िया) पाठ्यक्रम में शीर्ष अंक हासिल करने वाले विद्यार्थियों को 15,000 रुपये का पुरस्कार प्रदान किया गया।

यह उल्लेखनीय है कि ओडिशा साहित्य अकादमी की स्थापना 1957 में हुई थी। आज के 68वाँ स्वर्णजयंती दिवस के अवसर पर ओडिशा भाषा, साहित्य एवं संस्कृति विभाग के सचिव श्री विजय केतन उपाध्याय, स्वतंत्र शासन सचिव श्री देवप्रसाद दास, अकादमी सचिव डॉ. चंद्रशेखर होता, विभागीय वरिष्ठ अधिकारी, प्रमुख साहित्यकार एवं बुद्धिजीवी उपस्थित थे।

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