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इंडियन काउंसिल ऑफ फिलॉसफिकल रिसर्च का नया लोगो का विमोचन
भुवनेश्वर। भारतीय ज्ञान परंपरा की विरासत अत्यंत प्राचीन है। हमें इसे केवल पूजा या गर्व की वस्तु के रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि वर्तमान चुनौतियों और भविष्य की दिशा को ध्यान में रखते हुए इसका विश्लेषण और कृत्रिम बुद्धिमत्ता मॉडलिंग के माध्यम से अध्ययन करना होगा। नई दिल्ली में भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद के नए लोगो के विमोचन के अवसर पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने ये बातें कहीं।
उन्होंने कहा कि आज जब दुनिया की अनेक प्राचीन सभ्यताएं समाप्त हो चुकी हैं या केवल पर्यटन स्थलों में बदल गई हैं, भारत में अभी भी कई ऐसे स्थान हैं जो 3,000 से 4,000 वर्षों से लगातार बसे हुए हैं। हमारे देश में मानव सभ्यता का इतिहास शैलचित्रों (रॉक आर्ट) के रूप में भी मौजूद है, जो पुरातत्व विभाग के अनुसार 20,000 से 25,000 वर्ष पुराना इतिहास दर्शाते हैं। उस आदि मानव काल से लेकर आज के एआई युग तक, हमारी सोच, सामाजिक व्यवस्था और परंपराओं के केंद्र में हमेशा मानव रहा है। इन सभी व्यवस्थाओं की जड़ में विज्ञान और दर्शन निहित है।
प्रधान ने कहा कि हमारे सामने आने वाले दशकों के लिए एक स्पष्ट एजेंडा तैयार है। आज भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और सबसे अधिक युवा जनसंख्या वाला देश है। हमारे दर्शन में “वसुधैव कुटुंबकम्” को मूल मंत्र माना गया है। आचार्य आर्यभट्ट और स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुषों ने न केवल वैज्ञानिक मूल्यों को प्रस्तुत किया, बल्कि ज्ञान के साथ-साथ एक समावेशी जीवनशैली का भी संदेश दिया। यही भारतीय दर्शन है।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस दर्शन को आगे बढ़ाते हुए कहा है कि युद्ध कोई समाधान नहीं है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के कार्यान्वयन में यही मूल दर्शन आधारभूत है — हमारे महापुरुषों की ज्ञान-परंपरा को आज के समय के अनुरूप ढालकर, युवापीढ़ी और समाज को भविष्य की दिशा में प्रेरित करना ही दार्शनिकों का कार्य है।
जब हमारे वर्तमान दार्शनिक समुदाय 21वीं सदी में भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित वसुधैव कुटुंबकम् की भावना को समकालीन संदर्भ में प्रस्तुत करेगा, तभी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का महत्व सिद्ध होगा।
भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद को सुझाव दिया
प्रधान ने सुझाव दिया कि भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद को भारतीय दर्शन को वर्तमान संदर्भों में भविष्य के मार्ग की ओर अग्रसर करना चाहिए और इस ज्ञान-मंथन के अमृत से देश को समृद्ध करने की दिशा में योगदान देना चाहिए।
एक शोध पुस्तक का विमोचन
प्रधान ने भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद की एक शोध पुस्तक का विमोचन किया और परिषद द्वारा आयोजित निबंध प्रतियोगिता के विजेताओं को सम्मानित भी किया। उन्होंने भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद के सभी सहयोगियों को धन्यवाद देते हुए कहा कि परिषद ने पिछले पांच दशकों से लेखनी के माध्यम से भारतीय ज्ञान परंपरा को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।