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चिल्का झील से लाल शैवाल में मिला कैंसर रोकने वाला तत्व

  • रावेंशा व उत्कल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को 20 साल का पेटेंट

भुवनेश्वर। ओडिशा की विश्व प्रसिद्ध चिल्का झील की जैव विविधता ने एक बार फिर वैज्ञानिकों को चौंका दिया है। रावेंशा और उत्कल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण खोज करते हुए बताया है कि चिल्का झील में प्राकृतिक रूप से उगने वाले लाल शैवाल (रेड एल्गी) में ऐसे यौगिक पाए गए हैं जो न केवल हानिकारक अल्ट्रावायलेट (यूवी) किरणों से त्वचा की रक्षा कर सकते हैं, बल्कि त्वचा कैंसर को भी रोकने में सहायक हो सकते हैं।

20 साल का पेटेंट मिला

इस अनूठी खोज के लिए वैज्ञानिकों को भारतीय पेटेंट अधिनियम, 1970 के तहत 20 वर्षों के लिए पेटेंट प्राप्त हुआ है, जो 15 जुलाई 2021 से प्रभावी है। यह खोज प्राकृतिक समुद्री संसाधनों को स्वास्थ्य क्षेत्र में उपयोग करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

क्या है वैज्ञानिक रहस्य?

शोध में उपयोग किया गया लाल शैवाल ग्रेसिलेरिया वैरूकोसा प्रजाति का है, जो रोडोफाइटा समूह से संबंधित है। इसमें पाए जाने वाले माइकोस्पोरिन-जैसे अमीनो एसिड नामक प्राकृतिक यौगिक सूर्य की यूवीए और यूवीबी किरणों को सोखने की क्षमता रखते हैं। जब यूवी किरणें त्वचा पर पड़ती हैं तो वे लालिमा, सूजन और कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाकर कैंसर की आशंका बढ़ाती हैं। माइकोस्पोरिन-जैसे अमीनो एसिड इन हानिकारक किरणों को गर्मी में बदल देते हैं, जिससे त्वचा की रक्षा होती है।

प्राकृतिक सनस्क्रीन का विकल्प

यह खोज केवल कैंसर-रोकथाम तक सीमित नहीं है। माइकोस्पोरिन-जैसे अमीनो एसिड शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट भी हैं, जो त्वचा की उम्र बढ़ने और ऑक्सीडेटिव तनाव को भी कम करते हैं। इससे यह समुद्री शैवाल रासायनिक सनस्क्रीन का एक सुरक्षित, जैविक और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प बनता है।

शोधकर्ताओं की टीम और योगदान

यह शोध वर्ष 2014 से चल रहा है और इसे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त हुई। टीम में प्रो लूना सामंत, सौम्य रंजन जेना, प्रो शिवा प्रसाद अधिकारी और डॉ ज्योत्स्ना रानी प्रधान जैसे वरिष्ठ वैज्ञानिक शामिल हैं। उनके शोध का शीर्षक यूवी-रेडिएशन, ऑक्सीडेटिव क्षति और त्वचा कैंसर के खिलाफ उपयोगी समुद्री शैवाल अर्क और संरचना विकसित करने की प्रक्रिया था।

चिलिका है एक प्राकृतिक प्रयोगशाला

चिल्का झील, जो एशिया की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है, समुद्री शैवाल के विकास के लिए आदर्श वातावरण प्रदान करती है। मीठे और खारे पानी का मिश्रण, उथलापन और पोषक तत्वों की प्रचुरता इसे विशेष बनाते हैं। यहां अब तक 14 प्रजातियों की मैक्रो एल्गी दर्ज की जा चुकी हैं।

ओडिशा के लिए गौरव का क्षण

यह खोज न केवल ओडिशा के वैज्ञानिक समुदाय के लिए गर्व की बात है, बल्कि भारत के समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की क्षमता को भी दर्शाती है। जैसे-जैसे विश्व प्राकृतिक और टिकाऊ विकल्पों की ओर बढ़ रहा है, चिलिका की लाल शैवाल वैश्विक चिकित्सा और सौंदर्य प्रसाधन उद्योग में एक नई क्रांति ला सकती है।

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