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ओडिशा में सिर्फ 2.7% लोगों के पास है कार

  • आधे से कम के पास बाइक

  • राष्ट्रीय सर्वे में चौंकाने वाले आंकड़े

भुवनेश्वर। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस-5) के हालिया आंकड़ों ने ओडिशा में वाहन स्वामित्व को लेकर चिंताजनक तस्वीर पेश की है। राज्य में केवल 2.7% परिवारों के पास ही कार है, जबकि मोटरसाइकिल या स्कूटर रखने वालों की संख्या महज 43.5% है। यह दोनों ही आंकड़े राष्ट्रीय औसत (7.5% और 49.5%) से काफी नीचे हैं।

बिहार और बंगाल की श्रेणी में ओडिशा

ओडिशा अब वाहन स्वामित्व के मामले में बिहार (2% कार, 27.2% बाइक) और पश्चिम बंगाल (2.8% कार, 28.5% बाइक) जैसे राज्यों की श्रेणी में आ गया है, जहां आर्थिक सीमाएं और कमजोर परिवहन ढांचा व्यक्तिगत गतिशीलता को बुरी तरह प्रभावित करते हैं।

विकास के बीच असमानता

हालांकि ओडिशा ने खनन, इस्पात और आईटी जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय आर्थिक प्रगति की है, लेकिन वाहन स्वामित्व के ये आंकड़े स्पष्ट संकेत देते हैं कि मैक्रो विकास का लाभ सामान्य जनता तक नहीं पहुंच पाया है।

वहीं दूसरी ओर, गोवा (45.2% कार, 86.7% बाइक) और केरल (24.2% कार, 58.2% बाइक) जैसे राज्य, जहां आय, सड़क ढांचा और सस्ती ऋण सुविधा बेहतर हैं, वहां व्यक्तिगत वाहन स्वामित्व काफी अधिक है।

यहां तक कि तेलंगाना जैसे अपेक्षाकृत नए राज्य में 52% परिवारों के पास कार है, जो ओडिशा की स्थिति को और भी चिंताजनक बनाता है।

ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में है गतिशीलता का संकट

विशेषज्ञों का मानना है कि ओडिशा की 83% ग्रामीण आबादी और बड़ी आदिवासी जनसंख्या वाहन स्वामित्व में कमी की अहम वजह है। कई गांवों में पक्की सड़कें, बैंकिंग सेवाएं या सार्वजनिक परिवहन की सुविधा नहीं है। बाढ़ और तटीय इलाकों में बस सेवाएं अक्सर बाधित होती हैं। आदिवासी क्षेत्रों में महिलाओं को स्वास्थ्य केंद्र या बाजार तक पहुंचने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है।

कम वाहन, फिर भी सड़क हादसों में भारी बढ़ोतरी

हैरानी की बात यह है कि वाहन कम होने के बावजूद सड़क हादसों में ओडिशा सबसे आगे है। वर्ष 2024 में राज्य में 6,142 मौतें सड़क दुर्घटनाओं में दर्ज हुईं, जो  2023 से 7% और पिछले 5 वर्षों में 29.6% की वृद्धि। पूरे राज्य में कुल 12,375 दुर्घटनाएं दर्ज हुईं। ओडिशा का एक्सिडेंट सीवियरिटी रेट 49.6% है, जबकि राष्ट्रीय औसत 37% है। यानी हर 100 दुर्घटनाओं में करीब 50 लोगों की जान जाती है।

 सिर्फ शहर नहीं, गांवों में भी चाहिए सुरक्षित और सुलभ परिवहन

हालांकि भुवनेश्वर और कटक जैसे शहरों में मो-बस और ई-रिक्शा सेवाओं के जरिए कुछ सुधार देखा गया है, लेकिन ग्रामीण ओडिशा अब भी पिछड़ा हुआ है। यदि सरकार राज्य को आर्थिक प्रगति की ओर ले जाना चाहती है, तो उसे समान रूप से गतिशीलता और सुरक्षित सड़क ढांचे पर भी ध्यान देना होगा। अन्यथा विकास के पहिए कुछ खास इलाकों तक ही सिमट कर रह जाएंगे।

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