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महाप्रभु लिंगराज की पवित्र विवाह महोत्सव 30 मई को

  • मंदिर प्रशासन ने किया पुष्टि

  • शिव-पार्वती के पावन मिलन की परंपरा के तहत निकलेगी भव्य शोभायात्रा

  • केदार गौरी मंदिर समिति में जन्मा विवाद

भुवनेश्वर। श्री महाप्रभु लिंगराज के पवित्र विवाह समारोह का आयोजन इस वर्ष 30 मई को किया जाएगा। मंदिर प्रशासन ने इसकी आधिकारिक पुष्टि की है। उस दिन रात के समय भगवान लिंगराज भव्य शोभायात्रा के माध्यम से मंदिर से केदारगौरी मंदिर जाएंगे और वहां देवी गौरी के साथ विवाह संस्कार संपन्न करेंगे। विवाह के अनुष्ठानों के बाद भगवान लिंगराज 31 मई की रात को पुनः लिंगराज मंदिर वापस लौटेंगे।

मंदिर के ज्योतिषाचार्यों ने पारंपरिक खड़ी रत्न पंजिका के अनुसार 30 मई को शुभ मुहूर्त माना है। इसी के आधार पर मंदिर प्रशासन और संबंधित सेवक-वृंद ने इस तिथि को स्वीकार कर समारोह के आयोजन की योजना बनाई है।

केदार गौरी समिति को बदलाव से झटका

हालांकि इस बदलाव से केदार गौरी मंदिर समिति नाराज है। समिति ने पहले 31 मई को विवाह की तिथि घोषित कर कई गणमान्य व्यक्तियों सहित मुख्यमंत्री को निमंत्रण पत्र भेजे थे। तिथि में बदलाव के कारण आयोजकों के बीच विवाद और उलझन उत्पन्न हो गई है।

केदारगौरी मंदिर समिति के महासचिव नरेंद्र महापात्र ने कहा कि पहले घोषित तिथियों में परिवर्तन से कई परेशानियां पैदा हुई हैं। हमने जो निमंत्रण पत्र बांटे थे, उनसे अब हम क्या कहें, यह समझ नहीं आ रहा। मंदिर के पुजारी को एक ही पंजिका का पालन करना चाहिए था, कई पंजिकाओं का सहारा लेने से आयोजन में काफी दिक्कत हुई है।

खुर्दा प्रशासन ने विवाद सुलझाया

खुर्दा जिला प्रशासन की समीक्षा के बाद अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट ने ज्योतिषीय सिफारिशों के आधार पर संशोधित तिथि को आधिकारिक रूप से मंजूरी दे दी है। इस निर्णय से विवाद का निपटारा हो गया है।

ज्योतिषीय तिथियों पर अधिकारियों की राय

ब्राह्मण नियोग के सचिव बिरंची पति ने स्पष्ट किया कि हमने पुरी में प्रचलित खड़ी रत्न पंजिका का पालन किया है और उसी से तिथियां निर्धारित की हैं। इसके अनुसार भगवान लिंगराज का विवाह 30 मई को शुभ है, जबकि शीतल सप्तमी 31 मई से प्रारंभ होगी। मंदिर प्रशासन ने भी इसी के अनुसार आयोजन करने का निर्णय लिया है।

खुर्दा के अतिरिक्त जिला कलेक्टर रुद्र नारायण मोहंती ने कहा कि ज्योतिषाचार्य की सलाह के अनुसार ही आयोजन होगा। आयोजन की तिथियों को लेकर जो असहमति थी, उसे पंजिका की पुष्टि कर सुलझा दिया गया है।

 शीतल षष्ठी का आयोजन विवाह के बाद

भगवान शिव और माता पार्वती के दिव्य मिलन का प्रतीक शीतल षष्ठी उत्सव 31 मई से शुरू होगा। अंतिम तिथियों को निर्धारित करते हुए यह सुनिश्चित किया गया है कि पारंपरिक पावनता बनी रहे और प्रशासनिक रूप से भी स्पष्ट रहे।

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