भुवनेश्वर। ओडिशा रीयल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (ओरेरा) पूरी तरह से निष्क्रिय हो गई है। संस्था के अंतिम कार्यकारी अध्यक्ष गोपाल चंद्र पटनायक के शुक्रवार को सेवानिवृत्त होने के बाद शनिवार से ओरेरा का अस्तित्व ही ठप पड़ गया है। इससे पहले फरवरी में चेयरपर्सन सिद्धांत दास ने समय से पहले इस्तीफा दे दिया था और मई में एक अन्य वरिष्ठ सदस्य प्रदीप बिस्वाल रिटायर हो चुके थे। तीनों पद खाली हो जाने के कारण ओरेरा का कोई भी नियामक कार्य नहीं हो पा रहा है।
ऐसे हालात में हजारों घर खरीदारों की उम्मीदें टूट गई हैं। न तो अब कोई शिकायत दर्ज की जा सकती है, न ही बिल्डर्स के प्रोजेक्ट पंजीकृत हो पा रहे हैं। पहले से चल रहे प्रोजेक्ट्स की समयसीमा बढ़ाने जैसी प्रक्रियाएं भी अटकी हुई हैं। स्थिति यह है कि एजेंटों को भी लाइसेंस नहीं मिल पा रहे हैं और खरीदारों को ठगने वाले फर्जी प्रोजेक्ट्स की जांच भी थम गई है।
रीयल एस्टेट कार्यकर्ता बिमलेन्दु प्रधान का कहना है कि ओरेरा के निष्क्रिय हो जाने से केवल खरीदार ही नहीं, बल्कि पूरा रीयल एस्टेट सेक्टर ही ठहर गया है। नियामक संस्था की अनुपस्थिति में कोई कानूनी सहारा नहीं बचा है और जिन मामलों में अथॉरिटी को अदालतों में पक्ष रखना था, वे भी अधर में लटक गए हैं।
राज्य सरकार ने महीनों पहले ओरेरा के नए सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की थी, लेकिन अभी तक कोई अंतिम फैसला नहीं हो पाया है। अधिकारियों का कहना है कि नाम मुख्यमंत्री कार्यालय भेजे गए हैं, लेकिन नियुक्ति को लेकर कोई तय समय नहीं बताया गया है। इससे सरकार पर खरीदारों की उपेक्षा का आरोप लग रहा है।
जब पूरा राज्य रीयल एस्टेट में पारदर्शिता और जवाबदेही की उम्मीद लगाए बैठा है, ऐसे समय में नियामक संस्था का ठप हो जाना न सिर्फ दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि यह सरकार की निष्क्रियता को भी उजागर करता है। अब सवाल यह है कि ओरेरा दोबारा कब सक्रिय होगी और क्या तब तक घर खरीदारों को सिर्फ इंतजार करना पड़ेगा?