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पश्चिम बंगाल के दावे पर जताया कड़ा एतराज
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कहा-पुरी की आध्यात्मिकता और विधियों की कोई तुलना नहीं
भुवनेश्वर। पश्चिम बंगाल के दीघा में नवनिर्मित जगन्नाथ मंदिर को जगन्नाथ धाम कहे जाने को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। इस मुद्दे पर अब पुरी श्रीमंदिर के मुख्य सेवायत (बड़ग्राही) जगन्नाथ स्वाईं महापात्र ने खुलकर नाराज़गी ज़ाहिर की है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि जगन्नाथ धाम केवल पुरी (श्रीक्षेत्र) को कहा जा सकता है, किसी अन्य स्थान को यह दर्जा देना अनुचित और भ्रामक है।
प्रेस से बातचीत में महापात्र ने कहा कि जगन्नाथ जी के मंदिर देश-विदेश में कई स्थानों पर हैं, लेकिन पुरी के श्रीमंदिर की आध्यात्मिक महत्ता और पारंपरिक अनुष्ठानों की नकल कहीं संभव नहीं है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ब्रह्मा स्थापना (दैवीय तत्व की प्रतिष्ठा) की परंपरा पुरी के बाहर नहीं की जा सकती।
नवकलेवर के दारु से नहीं बना दीघा का विग्रह
दीघा मंदिर में स्थापित प्रतिमा को लेकर यह दावा किया गया था कि वह नवकलेवर (जगन्नाथ जी की मूर्तियों के अदल-बदल का विशेष पर्व) में प्रयुक्त दारु (पवित्र काष्ठ) से बनी है। इस पर भी मुख्य सेवक ने सफाई देते हुए कहा कि नवकलेवर के दौरान उपयोग किए गए पुराने दारु को विधिपूर्वक जलाया जाता है, और उसकी बची हुई सामग्री का प्रयोग केवल श्रीमंदिर के भीतर विशेष विधियों में ही होता है, न कि किसी अन्य मंदिर की मूर्ति के लिए।
दीघा उद्घाटन में भाग नहीं लिया
महापात्र ने यह भी बताया कि उन्हें दीघा मंदिर के उद्घाटन समारोह में आमंत्रण मिला था, लेकिन उन्होंने उसमें भाग लेना उचित नहीं समझा। उन्होंने कहा कि मैंने स्वेच्छा से इसमें शामिल न होने का निर्णय लिया।
ओडिशा में आक्रोश, परंपरा की अनदेखी पर चिंता
मुख्य सेवायत के बयान ने उन लोगों की चिंताओं को और मज़बूती दी है जो पुरी की अनोखी परंपरा और पहचान को बनाए रखने की मांग कर रहे हैं। ओडिशा में जनता की भावनाएं इस बात को लेकर आहत हैं कि पश्चिम बंगाल सरकार (ममता बनर्जी के नेतृत्व में) ने दीघा मंदिर को जगन्नाथ धाम कहकर पुरी की परंपरा को चुनौती देने की कोशिश की है।