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पार्टी में नियमित गहरा रहा है टूट का संकट
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2024 के चुनाव में हार के बाद मचा है जबरदस्त घमासान
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19 अप्रैल को नवीन पटनायक के फिर से बीजद अध्यक्ष चुने जाने की संभावना
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पार्टी कार्यकर्ता और नेता चाहते हैं नवीन पटनायक से भविष्य की रणनीति पर स्पष्टता
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पहली बार पटनायक के समक्ष किसी फैसले को इतने खुले तौर पर मिली चुनौती
नवभारत ब्यूरो। भुवनेश्वर।
बीजू जनता दल (बीजद) के लिए 2024 का साल एक भूचाल लेकर आया। विधानसभा और लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार ने पार्टी को सत्ता से बेदखल कर विपक्ष की भूमिका में ला खड़ा किया। इसके साथ ही, 24 साल तक ओडिशा की राजनीति पर एकछत्र राज करने वाले नवीन पटनायक के नेतृत्व पर सवाल उठने लगे हैं और वह बगावत की आंधी में घिर गया है।
पार्टी के भीतर असंतोष की लहरें तेज हो रही हैं और वरिष्ठ नेता खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। बीजद के लिए यह सिर्फ नेतृत्व की लड़ाई नहीं, बल्कि अस्तित्व की जंग है। क्या नवीन पटनायक अपनी पार्टी को एकजुट रख पाएंगे, या यह बगावत बीजद के अंत की शुरुआत है? समय ही बताएगा।
पिछले हफ्ते भुवनेश्वर में एक अभूतपूर्व घटना हुई। बीजद के 13 वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी मुख्यालय शंख भवन को छोड़कर एक होटल में बैठक की। इसकी आलोचना करते हुए नवीन पटनायक ने इसे अनुचित बताया। जवाब में, तीन बार के विधायक नरसिंह साहू ने तल्ख अंदाज में कहा कि कोई यह तय नहीं कर सकता कि लोग कहां मिलें। यह पहली बार है जब बीजद के किसी नेता ने इतने खुले तौर पर पटनायक की बात को चुनौती दी हो। वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि 2024 की हार ने बीजद को उसकी विपक्ष के रूप में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखना में सबसे बड़ी चुनौती ला खड़ा की है। पार्टी कार्यकर्ता और नेता नवीन पटनायक से भविष्य की रणनीति पर स्पष्टता चाहते हैं। नरसिंह साहू ने कहा कि तस्वीर जल्द साफ होगी।
वक्फ बिल पर यू-टर्न और विवाद
पार्टी के भीतर असंतोष का एक बड़ा कारण वक्फ संशोधन विधेयक, 2025 को लेकर बीजद का ढुलमुल रवैया रहा है। नवीन पटनायक ने पहले इस बिल का विरोध किया था, लेकिन जब 4 अप्रैल को राज्यसभा में मतदान हुआ, तो बीजद सांसद सस्मित पात्र ने सांसदों से “अपने विवेक” का इस्तेमाल करने को कहा। बिल के पारित होने के बाद वरिष्ठ नेताओं जैसे देवाशीष सामंतराय, प्रताप जेना और प्रफुल्ल सामल ने इस रुख की खुलकर आलोचना की। नेताओं ने पटनायक से मुलाकात कर आखिरी वक्त में बदले गए फैसले पर सवाल उठाए।
2024 की हार का दंश बहुत गहरा
2024 के विधानसभा चुनाव में बीजद 147 में से सिर्फ 51 सीटें जीत पाई, जबकि भाजपा ने 78 सीटों पर कब्जा जमाकर मोहन चरण माझी के नेतृत्व में सरकार बनाई। लोकसभा चुनाव में बीजद का प्रदर्शन और भी निराशाजनक रहा, जहां 21 में से एक भी सीट नहीं मिली। भाजपा ने 20 और कांग्रेस ने 1 सीट जीती। इस हार ने पार्टी के भीतर आत्ममंथन की जरूरत को और गहरा कर दिया।
पांडियन की भूमिका पर सवाल
2024 की हार के बाद नवीन पटनायक के करीबी सहयोगी वीके पांडियन ने राजनीति से हटने की घोषणा की थी, लेकिन कई नेताओं का दावा है कि वह अब भी पर्दे के पीछे से पार्टी के फैसलों को प्रभावित कर रहे हैं। पांडियन, जो 2000 बैच के आईएएस अधिकारी रह चुके हैं और दो दशक तक पटनायक के निजी सचिव रहे, पर कई वरिष्ठ नेता अपनी हार का ठीकरा फोड़ रहे हैं। वक्फ बिल पर बदले रुख के लिए भी कुछ नेता पांडियन को जिम्मेदार मानते हैं। नवीन पटनायक की सफाई के बावजूद बीजद के नेताओं को पांडियन की भूमिका पर संदेह है।
क्या है आगे की राह?
बीजद के संगठनात्मक चुनाव चल रहे हैं और संभावना है कि 19 अप्रैल को नवीन पटनायक एक बार फिर पार्टी अध्यक्ष चुने जाएंगे। लेकिन सवाल यह है कि क्या वह पार्टी को इस संकट से उबार पाएंगे? 27 साल के इतिहास में पहली बार बीजद नेताओं ने पटनायक के फैसलों पर सवाल उठाए हैं। पार्टी को नई दिशा देने और कार्यकर्ताओं का भरोसा जीतने के लिए पटनायक को कड़े फैसले लेने होंगे। नरसिंह साहू ने कहा कि हम इंतजार करेंगे और देखेंगे कि पार्टी प्रमुख क्या फैसला लेते हैं। बीजद के लिए यह समय न केवल नेतृत्व की परीक्षा है, बल्कि एकजुटता और रणनीति की भी कसौटी है।