-
आनुवांशिक शोध से हुआ उत्पत्ति का रहस्य
-
काले बाघों का इकलौता ठिकाना है सिमिलिपाल
-
रिजर्व वैज्ञानिकों और वन्यजीव प्रेमियों बने हैं आकर्षण का केंद्र
बारिपदा। मेलानिस्टिक बाघ कोई अलग प्रजाति नहीं हैं, बल्कि ये रॉयल बंगाल टाइगर की एक दुर्लभ आनुवांशिक भिन्नता का परिणाम हैं, जिसमें इनके शरीर पर काले रंग की धारियां सामान्य से कहीं अधिक घनी और चौड़ी हो जाती हैं। इस कारण इनका रूप सामान्य बाघों की तुलना में कहीं अधिक गहरा और विशिष्ट दिखाई देता है। यह विशेषता एक खास आनुवांशिक बदलाव, ‘टैकपेप’ जीन में उत्पन्न परिवर्तन, के कारण होती है जो इन्हें एक अलग पहचान देती है। यह दुर्लभ रूप विशेष रूप से ओडिशा के सिमिलिपाल टाइगर रिजर्व में ही पाया गया है, जहां पर्यावरणीय अलगाव और सीमित जनसंख्या के कारण यह गुण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक बना हुआ है। हाल में किए गए एक आनुवांशिक शोध से इनकी उत्पत्ति के रहस्य का खुलासा हुआ है।
ओडिशा के मयूरभंज जिले में स्थित सिमिलिपाल टाइगर रिजर्व, प्राकृतिक जैव विविधता से भरपूर एक आदर्श स्थल है, जहां बाघों का अद्वितीय रूप देखने को मिलता है। यहां पाए जाने वाले काले बाघ, जिन्हें “मेलानिस्टिक बाघ” कहा जाता है, दुनिया में कहीं और नहीं पाए जाते, और यही कारण है कि यह रिजर्व वैज्ञानिकों और वन्यजीव प्रेमियों का आकर्षण बना हुआ है।
उपस्थिति केवल एक आनुवांशिक संयोग नहीं
सिमिलिपाल में मेलानिस्टिक बाघों की उपस्थिति केवल एक आनुवांशिक संयोग नहीं है, बल्कि यह रिजर्व की पारिस्थितिकी की पृथक्करण का परिणाम है। सिमिलिपाल के आसपास मानव बस्तियां हैं और अन्य बाघों के निवास स्थान से इसका कोई संपर्क नहीं है। इस प्रकार, यहां के बाघों की आबादी आनुवांशिक रूप से पृथक हो गई है, जिसके कारण इनब्रीडिंग (अंतर्संकरण) हुआ है। यह संकुचन मेलानिस्टिक गुणसूत्र के प्रकट होने को बढ़ावा देता है।
आनुवांशिक विश्लेषण में यह पाया गया है कि सिमिलिपाल के बाघों में आनुवांशिक विविधता कम है, जो इस विशिष्ट गुणसूत्र के स्थिर होने में योगदान देता है। इससे यह संभावना बनती है कि संतानोत्पत्ति में समस्याएं आ सकती हैं और पर्यावरणीय बदलावों के प्रति इनकी अनुकूलता कम हो सकती है।
संरक्षण के लिए चुनौतियां भी
हालांकि सिमिलिपाल के मेलानिस्टिक बाघ प्राकृतिक चमत्कार हैं, लेकिन इनके संरक्षण के लिए गंभीर चुनौतियां भी उत्पन्न हो गई हैं। इनब्रीडिंग के कारण आनुवांशिक विविधता में कमी आई है, जिसके कारण प्रजनन क्षमता में कमी, बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशीलता और पर्यावरणीय बदलावों से निपटने की क्षमता में कमी हो सकती है। इन चिंताओं के मद्देनजर, संरक्षणकर्ताओं को इस बाघों की आबादी का सावधानीपूर्वक प्रबंधन करना आवश्यक हो गया है।
जागरूकता बढ़ाने को मेलानिस्टिक टाइगर सफारी शुरू
इन दुर्लभ बाघों के संरक्षण और जागरूकता बढ़ाने के लिए ओडिशा सरकार ने सिमिलिपाल के पास दुनिया की पहली मेलानिस्टिक टाइगर सफारी शुरू की है। इस पहल का उद्देश्य इन बाघों के आनुवांशिक और पारिस्थितिकी महत्व को समझाना और उनकी सुरक्षा के लिए जन जागरूकता बढ़ाना है।
Indo Asian Times । Hindi News Portal । इण्डो एशियन टाइम्स,। हिन्दी न्यूज । न रूकेगा, ना झुकेगा।।
