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जानें क्या है इसका वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व
भुवनेश्वर। वसंत ऋतु की पहली पूर्णिमा यानी ‘पिंक मून’ इस वर्ष रविवार, 13 अप्रैल 2025 को ओडिशा के आकाश में अपनी सौम्य छटा बिखेरेगा। यह खगोलीय दृश्य सुबह 5:52 बजे अपने चरम पर होगा। पूरे राज्य में चंद्र प्रेमी और आकाशीय घटनाओं में रुचि रखने वाले लोग इसे स्पष्ट रूप से देख सकेंगे।
हालांकि नाम से लगता है कि चंद्रमा गुलाबी रंग का होगा, लेकिन असल में इसका रंग सामान्य पूर्णिमा की तरह ही होगा। इसका नाम अमेरिका के वसंत ऋतु में खिलने वाले एक गुलाबी फूल फ्लॉक्स सबुलाटा से लिया गया है, जिसे ‘मॉस पिंक’ भी कहा जाता है।
इस बार का पिंक मून एक ‘माइक्रोमून’ भी होगा, यानी चंद्रमा अपनी कक्षा में पृथ्वी से सबसे अधिक दूरी (अपोजी) पर रहेगा। इस कारण यह सामान्य पूर्णिमा की अपेक्षा थोड़ा छोटा और कम चमकीला दिखाई देगा।
ओडिशा में सुबह के समय दिखा यह दृश्य
राज्य के अलग-अलग शहरों में यह दृश्य देखने के लिए आदर्श समय सुबह 5:30 से 6:00 बजे तक का रहेगा। भुवनेश्वर, कटक, पुरी, बालेश्वर, बारिपदा, अनुगूल और ब्रह्मपुर में चंद्रमा को देखने का सर्वोत्तम समय सुबह 5:30 से 6:00 बजे तक होगा। संबलपुर, राउरकेला और झारसुगुड़ा जैसे पश्चिमी शहरों में सुबह 5:25 से 5:55 बजे तक होगा। इसे पश्चिम क्षितिज की ओर देखा जा सकता है। इसे ऊँचे या खुले स्थान से देखने पर दृश्य और स्पष्ट मिलेगा।
खगोलीय और धार्मिक विशेष महत्व
चंद्र प्रेमियों के लिए यह सिर्फ खगोलीय घटना नहीं, बल्कि आध्यात्मिक अनुभव भी है। विभिन्न धर्मों में पिंक मून का विशेष महत्व है। हिंदू धर्म में यह पूर्णिमा हनुमान जयंती के रूप में मनाई जाती है, जो भगवान हनुमान के जन्मदिवस का प्रतीक है। बौद्ध धर्म में इसे बक पोया कहा जाता है, जो भगवान बुद्ध की शांति स्थापना यात्रा की स्मृति में मनाया जाता है। ईसाई धर्म में यह पास्कल फुल मून के रूप में जानी जाती है, जिसके आधार पर ईस्टर की तिथि (20 अप्रैल 2025) तय होती है। इस दिन चंद्रमा के समीप कन्या नक्षत्र का सबसे चमकीला तारा ‘स्पाइका’ भी दिखाई देगा, जिससे आकाश का दृश्य और भी मनमोहक हो जाएगा।
बिना किसी उपकरण के लें आनंद
पिंक मून को बिना किसी विशेष उपकरण के नंगी आंखों से देखा जा सकता है, लेकिन यदि आपके पास बाइनोकुलर या टेलीस्कोप है, तो आप चंद्रमा की सतह की और भी सुंदर झलक देख पाएंगे।
प्रकृति से जुड़ने का मौका
‘पिंक मून’ न केवल एक अद्भुत खगोलीय घटना है, बल्कि यह प्रकृति की लय, नवजीवन, और आध्यात्मिकता का प्रतीक भी है। यह पूर्णिमा सभी को कुछ पल ठहरकर आकाश की सुंदरता में खुद को खो देने का एक अवसर देती है।