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अनुगूल भारत का चौथा सबसे प्रदूषित शहर
अनुराग आचार्य, तालचेर।
ओडिशा के अनुगूल जिले में स्थित प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र तालचेर में प्रदूषण ने खतरे की घंटी बजा दी है। चिंता का विषय है कि ओडिशा के अनुगूल और तालचेर देश के सबसे प्रदूषित 6 शहरों में शामिल हो गए हैं।
शुक्रवार को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के समीर ऐप पर प्रकाशित जानकारी के अनुसार, अनुगूल का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 323 दर्ज किया गया, जो भारत का चौथा सबसे प्रदूषित शहर है। वहीं, तालचेर 302 एक्यूआई के साथ छठे स्थान पर है।
सीपीसीबी ने इन दोनों शहरों की वायु गुणवत्ता को बहुत खराब श्रेणी में रखा है। भुवनेश्वर, कटक और बालेश्वर की वायु गुणवत्ता भी बहुत खराब श्रेणी में आ गई है।
पर्यावरणविदों के अनुसार, भुवनेश्वर में निर्माण कार्यों के कारण एक्यूआई खराब हो रहा है। सर्दियों में तापमान कम होने के कारण धूल कण वायुमंडल की निचली परत में जमा हो रहे हैं।
शुक्रवार सुबह 10:30 बजे समीर ऐप के डेटा के अनुसार, अनुगूल 332 एक्यूआई के साथ देश का सबसे प्रदूषित शहर था। इसके बाद अगरतला (315), हावड़ा (314) और बार्नीहाट (312) का स्थान रहा।
प्रदूषण का कारण
पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक, अनुगूल-तालचेर औद्योगिक क्षेत्र दुनिया के सबसे बड़े नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) उत्सर्जन हॉटस्पॉट में से एक है।
प्रदूषण के मुख्य कारणों में कोयला खदानें, थर्मल पावर प्लांट, एल्यूमिनियम स्मेल्टर प्लांट और अन्य उद्योग शामिल हैं।
यदि एक्यूआई 151-200 के बीच रहता है, तो शहर को रेड कैटेगरी में रखा जाता है। यह संकेत देता है कि ओडिशा के कई शहरों में वायु गुणवत्ता लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
धूल फांक रहा है पर्यटन क्षेत्र
तालचेर का ऐतिहासिक महत्व भी है, जहां तालचेर राजघराने का प्रभाव देखने को मिलता है। यहां का भगवान जगन्नाथ मंदिर और संबलपुर शैली की स्थापत्य कला धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करता है।
हालांकि, तेजी से औद्योगिकीकरण और कोयला खनन के कारण यह क्षेत्र गंभीर प्रदूषण की समस्या से जूझ रहा है और यहां पर्यटन क्षेत्र धूल फांक रहा है। यहां की वायु गुणवत्ता अक्सर बहुत खराब श्रेणी में दर्ज की जाती है, जो स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य के लिए चिंता का विषय है।
तालचेर प्राकृतिक सौंदर्य से भी भरपूर है, जहां ब्रह्मणी नदी और आसपास की हरियाली इसे पर्यटन के लिए उपयुक्त बनाते हैं। यह क्षेत्र ओडिशा की औद्योगिक प्रगति और सांस्कृतिक समृद्धि का अद्वितीय संगम है, लेकिन इस क्षेत्र में लोग आने से कतराने लगे हैं। सड़कें धूल में पटी हैं और उन पर दौड़ने वाली गाड़ियों पर धूल की चादर चढ़ी होती है।
करोड़ों की कमाई, पर्यावरण संरक्षण पर चवन्नी खर्च नहीं
औद्योगिक क्षेत्र तालचेर और अनुगूल, कोयला उत्पादन और बिजली संयंत्रों से हर साल करोड़ों रुपये की कमाई करते हैं, लेकिन पर्यावरण संरक्षण के लिए योगदान न के बराबर है। यहां की कोयला खदानें और उद्योग प्रदूषण का बड़ा स्रोत बन गए हैं, जिससे वायु गुणवत्ता “बहुत खराब” श्रेणी में पहुंच चुकी है। स्थानीय निवासियों को सांस की बीमारियों और जल प्रदूषण जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि उद्योगों को कमाई का एक हिस्सा पर्यावरण संरक्षण, पौधरोपण और प्रदूषण नियंत्रण उपायों पर खर्च करना चाहिए, लेकिन इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे।
ओडिशा के अनुगूल जिले में स्थित प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र तालचेर में प्रदूषण ने खतरे की घंटी बजा दी है। चिंता का विषय है कि ओडिशा के अनुगूल और तालचेर देश के सबसे प्रदूषित 6 शहरों में शामिल हो गए हैं।
शुक्रवार को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के समीर ऐप पर प्रकाशित जानकारी के अनुसार, अनुगूल का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 323 दर्ज किया गया, जो भारत का चौथा सबसे प्रदूषित शहर है। वहीं, तालचेर 302 एक्यूआई के साथ छठे स्थान पर है।
सीपीसीबी ने इन दोनों शहरों की वायु गुणवत्ता को बहुत खराब श्रेणी में रखा है। भुवनेश्वर, कटक और बालेश्वर की वायु गुणवत्ता भी बहुत खराब श्रेणी में आ गई है।
पर्यावरणविदों के अनुसार, भुवनेश्वर में निर्माण कार्यों के कारण एक्यूआई खराब हो रहा है। सर्दियों में तापमान कम होने के कारण धूल कण वायुमंडल की निचली परत में जमा हो रहे हैं।
शुक्रवार सुबह 10:30 बजे समीर ऐप के डेटा के अनुसार, अनुगूल 332 एक्यूआई के साथ देश का सबसे प्रदूषित शहर था। इसके बाद अगरतला (315), हावड़ा (314) और बार्नीहाट (312) का स्थान रहा।
प्रदूषण का कारण
पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक, अनुगूल-तालचेर औद्योगिक क्षेत्र दुनिया के सबसे बड़े नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) उत्सर्जन हॉटस्पॉट में से एक है।
प्रदूषण के मुख्य कारणों में कोयला खदानें, थर्मल पावर प्लांट, एल्यूमिनियम स्मेल्टर प्लांट और अन्य उद्योग शामिल हैं।
यदि एक्यूआई 151-200 के बीच रहता है, तो शहर को रेड कैटेगरी में रखा जाता है। यह संकेत देता है कि ओडिशा के कई शहरों में वायु गुणवत्ता लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
धूल फांक रहा है पर्यटन क्षेत्र
तालचेर का ऐतिहासिक महत्व भी है, जहां तालचेर राजघराने का प्रभाव देखने को मिलता है। यहां का भगवान जगन्नाथ मंदिर और संबलपुर शैली की स्थापत्य कला धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करता है।
हालांकि, तेजी से औद्योगिकीकरण और कोयला खनन के कारण यह क्षेत्र गंभीर प्रदूषण की समस्या से जूझ रहा है और यहां पर्यटन क्षेत्र धूल फांक रहा है। यहां की वायु गुणवत्ता अक्सर बहुत खराब श्रेणी में दर्ज की जाती है, जो स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य के लिए चिंता का विषय है।
तालचेर प्राकृतिक सौंदर्य से भी भरपूर है, जहां ब्रह्मणी नदी और आसपास की हरियाली इसे पर्यटन के लिए उपयुक्त बनाते हैं। यह क्षेत्र ओडिशा की औद्योगिक प्रगति और सांस्कृतिक समृद्धि का अद्वितीय संगम है, लेकिन इस क्षेत्र में लोग आने से कतराने लगे हैं। सड़कें धूल में पटी हैं और उन पर दौड़ने वाली गाड़ियों पर धूल की चादर चढ़ी होती है।
करोड़ों की कमाई, पर्यावरण संरक्षण पर चवन्नी खर्च नहीं
औद्योगिक क्षेत्र तालचेर और अनुगूल, कोयला उत्पादन और बिजली संयंत्रों से हर साल करोड़ों रुपये की कमाई करते हैं, लेकिन पर्यावरण संरक्षण के लिए योगदान न के बराबर है। यहां की कोयला खदानें और उद्योग प्रदूषण का बड़ा स्रोत बन गए हैं, जिससे वायु गुणवत्ता “बहुत खराब” श्रेणी में पहुंच चुकी है। स्थानीय निवासियों को सांस की बीमारियों और जल प्रदूषण जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि उद्योगों को कमाई का एक हिस्सा पर्यावरण संरक्षण, पौधरोपण और प्रदूषण नियंत्रण उपायों पर खर्च करना चाहिए, लेकिन इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे।