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गिरफ्तार माता-पिता ने किया अपराध स्वीकार
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वित्तीय तंगी के कारण बच्ची को बेचने का लिया फैसला
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पुलिस ने बच्ची को किया रेस्क्यू, जांच शुरू
भुवनेश्वर। ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जहां एक दंपति ने अपनी चार साल की बेटी को 40,000 रुपये में बेच दिया। यह मामला बुधवार को उजागर हुआ।
जानकारी के अनुसार, भुवनेश्वर के बड़गड़ इलाके के रहने वाले इस दंपति को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा था। इस कारण उन्होंने अपनी बेटी को पिपिलि के एक अन्य दंपति को बेच दिया। बताया जा रहा है कि यह दंपति बड़गड़ थाना क्षेत्र के अंतर्गत दैनिक मजदूर के रूप में काम करता था।
घटना की जानकारी मिलने के बाद बड़गड़ पुलिस ने बच्ची को बचा लिया और मामले की जांच शुरू कर दी। बच्ची के माता-पिता ने अपराध स्वीकार कर लिया है।
महिलाओं की मध्यस्थता से हुई डील
सूत्रों के मुताबिक, यह सौदा मंगलवार शाम को हुआ था और इसमें दोनों महिला मध्यस्थों ने सौदे को अंजाम तक पहुंचाया। बड़गड़ थाना प्रभारी ने बताया कि उन्हें यह जानकारी एक अपार्टमेंट मालिक से मिली, जहां यह दंपति काम करता था। माता-पिता ने यह भी कबूल किया कि इस लेनदेन में बड़गड़ क्षेत्र की दो महिलाओं ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी।
ओडिशा में बच्चों को बेचने के अन्य मामले
ओडिशा में हाल के दिनों में बच्चों को बेचने के कई मामले सामने आए हैं। पिछले सप्ताह राज्य सरकार ने बलांगीर जिले में एक नवजात को ट्रैक किया, जिसे उसके माता-पिता ने अत्यधिक गरीबी के कारण बेच दिया था।
इससे पहले, इस महीने की शुरुआत में रायगड़ा जिले में एक नवजात को 20,000 रुपये में बेचने का मामला सामने आया था। बाद में शिशु को पड़ोसी आंध्र प्रदेश से रेस्क्यू किया गया और उसे बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के समक्ष पेश करने के बाद विशेष गोद लेने की एजेंसी (एसएए) में भेजा गया।
बरगड़ जिले में 17 दिन के शिशु को बेचा
20 नवंबर को बरगड़ जिले के सोहेला ब्लॉक के खैरापाली से भी ऐसा ही मामला सामने आया। यहां एक दंपति ने कथित तौर पर अपनी 17 दिन के नवजात लड़के को एक नि:संतान दंपति को बेच दिया। आरोप है कि उनके पास पहले से पांच बच्चे हैं और नवजात की देखभाल करने के लिए कोई साधन नहीं थे। हालांकि, उन्होंने बच्चे को बेचने से इनकार किया है।
सरकार और समाज के लिए चेतावनी
बच्चों को बेचने की इन घटनाओं ने राज्य में गरीबी और समाज में व्याप्त असमानता की ओर इशारा किया है। इन मामलों ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर कब तक गरीबी की मार मासूम बच्चों की जिंदगी पर भारी पड़ेगी।