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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत कार्यालय खारवेल निलय के लिए भूमिपूजन

  • हवन यज्ञ, वेद पाठ और मंत्रोच्चारण के साथ की गयी भूमिपूजन

भुवनेश्वर। संस्कृति सुरक्षा समिति, भुवनेश्वर द्वारा भुवनेश्वर में खारवेल निलय के लिए भूमिपूजन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर हवन यज्ञ, वेद पाठ और मंत्रोच्चारण के साथ भूमिपूजन की गयी। इसमें ओडिशा भर से संघ के कई वरिष्ठ अधिकारी, स्वयंसेवक और संतों ने भाग लिया।
इस भूमिपूजन उत्सव में पूज्य स्वामी प्राणरूपानंद सरस्वती, पूज्य स्वामी महामंडलेश्वर शंकरानंद गिरि, पूज्य स्वामी त्रैलोक्येश्वर भारती, पूज्य स्वामी ब्रह्मचारी विशेष चैतन्य, पूज्य बाबा रमेश दास और पूज्य स्वामी विष्णुगिरि महाराज सहित कई प्रतिष्ठित संत उपस्थित रहे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सद्भावना प्रमुख डॉ गोपाल प्रसाद महापात्र, अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य सुनील पद गोस्वामी, सह क्षेत्र प्रचारक जगदीश प्रसाद खाड़ंगा, क्षेत्र संपर्क प्रमुख विद्युत चक्रवर्ती, ओडिशा पूर्व प्रांत के प्रांत संघचालक समीर कुमार मोहंती, प्रांत प्रचारक बिपिन प्रसाद नंद, सहप्रांत प्रचारक असित कुमार साहू, सहप्रांत कार्यवाह इंजीनियर सुदर्शन दास, प्रांत व्यवस्था प्रमुख मनोरंजन पात्र, प्रांत बौद्धिक प्रमुख तन्मय महापात्र, प्रांत संपर्क प्रमुख सर्वेश्वर बेहरा, सहप्रांत संपर्क प्रमुख डॉ बसंत पति, दोनों प्रांतों के प्रचार प्रमुख सृष्टिधर विश्वाल, जगदीश पटनायक, सरोज मित्रा और अन्य कई मान्यगण्य लोग तथा प्रदेश भर से आये स्वयंसेवक उपस्थित थे।
ओडिशा की उपमुख्यमंत्री प्रभाती परिडा और कनक वर्धन सिंहदेव, सांसद अनंत नायक, सुकांत पाणिग्राही और कई विधायकों ने भी भूमिपूजन कार्यक्रम में सम्मिलित हुए।
इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ओडिशा पूर्व प्रांत के प्रांत संघचालक समीर कुमार मोहंती ने कहा कि भुवनेश्वर में प्रांत कार्यालय का निर्माण सभी स्वयंसेवकों का सपना था, जो अब साकार होने जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह कार्यालय स्वयंसेवकों की श्रद्धा, कड़ी मेहनत और सहयोग व समर्पण से एकत्रित की गई धनराशि से बनाया जाएगा।
डॉ गोपाल प्रसाद महापात्र ने अपने संबोधन में कहा कि संघ का कार्य ओडिशा में अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में शुरू हुआ था। पुराने कार्यकर्ताओं से चर्चा करते हुए यह जाना जा सकता है कि उन्होंने किस प्रकार से चुनौतियों का सामना किया। प्रारंभ में संघ के कार्यों के लिए किसी प्रकार का सहयोग उपलब्ध नहीं था। केवल स्वयंसेवकों के त्याग और साधना के कारण ही धीरे-धीरे संघ का विस्तार संभव हो पाया।

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