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आदिवासी बेटी ने ओडिशा का गौरव बढ़ा

  • भारत महिला दृष्टिहीन क्रिकेट टीम की उप-कप्तान बनी

बालेश्वर। एक आदिवासी बेटी ने ओडिशा का गौरव बढ़ाया है। वह भारत महिला दृष्टिहीन क्रिकेट टीम की उप-कप्तान बनी है।
17 वर्षीय आदिवासी लड़की फुला सोरेन ओडिशा के बालेश्वर जिले के रेमुना ब्लॉक के सालबानी क्षेत्र की निवासी है।
छोटी उम्र में अपनी मां को खो देने के कारण वह एक तरह से अनाथ हो गई थी। उसके पिता दिनभर काम करने में व्यस्त रहते थे।
दृष्टिहीन जन्मी फुला का जीवन सामान्य बच्चों की तरह नहीं रहा, लेकिन आज वह भारत महिला दृष्टिहीन क्रिकेट टीम की उप-कप्तान बन गई है, जिसने हाल ही में बर्मिंघम में अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिहीन खेल महासंघ (आईबीएसए) विश्व खेलों में स्वर्ण पदक जीता है।
फुला ने ओडिशा के लिए और अधिक उपलब्धियां हासिल की हैं। वह उन युवाओं के लिए प्रेरणा बन गई हैं जो अपनी विकलांगता के कारण बड़े सपने नहीं देख पाते।
फुला ने कहा कि मैंने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर खेला है। मैंने कई ‘मैन ऑफ द मैच’ और ‘मैन ऑफ द सीरीज’ पुरस्कार भी जीते हैं। क्रिकेट ने मुझे पहचान दी है। अब लोग मुझे और मेरे पिता को जानते हैं। जब लोग मेरे पिता को मेरे नाम से पुकारते हैं, तो मुझे गर्व होता है।
पिता को गर्व
फुला के पिता तुना सोरेन, जिन्होंने मां की मृत्यु के बाद अकेले उसका पालन-पोषण किया, ने भी अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। उन्होंने कहा कि मुझे बहुत खुशी है कि मेरी बेटी अपनी विकलांगता के बावजूद बहु-प्रतिभाशाली है। वह पढ़ाई और खेल दोनों में अच्छी है। मैं कभी उन जगहों पर नहीं गया जहां वह हमारे राज्य का प्रतिनिधित्व करने गई है। काश, उसकी मां यहां होतीं और उसकी सफलता देख पातीं।
 दुख भुलाने में मदद करता था क्रिकेट
आर्थिक तंगी के कारण फुला के पिता ने उसे दृष्टिहीन स्कूल में भर्ती कराया। छोटी उम्र से ही फुला क्रिकेट की ओर आकर्षित हुईं। उनके शारीरिक शिक्षा शिक्षक ने उनमें संभावनाएं देखीं और इस प्रकार उनकी क्रिकेट यात्रा शुरू हुई।
अपनी मां को खोने के बाद, क्रिकेट ही उनका ऐसा स्रोत था जिसने उन्हें दुख भुलाने में मदद की। आज, वह अपने कठिन परिश्रम के कारण एक महिला क्रिकेटर के रूप में स्थापित हो चुकी हैं। वर्तमान में वह भुवनेश्वर के रामादेवी विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रही हैं।
बहुत गरीब झेली
एक ग्रामीण ने कहा कि वे बहुत गरीब थे और दिन में दो समय की रोटी खाने के लिए भी पर्याप्त नहीं था। आज, उसने अपनी प्रतिभा से पूरे गांव को गर्वित किया है। उसने ओडिशा का प्रतिनिधित्व किया है उन स्थानों पर जहां हम कभी नहीं गए या कभी नहीं जा सकेंगे।

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